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पार्ट 1: मांझी जो नाव डुबोए...

किसानों के मामले में शिवराज सिंह चौहान महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस से ज्यादा चतुर-चालाक दिखे

Updated On: Jun 16, 2017 10:35 PM IST

Rajesh Raparia Rajesh Raparia
वरिष्ठ पत्र​कार और आर्थिक मामलों के जानकार

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पार्ट 1: मांझी जो नाव डुबोए...

महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसानों का आंदोलन फौरी तौर पर शांत हो गया है. इन किसानों की कई मांगे थीं, जिनमें फसलों के वाजिब दाम और कर्ज माफी की मांगे मुख्य थीं. लेकिन दोनों राज्यों के सरकारी रवैए से एक बात साफ है कि इस मामले में मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस से ज्यादा चतुर-चालाक दिख रहे हैं.

महाराष्ट्र के अहमदनगर के अनजान गांव पुणतांबा से उठी किसान असंतोष की चिंगारी को मध्य प्रदेश की सरकार ने ज्यादा चालाकी से संभाला है. मध्य प्रदेश में किसानों की कर्ज माफी की कोई घोषणा नहीं की गई है, न ही भविष्य में इसके लिए कोई भरोसा दिया गया है. वहीं महाराष्ट्र में छोटे किसानों के लिए तकरीबन 30 हजार करोड़ रुपये की कर्ज माफी की घोषणा की गई है. जबकि कर्जमाफी को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली, आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल समेत सरकारी और गैर सरकारी वित्त विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों का स्यापा पहले से और तेज हो गया है.

तमाम किसान संगठनों से बातचीत के बाद महाराष्ट्र सरकार ने बताया है कि किसानों की अनेक मांगे मान ली गई हैं. बाकी मांगों पर कार्रवाई का भरोसा दिया गया है.

महाराष्ट्र के लोक निर्माण मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने कहा है कि सरकार ने किसानों के कुल 30,500 करोड़ रुपए का कर्ज माफ किए हैं. इससे राज्य के तकरीबन 31 लाख किसानों को फायदा होगा. पाटिल के मुताबिक बातचीत में सारे किसानों के कर्ज माफी प्रस्ताव पर सहमति बनी है, जिस पर 23 जुलाई तक फैसला ले लिया जाएगा.

मंत्री के अनुसार पांच एकड़ खेत के किसानों का कर्ज तुरंत प्रभाव से माफ कर दिया गया है. इस बातचीत में शामिल किसान संगठनों ने कहा है कि यदि 23 जुलाई तक मांगे पूरी नहीं हुईं, तो फिर आंदोलन होगा. किसानों को भरोसा दिया गया है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने के लिए मुख्यमंत्री फडणवीस एक प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली जा कर केंद्र से चर्चा करेंगे.

devendra fadnavis

क्या हैं स्वामीनाथन आयोग की मुख्य सिफारिशें

कृषि के हालात सुधारने के लिए स्वामीनाथन आयोग का गठन 2004 में किया गया था. 2007 में इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी, जिनमें तकरीबन 200 सुझाव की सिफारिशें की गईं थीं.

इस आयोग की मुख्य सिफारिशें हैं- फसल लागत से 50 फीसदी लाभप्रद मूल्य किसानों को मिले. बेहतर क्वालिटी के बीज कम दामों पर किसानों को मुहैया कराए जाएं. सरप्लस जमीन को टुकड़ों में भूमिहीन किसानों में वितरित की जाए.

खेतीहर और वनभूमि को गैर कृषि कार्यों के लिए कॉरपोरट को नहीं दिया जाना चाहिए. कर्ज गरीबों और जरूरतमंदों को भी मिलें. कृषि ब्याज दर कम करके चार फीसदी की जाए. प्राकृतिक आपदा और संकट के समय ब्याज से राहत हालात के सामान्य होने तक जारी रहने चाहिए.

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही खरीद

मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दो दिन के अनशन के साथ समाप्त हो गया है. पर कर्ज माफी की मुख्य मांग मानने से मुख्यमंत्री ने साफ इंकार कर दिया है और कहा है कि हम पहले से ही ब्याज मुक्त कर्ज किसानों को दे रहे हैं.

अलबता उन्होंने राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम खरीद को अपराध श्रेणी में रखने की घोषणा की है. इस घोषणा का किसानों पर भारी मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है. जमीन पर यह घोषणा कितना असर दिखाएगी, यह आकलन करना अभी मुश्किल है. खबर है कि इस घोषणा के खिलाफ व्यापारियों में लामबंदी शुरू हो गई है. प्याज को 800 रुपए प्रति क्विंटल खरीद की घोषणा सरकारी हिसाब से पहले ही की जा चुकी है.

दूध खरीद के दाम बढ़ाने का भरोसा भी आंदोलनकारी किसानों को दिया गया है. हर जिले में किसान बाजार बनाने की घोषणा भी की गई है, जहां किसान अपनी उपज सीधे बेच सकेंगे.

