बीते रविवार बिहार में वज्रपात से एक ही दिन में 31 लोगों की मौत हो गई. बिहार में इस साल एक मई से अब तक करीब 200 लोगों की मौत इस आसमानी कहर से हो चुकी है.
बीते साल 2016 में इक्कीस जून को एक ही दिन में 56 लोगों की मौत आसमानी बिजली गिरने से हुई थी. तब अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी इस खबर को जगह मिली थी.
ये हैं पिछले कुछ सालों के आंकड़े
पूरे भारत की बात करें तो बिहार के मुकाबले कई ऐसे राज्य हैं जहां कहीं बड़ी संख्या में लोग इससे हताहत होते हैं. वास्तव में बिहार तो इस आपदा से प्रभवित टाॅप टेन राज्यों में भी शामिल नहीं है. राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक 2015 में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान इस आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित तीन राज्यों में थे.
इस साल देश भर में वज्रपात से कुल 9,889 मौतें हुईं जिनमें से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में क्रमशः 1,545, 1,361 और 1,066 लोग इससे हताहत हुए. 2015 में बिहार में 174 लोग वज्रपात से मारे गए थे.
एनसीआरबी के मुताबिक 2014 में भी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान ही इस आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित तीन राज्य थे. इस साल देश भर में वज्रपात से कुल 9,606 मौतें हुईं जिनमें से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में क्रमशः 1,664, 1,373 और 995 लोग इससे हताहत हुए.
जानकारों के मुताबिक बीते करीब एक दशक से कुछ ज्यादा समय से ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस आसमानी कहर की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. 2004 में वज्रपात से करीब 1,900 लोग मारे गए थे यह आंकड़ा 2015 में करीब 10 हजार तक पहुंच गया. हालांकि इस बीच 2008 और 2009 में ऐसी घटनाओं में तुलनात्मक रुप से कमी भी दर्ज हुई थी.
ग्लोबल वॉर्मिंग से बढ़ी हैं वज्रपात की घटनाएं
पटना स्थित मौसम विज्ञान केंद्र के प्रभारी निदेशक आनंद शंकर कहते हैं, ‘ग्बोबल वॉर्मिंग से तापमान बढ़ने के कारण वज्रपात की घटनाएं और उनकी तीव्रता भी बढ़ी है.’
आनंद आगे बताते हैं, 'वज्रपात की ज्यादा घटनाएं दोपहर या उसके बाद होती हैं. माॅनसून की शुरुआत के साथ ही इसका खतरा भी बढ़ जाता है. लो क्लाउड बनना वज्रपात के खतरे की घंटी जैसा है.'
इससे बचने के उपायों के बारे में आनंद बताते हैं, ‘बारिश के समय शरीर के बाल खड़े हो जाना बिजली गिरने की एक पूर्व सूचना हो सकती है. वज्रपात की आशंका के समय या ऐसा होने के दौरान बिजली के उपकरणों और मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. ऐसे उपकरणों के बिजली कनेक्शन काट दें. अगर कोई खुले या खेतों में वज्रपात के हालात में फंस गए हों तो उन्हें किसी नीची जगह पर उकड़ू (झुककर) बैठ जाना चाहिए. लेटना नहीं चाहिए. मोबाइल या बिजली के टावर के आस-पास न जाएं. बारिश से बचने के लिए पेड़ों के नीचे आने की हालत में कम ऊंचाई के पेड़ों के नीचे आना ज्यादा सुरक्षित होता है.’
वज्रपात की ज्यादा घटनाएं ग्रामीण इलाकों में सामने आती हैं. ऐसे में जानकारों का मानना है कि इसके बचाव के लिए इन क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने की बहुत जरूरत है.
तकनीक बन रही है सहायक
लेकिन अब तकनीक के विकास के साथ-साथ इसकी पूर्व सूचना भी मिल जाती है. बिहार की बात करें तो बिजली गिरने से होने वाली जान-माल की क्षति के मद्देनजर बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण इसकी समय पूर्व सूचना देने के लिए अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाने की योजना पर काम कर रहा है.
वहीं नौ जुलाई के घटना के बाद आपदा प्रबंधन विभाग ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस आपदा से निपटने की अपनी योजनाओं के बारे में जानकारी दी.
विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत ने बताया कि वज्रपात की जानकारी 30 मिनट पहले देने वाला ऐप बिहार में लांच करने की तैयारी है. इसके लिए विभाग आंध्र प्रदेश से बात कर रहा है. बरसात में इस ऐप का इस्तेमाल ट्रायल के रुप में करने की उम्मीद है. इस ऐप से मिली जानकारी संबंधित इलाके में एसएमएस आदि के माध्यम से देकर लोगों को चौकन्ना किया जाएगा ताकि जान-माल की हानि न हो.
बिहार में बिजली गिरने को वर्ष 2009 में ही प्राकृतिक आपदा घोषित कर दिया गया था. इस आपदा में मारे गए हर व्यक्ति के आश्रित को राज्य सरकार चार लाख रुपए का मुआवजा देती है. वर्ष 2015 में केंद्र ने भी इसे प्राकृतिक आपदा की सूची में शामिल कर लिया है.
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