16 की उम्र में कासिम (नाम बदला हुआ) बहुत शांत स्वभाव का है. वह काफी प्रतिभाशाली भी है. आतंकी कमांडर बुरहान वानी की 8 जुलाई को हुई मौत के बाद कश्मीर घाटी में अगले कुछ दिनों तक चले प्रदर्शन के दौरान कासिम कभी-कभी घाटी की मुख्य सड़क पर टहलने निकल आया करता था.
उसके मन में वहां हो रहे पथराव, आंसू गैस के इस्तेमाल और हो-हल्ला को लेकर काफी जिज्ञासा थी. ये मुमकिन है कि उसने भी मजे के लिए एक-दो पत्थर उठा कर फेंके थे.
हमें ये समझने में गलती नहीं करनी चाहिए कि कश्मीर घाटी को जिस युवा ताकत ने निष्क्रिय कर दिया था, उनके लिए ये सब मस्ती से ज्यादा कुछ भी नहीं था.हालांकि कासिम की मां उसे ज्यादातर समय घर के अंदर बंद रखती थी. इस कड़े निर्देश के साथ कि न तो उसे चोट लगनी चाहिए न ही किसी मुसीबत में पड़ना चाहिए.
कासिम के मुताबिक, पिछले चार महीने की अशांति के दौरान ज्यादातर समय वो अपने कमरे में पढ़ता रहता था. उसका साथ देने अक्सर उसके एक या दो साथी आ जाया करते थे. ये लोग साथ पढ़ते थे फिर साथ में ही कसरत किया करते थे या फिर संगीत सुनते थे और टीवी देखते थे.
इसके अलावा वे इंटरनेट से डाउनलोड की गई फिल्में भी देखते थे, जो घाटी में इंटरनेट के सस्पेंड होने से पहले किया गया था. आजकल, कासिम बहुत मेहनत से पढ़ाई में लगा है. पहले से कहीं ज्यादा क्योंकि जम्मू-कश्मीर में बोर्ड परीक्षा होने वाली है और कासिम 10वीं का छात्र है.
परीक्षा में छूट नहीं नियमित पढ़ाई चाहिए
क्लास 10 को बोर्ड ईयर भी कहा जाता है. लेकिन वो हताश और निराश है. वो कहता है, 'परीक्षा एक तरह की प्रतियोगिता है, और उसके जैसे छात्रों को जिस तरह का फायदा पहले था, वो अब नहीं है.'
राज्य सरकार ने घोषणा की है कि छात्रों को परीक्षा में सिर्फ 50 प्रतिशत सवालों के ही जवाब देने हैं. वे पूरे प्रश्नपत्र से कोई भी सवाल चुन सकते हैं और जरूरी नहीं कि वो सिलेबस के अलग-अलग हिस्सों से संबंधित बने भाग का हो.
सरकार की दलील है कि स्कूल में अब तक सिलेबस के आधे हिस्से की ही पढ़ाई हुई है. सरकार के मुताबिक स्कूलों में बंदी होने से पहले, सिलेबस के 50 प्रतिशत हिस्से की ही पढ़ाई हो पायी थी.
लेकिन कासिम का कहना है, 'जिन लोगों ने इस दौरान घर पर पढ़ाई नहीं की और अपना पूरा समय पत्थर फेंकने में बिताया, अब वे भी परीक्षा में 450 अंक हासिल कर लेंगे. ऐसे में हमारा क्या फायदा?'
छात्रों के भविष्य का नुकसान
सरकार का ये निर्णय सच में दोषपूर्ण है. एक तरफ, इस तरह के फैसले से कश्मीर में एक बार फिर से ऐसी पीढ़ी तैयार होगी जो नकल करके और प्रमोशन के जरिए डिग्री और सर्टिफिकेट हासिल की हुई होगी.
कुछ वैसा ही जैसे नब्बे के दशक में कई-कई दिनों, महीनों और सालों तक रेगुलर क्लास अटेंड नहीं करने के कारण ‘जीरो ईयर’ घोषित कर दिया जाता था.
एक तरफ, ये निर्णय कासिम जैसे युवाओं को ये संदेश देती है कि पढ़ाई करने के बजाय पत्थर फेंकना उन्हें ज्यादा मस्ती दे सकती है.
वहीं दूसरी तरफ उनके महीनों की मेहनत एक तरह से बेकार हो गई थी, क्योंकि उनके लिए ज्यादा अंक हासिल करने से लेकर कॉलेज में एडमिशन पाने और नौकरी ढूंढने का संघर्ष कमोबेश पहले की तरह ही बना हुआ है.
इस फैसले से सबसे घातक संदेश उन पत्थर फेंकने वाले युवाओं और उन लोगों को जाता है, जिन्होंने घाटी में लोगों की जिंदगी रोक दी थी. उन्हें ऐसा संदेश जाएगा कि ऐसी परिस्थिति में वे सरकार पर निर्भर हो सकते हैं.
स्कूल से निकल सड़कों पर निकले छात्र
हमें नहीं भूलना चाहिए कि कश्मीर घाटी में बैरिकेड पर पथराव करने वाले ज्यादातर छात्र थे. कश्मीर घाटी में जिस जबरदस्त तरीके से बाधा खड़ी करने की कोशिश की गई, मुझे पूरी उम्मीद है कि अभी हम कश्मीर घाटी में जिसे सामान्य स्थिति मान रहे हैं वो अगले साल आते तक एक भ्रम बनकर रह जाएगा.
मैं शिद्दत से चाहता हूं कि मैं गलत साबित होऊं, लेकिन अगर फिर भी वो हालात पैदा हो गए तो जो लोग इन युवाओं और छात्रों को सड़क पर उतरने के लिए प्रेरित करते हैं, वे उन्हें इस बात का भी भरोसा दिला देंगे कि इससे उनकी पढ़ाई का ज्यादा नुकसान नहीं होगा, और सरकार इस बात का ध्यान रखेगी कि उन्हें प्रतियोगी परीक्षा में ज्यादा नुकसान नहीं होगा.
फौरी तौर पर ये कहा जा सकता है कि, इस फैसले से उन लोगों को सरकार की परोक्ष सहमति मिल जाती है, जिन्होंने इस साल हुए हंगामे को अंजाम दिया.
बुरहान वानी की मौत के अगले कुछ दिनों बाद तक, घाटी के ज्यादातर लोग या तो अपने घर के बाहर बाड़े में बैठ हुए थे या घाटी में जल्द से जल्द ‘सामान्य स्थिति’ की इच्छा कर रहे थे.
लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि राज्य सरकार को घाटी के सभी इलाकों में पहुंचने और वहां अपना अधिकार स्थापित करने में दो महीने से ज्यादा का समय लग गया. तब तक उन्माद फैलाने वाले वहां जड़ जमा चुके थे.
अगर सरकार ने शुरुआत में ये सोचा था कि ये आंदोलन अपने आप खत्म हो जाएगा, तो वो उम्मीद गलत साबित हुई. सरकारें उम्मीद पर नहीं फलती-फूलती. ये सरकार कासिम के प्रति जवाबदेह है.
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