अफगानिस्तान के हिंदूकुश पर्वत श्रंखलाओं से उठे भूकंप से दिल्ली-एनसीआर थर्रा कर रह गया. रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 6 थी. हालांकि इससे दिल्ली और एनसीआर में किसी नुकसान की खबर नहीं है. लेकिन इस कंपन से एक बार फिर सुरक्षा के सवाल ने दिल्ली-एनसीआर के भविष्य को लेकर आशंकाओं की हलचल तेज कर दी है. अगर 6 रिक्टर स्केल का भूकंप दिल्ली में आया तो फिर तबाही की कल्पना नहीं की जा सकती है.
भले ही दिल्ली में भूकंप का एपिसेंटर न बने लेकिन दिल्ली को हिमालयी क्षेत्र से सबसे ज्यादा खतरा है. हिमालयी इलाकों में अगर भीषण भूकंप आया तो दिल्ली के लिए संभल पाना बेहद मुश्किल होगा. हिमालय के करीब होने की वजह से दिल्ली को भूकंपीय क्षेत्र के जोन चार में रखा गया है जो सबसे खतरनाक जोन से केवल एक पायदान नीचे है. जोन-4 में होने की वजह से दिल्ली भूकंप का एक भी बड़ा झटका सहन नहीं कर सकती है. जोन पांच को भूकंप का सबसे खतरनाक जोन माना गया है जिसमें हिमालय, गोवाहटी और श्रीनगर आता है जबकि जोन चार में देहरादून, दिल्ली, जमुनानगर, पटना, मेरठ, जम्मू, अमृतसर और जालंधर आते हैं.
भूकंप से दो अलग-अलग इलाके प्रभावित होते हैं. भूकंप के एपिसेंटर के आसपास के 70 किमी तक के दायरे में तबाही तय रहती है तो उसके बाद एपिसेंटर से 400 किमी के दायरे के इलाके में इसकी तीव्रता प्रचंड रूप ले लेती है. 26 जनवरी 2001 में भुज में 8.1 की तीव्रता का भूकंप आया था. लेकिन इसने 310 किमी दूर अहमदाबाद की ऊंची ऊंची इमारतों को जमीदोज़ कर दिया था.
पिछले काफी समय से हिमालयी इलाकों में बड़े भूकंप आने की आशंका जताई जा रही है. हिमालय से दिल्ली की दूरी 350 किमी की है. ऐसे में हिमालयी क्षेत्र में भूकंप से पैदा होने वाली ऊर्जा से दिल्ली को सबसे ज्यादा खतरा है. हिमालय में भूकंप का केंद्र होने के बावजूद दिल्ली में भारी तबाही हो सकती है.
हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और नेपाल में भूकंप का केंद्र बनने से भी दिल्ली दहलेगी. दिल्ली और उससे सटे इलाके कई फॉल्ट लाइन से होकर गुजरते हैं. दिल्ली-मुरादाबाद फॉल्ट, दिल्ली-हरिद्वार और सोहना फॉल्ट लाइन में जमीन के भीतर चट्टानों की अलग-अलग दिशा में हलचल होती रहती है. ऐसे में बड़े भूकंप का साया दिल्ली पर लगातार मंडराता रहता है.
तीन साल पहले नेपाल में भूकंप आया था. लेकिन उसके झटके पूरे उत्तर भारत में महसूस किए गए. दिल्ली -एनसीआर में लोग अपने घरों से बाहर निकल आए थे. भाग्य ने दिल्ली का साथ दिया. झटकों से किसी बड़े नुकसान की खबर नहीं आई. लेकिन नेपाल में तबाही लाने वाले भूकंप ने दिल्ली-एनसीआर को दहला कर रख दिया.
दिल्ली में 27 जुलाई 1960 को 5.6 की तीव्रता का भूकंप आया था. इसकी वजह से दिल्ली की कुछ ही इमारतों को नुकसान हुआ था. लेकिन पिछले तीन दशक में जिस तरह से दिल्ली में नियमों की अनदेखी करते हुए अवैध निर्माण हुआ उससे 80 फीसदी इमारतों को असुरक्षित माना गया है. दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका की सुनवाई में एमसीडी ने बताया था कि दिल्ली की सिर्फ दस से बीस फीसदी इमारतें ही नेशनल बिल्डिंग लॉ का पालन कर रही हैं. नेशनल बिल्डिंग लॉ के मुताबिक इमारतें भूकंप, आग या फिर बाढ़ जैसे हालातों को झेलने में मजबूत रहती हैं. ये लॉ बिल्डिंग की डिजाइन सुनिश्चित करता है ताकि किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटा जा सके. लेकिन 80 फीसदी इमारतों के असुरक्षित होने से अगर नेपाल जैसा भूकंप दिल्ली में आया तो तकरीबन अस्सी लाख लोगों की जान जा सकती है.
दिल्ली में भूकंप का सबसे बड़ा खतरा यमुना किनारे बने इलाकों में है. इन इलाकों की संकरी गलियों में बने बड़े और ऊंचे मकान भूकंप का बड़ा झटका सहने की हालत में नहीं हैं. यहां नेशनल बिल्डिंग लॉ के तहत मकानों का निर्माण नहीं हुआ है और न ही प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए बनाए गए नियमों का पालन हुआ है. ऐसे में दिल्ली में सबसे बड़ा खतरा यमुना पार इलाके में है.
भूकंप की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है. लेकिन पुराने भूकंपों की त्रासदी से सबक लेते हुए अगर सावधानियां बरती जाएं तो नुकसान को कम जरुर किया जा सकता है. जापान जैसा देश इसका बड़ा उदाहरण है जो बड़े बड़े भूकंपों के बावजूद मजबूती से डटा हुआ है. लेकिन विडंबना ये है कि कुदरत की तबाही का मंजर देखने के बाद हम लोग उसे जल्द भुला जाते हैं.
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