क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि काले वस्त्र पहने और माथे पर भस्म लगाए हिंदू श्रद्धालु अपनी सालाना मंदिर तीर्थयात्रा के दौरान एक मस्जिद की परिक्रमा करें और फिर चर्च के तालाब में स्नान करें ? यह धार्मिक सौहार्द्र की कोई काल्पनिक कहानी नहीं है बल्कि केरल में वास्तविक जीवन का दृश्य है. जहां प्रसिद्ध सबरीमला अयप्पा मंदिर के श्रद्धालु सालाना ‘मंडलम - मकरविलक्कु तीर्थयात्रा के तहत एक मस्जिद और चर्च की यात्रा करते हैं.
कोट्टायम जिले में स्थित एरुमेली नैनार जुमा मस्जिद और पड़ोसी अलाप्पुझा स्थित आर्थुनकल सेंट एंड्रयूज बासिलिका ने नवंबर में शुरू होने वाली दो महीने लंबी तीर्थयात्रा के लिए दशकों से अपने-अपने द्वार भगवान अयप्पा के श्रद्धालुओं के लिए खोल रखे हैं.
भगवान अयप्पा की एक मुस्लिम युवक और ईसाई पादरी से थी दोस्ती
पारपंरिक काले वस्त्र और मनकों की माला पहने माथे, सीने और बांहों पर भस्म लगाए हिंदू श्रद्धालु हर साल मस्जिद और चर्च जाते हैं और प्रार्थना करते हैं. इस तरह वे भगवान अयप्पा की एक मुस्लिम युवक और एक ईसाई पादरी से दोस्ती की स्थानीय कथा को जीवंत कर देते हैं.
यह देखना बहुत ही सुखद अनुभूति देता है कि किस तरह से मस्जिद और चर्च प्रबंधन खुले दिल से उनका स्वागत करता है और उन हिंदू श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं मुहैया करता है, जो ‘स्वामी शरणम अयप्पा’ मंत्र का उद्घोष कर रहे होते हैं. यह मस्जिद वावर को समर्पित है. स्थानीय किंवदंती के मुताबिक वावर, भगवान अयप्पा के मुस्लिम साथी थे. हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान अयप्पा पंडलम के एक राजा के दत्तक पुत्र थे.
देश भर में तनाव के समय भी यहां होता है साप्रदायिक सौहार्द्र
वहीं, आर्थुनकल चर्च के बारे में लोगों का कहना है कि स्थानीय लोगों के बीच गोरी त्वचा वाले फादर के रूप में लोकप्रिय एक व्यक्ति अयप्पा के एक जिगरी दोस्त थे. यहां तक कि जब-जब देश में धर्म के नाम पर तनाव देखने को मिला तब-तब इस मंदिर, चर्च और मस्जिद ने केरल में गहराई तक अपनी जड़े जमाए सांप्रदायिक सौहार्द्र का अनूठा उदाहरण पेश किया.
एरूमेली महल्ला मुस्लिम जमात के संयुक्त सचिव हकीम के मुताबिक न सिर्फ केरलवासी बल्कि तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के श्रद्धालु भी हर साल वावर मस्जिद आते हैं. जो सबरीमाला से करीब 60 किमी की दूरी पर स्थित है. वे लोग मंदिर जाने के लिए पहाड़ी पर चढ़ने की शुरूआत करने से पहले वहां दुआ करते हैं.
उन्होंने बताया कि काफी संख्या में श्रद्धालु नवंबर-जनवरी सालाना तीर्थयात्रा के दौरान मस्जिद की यात्रा करते हैं. वे मस्जिद की परिक्रमा करते हैं और वे परिसर में नारियल तोड़ते हैं. उन्होंने कहा कि अयप्पा और वावर के बीच दोस्ती की कहानी केरल में गहरी जड़ें जमाए धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द्र को प्रदर्शित करती है.
श्रद्धालू माला निकाल कर करते हैं चर्च में स्नान
सदियों पुरानी मस्जिद के प्रशासन की जिम्मेदारी देख रहा जमात तीर्थयात्रियों के लिए पार्किंग सहित अन्य सुविधाएं मुहैया कराता है. नैनार जुमा मस्जिद भी चंदनकुडम नाम से एक सालाना उत्सव करता है. यह अयप्पा श्रद्धालुओं का एक सामूहिक नृत्य है. इसका आयोजन तीर्थयात्रा के संपन्न होने पर किया जाता है.
इस बीच आर्थुनकल चर्च के पादरी फादर क्रिस्टोफर एम आर्थरसेरील ने कहा कि सबरीमाला श्रद्धालुओं की अगवानी करने की इस चर्च की एक पुरानी और लंबी परंपरा रही है. सबरीमाला में पूजा अर्चना करने के बाद अपनी माला निकालने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु 16वीं सदी के इस गिरिजाघर की यात्रा करते हैं. जिसे पुर्तगाली मिशनरियों ने बनाया था. वे वहां अपनी माला निकालते हैं.
उन्होंने बताया कि सेंट सेबेस्टियन की प्रतिमा के सामने अपना सिर झुका कर माला निकालने के बाद श्रद्धालु चर्च परिसर में स्थित जलाशय में या समुद्र में स्नान करते हैं.
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