अगले महीने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके अलावा 2019 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं. ऐसे में चुनाव आयोग ने फेक न्यूज से निपटने के लिए कानून बनाए जाने की मांग की है. चुनाव आयोग का मानना है कि फेक न्यूज से जुड़ी कन्फ्यूजन दूर करने के लिए सीमाएं तय करना काफी जरूरी है.
चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने न्यूज 18 से बात करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में किसी कानून के न होने से हमेशा कन्फ्यूजन बनी रहती है. अशोक लवासा ने कहा कि अगस्त में फेक न्यूज से निपटने के लिए चुनाव आयोग ने एक एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी. लेकिन अब इस एक्सपर्ट कमिटी के सुझावों को विधाई समर्थन की जरूरत होगी.
फेक न्यूज पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए लावास ने कहा कि फेक न्यूज के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि इनको परिभाषित कैसे किया जाए, ये तय करना काफी मुश्किल होता है. उन्होंने कहा कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पास कुछ परिभाषाएं हैं, लेकिन इनको परिभाषित करने के लिए कोई कानून नहीं हैं. इसलिए सभी मामले अपने तथ्यों और योग्यताओं पर हैं, जिनकी तब जांच की जाएगी.'
चुनाव आयोग ने क्यों की कानून बनाने की मांग?
फेक न्यूज के कारण बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाओं को देखते हुए चुनाव आयोग की तरफ से ये मांग की गई है. इस साल मॉब लिंचिंग की वजह से अब तक करीब 28 लोगों की जान जा चुकी है. ये फेक न्यूज ज्यादातर वाट्सऐप और सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंचाई जाती है.
लवासा ने कहा, 'फेक न्यूज पर लाया गया कानून गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है, यह बात इस कानून को लाने में बाधा नहीं होनी चाहिए. एक सभ्य समाज में कानून, बनाने वालों और नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं.'
दूसरे देशों में होती रहती है कोशिश
वहीं दूसरी तरफ फेक न्यूज से निपटने के लिए विदेशों में हमेशा कोशिशें चलती रहती हैं, जैसे सिंगापुर में फेक न्यूज के कारणों का पता करने के लिए और इससे निपटने के लिए समिति गठन की गई. इस समिति ने देश की सरकार से ऐसा कानून लान की सिफारिश की जो सोशल मीडिया को कंटेंट में पारदर्शिता और जबावदेही लाने के लिए प्रेरित करे.
वहीं जर्मनी में भी सोशल मीडिया कंपनियों को उस तरह के कंटेंट को हटाने के लिए मजबूर किया गया जो उनके देश के क्रिमिनल कोड का उल्लंघन करता है.
लवासा ने न्यूज18 को बताया कि अगर वोटर्स से जाति और धर्म के आधार पर वोट मांगे जाते हैं तो इसके लिए बाद में जांच की जाएगी.
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