राज्य के मालवा क्षेत्र के मंदसौर जिले में 6 जून को फायरिंग में छह किसानों की मौत हो गई थी. मारे गए किसानों में पांच पाटीदार (पटेल) समाज के थे. 6 जून के बाद यहां आंदोलन बेकाबू हो गया और पाटीदार समाज आगजनी, तोड़फोड़ पर उतारू हो गया, जिससे आंदोलन अपनी राह से भटक गया, तभी यह तय हो गया था कि यहां किसान आंदोलन स्वत: ही दम तोड़ देगा. मध्य प्रदेश के अनेक बड़े नेता अब कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने उपवास करने में जल्दबाजी कर दी.

shivraj singh chouhan

फिरकी लेने में लगी रही सरकारें

किसान आंदोलन की शुरुआत से ही दोनों राज्य सरकारों ने भ्रामक सूचना जाल से उनसे फिरकी लेने में ही लगी रहीं. इससे आंदोलन और फैल गया. मध्य प्रदेश में 6 जून के गोली कांड के बाद सरकार फिरकी लेती रही कि गोली किसने चलाई. इसका उद्देश्य सारा ठीकरा विपक्ष पर फोड़ना था.

शुरुआत में भ्रम की स्थिति तो बनी रही. फिर हार कर सरकार को कहना पड़ा कि पुलिस फायरिंग से लोग मारे गए हैं. फिर बताया गया कि पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर मजबूरी में गोली चलानी पड़ी क्योंकि प्रदर्शनकारी थाना जलाने पर उतारू थे.

पहले भ्रम फैलाया गया कि मारे गए लोग असामाजिक तत्व थे. इस बात की सोशल मीडिया पर मध्य प्रदेश सरकार की जमकर भद्द पिट गई कि असामाजिक तत्व हैं तो फिर राहत राशि क्यों दे रही है सरकार.

पर कोई अधिकारी या बीजेपी नेता यह बताने को राजी नहीं है कि पुलिस फायरिंग कहां हुई. थाना फायरिंग स्थल से कितना पास या दूर था. क्या फायरिंग से पहले प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के प्रयास किए गए थे.

शासन-प्रशासन यह बताने से भी कन्नी काट रहा है कि 6 जून के गोली कांड से पहले क्या हुआ था. क्या फायरिंग से पहले भी कोई पुलिसिया कार्रवाई हुई थी?

यह भी भ्रम फैलाया गया कि फायरिंग में मरने वाले किसान नहीं थे, क्योंकि उनके नाम से कोई खेत नहीं थे. पर झूठ के पांव नहीं होते हैं. चूक यह हो गई कि साथ में यह भी बताया गया कि खेत उनके पिता के नाम हैं.

कल्पनाशीलता और सृजनता की ऐसी मिसाल तकरीबन 38-40 साल पहले फूलन देवी की कवरेज के दौरान देखने को मिली थी. महाराष्ट्र में सरकार इस आंदोलन के शुरुआती दिनों में यह खबर उड़ाने में सफल रही कि आंदोलन वापस हो गया है.

Packed sacks of onions kept for delivery are seen at an empty wholesale fruit and vegetable market in Pimpalgaon

आंदोलन का चौंकाने वाला पहलू

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के हालिया किसान आंदोलन का एक चौंकाने वाला पहलू है. बरसों आपदा झेल रहे महाराष्ट्र के विदर्भ, मराठावाड़ा या मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड से यह आंदोलन शुरू नहीं हुआ, न ही इस आंदोलन में कोई धमक वहां सुनायी दी.

यह आंदोलन अपेक्षाकृत संपन्न मध्य प्रदेश के मालवा और पश्चिम महाराष्ट्र से शुरू हुआ, जहां के किसानों की सामान्यतया हालत बेहतर है. महाराष्ट्र के नासिक, अहमदनगर, पुणे, सतारा, सांगली, कोल्हापुर फलों और प्याज के लिए देशभर में जाना जाता है. यहां अंगूर, अनार, प्याज जैसी कमाऊ उपज होती है.

यहां का दुग्ध व्यवसाय भी काफी उन्नत है. पश्चिमी मध्यप्रदेश में मालवा क्षेत्र 'पग पग रोटी, डग डग नीर' के लिए ख्यात है. रतलाम, मंदसौर, नीमच अफीम की खेती के लिए दुनिया भर में जाना-पहचाना नाम है. सोयाबीन, गेहूं और चने की खेती के अलावा यहां मेथी, धनिया, जीरा, लहुसन, प्याज आदि की खेती भारी मात्रा में होती है.

पर इस बार बंपर उत्पादन और नगदी के संकट के कारण यहां अनेक उपजों के दामों में भारी गिरावाट आई. प्याज की व्यथा-कथा से बंपर पैदावार के संकट को आसानी से समझा जा सकता है. देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी नासिक के लासलगांव मंडी में प्याज के भाव 450 रुपए प्रति क्विंटल तक गिर गए जो पिछले साल 800 रुपए प्रति क्विंटल थे. मध्य प्रदेश में भी पहले सरकार 600 रुपए प्रति क्विंटल में खरीद से आनाकानी करती रही है.

अब किसान आंदोलन के बाद मध्य प्रदेश सरकार 800 रुपए प्रति क्विंटल प्याज खरीद पर राजी हुई है. पर अब तक 30-40 फीसदी प्याज की उपज खरीद योग्य नहीं रह गई होगी, क्योंकि गरमी में प्याज बहुत जल्दी अपनी नमी खो देती है.

सोयाबीन के दाम भी गिर कर 27-28 सौ रुपए प्रति क्विंटल रह गए जो पिछले साल 35-36 सौ रुपए प्रति क्विंटल था. यह व्यथा अंगूर पैदावार की भी है. पिछले साल अंगूर का भाव 50 रुपए प्रति किलोग्राम था जो इस बार गिरकर 15 रुपए प्रति किलोग्राम तक गिर गए. देश के अन्य हिस्सों से भी उपज के भावों में गिरावट की खबरें आ रही हैं.

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