जब कोई जानवर अपनी ही पूंछ चबाना शुरू कर दे, तो ये मान लिया जाता है कि ये उसके आगे चलकर पागल होने के संकेत हैं. अफसोस की बात है कि कश्मीर अब उसी हालात में पहुंच गया है.
गुरुवार रात श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में स्थित जामिया मस्जिद के सामने डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित की हत्या से साफ है कि कश्मीर अब सांपों के घर जैसा बन गया है. वहां के बाशिंदे अब एक-दूसरे को मारने पर आमादा हो गए हैं. कश्मीर में डर, अराजकता और पागलपन का माहौल बन गया है. कश्मीरी आज ऐसे समुदाय के तौर पर देखे जा रहे हैं, जिन्हें एक दूसरे को मारने में भी संकोच नहीं. आज कश्मीरी खुद अपने हाथों से अपनी जन्नत को आग लगाकर खत्म करने पर आमादा हैं.
ड्यूटी करने के लिए मारे गए अयूब
आरोप है कि अयूब पंडित को भीड़ ने मस्जिद के सामने इसलिए पीटकर मार डाला क्योंकि वो वहां भारत विरोधी नारे लगाने वालों और मौजूद पत्थरबाजों के वीडियो बना रहे थे. पागल हुई भीड़ ने डीएसपी अयूब पंडित को नंगा करके पत्थरों से पीट-पीटकर मार डाला. ये मंजर कुछ मध्य युग के उसी दौर की याद दिलाता है, जिसका तसव्वुर इस्लामिक स्टेट करता है. ये भीड़ का तालिबानी बर्ताव था. मोहम्मद अयूब पंडित की हत्या को बयां करने के लिए सिर्फ एक शब्द काफ़ी है-बर्बरता.
एक शख्स, जिसके नाम में मोहम्मद हो, उसे मस्जिद के सामने उस रात पीट-पीटकर मार दिया जाए, जिसे इस्लाम में शब-ए-क़द्र कहा जाता है. जिस रात के बारे में कहा जाता है कि इसी दिन पैगंबर मोहम्मद साहब को कुरान की पहली आयतों की जानकारी हुई थी. ये वारदात न सिर्फ इंसानियत के खिलाफ है, बल्कि उस पाक रात की भावना के भी खिलाफ है, जिसका जश्न मनाने भीड़ मस्जिद में इकट्ठा हुई थी.
अपनी ड्यूटी निभा रहे अयूब पंडित का कत्ल करके पागल भीड़ ने न सिर्फ इंसानियत और कश्मीरियत को शर्मसार किया है, बल्कि इस्लाम को भी दागदार किया है.
साफ है कि कश्मीर घाटी के लोगों को बहुत गंभीर बीमारी हो गई है. भारत सरकार से सियासी तरीके से भिड़ने के बजाय, यहां के जिहादी और पत्थरबाज अब अपने ही लोगों के खून के प्यासे हो गए हैं. आज कश्मीरी बनाम कश्मीरी की ये लड़ाई बेहद खूनी और खतरनाक हो गई है.
ये नया दौर तब सामने आया जब आतंकवादियों ने सेना के कश्मीरी अफसर उमर फैय्याज को उसकी बहन की शादी से एक दिन पहले अगवा करके मार डाला. कत्ल से भी ज्यादा अफसोसनाक थी इस हैवानियत पर कश्मीरियों की खामोशी. यानी वो अपने लोगों के खिलाफ इस हिंसक बर्ताव को कहीं न कहीं मंजूर कर चुके हैं.
फिर, छह दिन पहले आतंकवादियों ने छह कश्मीरी पुलिसवालों को मार डाला. उनके अंदर इतना जहर भरा था कि उन्होंने मारे गए पुलिसवालों के शवों के साथ बर्बरता की. इससे पहले 28 मई को पांच पुलिसवाले और दो सुरक्षा गार्ड उस वक्त मारे गए थे, जब आतंकियों ने एक कैश वैन पर हमला किया था.
कश्मीर अब बदल गया है
अयूब पंडित की हत्या कायरता है, विश्वासघात है. इससे संकेत मिलता है कि कश्मीर की राजनैतिक लड़ाई अब अपने ही लोगों के खून की प्यासी हो गई है. ये कुछ-कुछ सांपों से जुड़े किस्से सा लगता है. सांपों के बारे में कहा जाता है कि वो दूसरों पर हमला करने के खूनी खेल के इतने आदी हो जाते हैं, वो फिर खुद को ही खाने लगते हैं. आज कश्मीर में यही हो रहा है.
कश्मीर का मसला बड़ा पेचीदा है. पिछले कई सालों से कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन चलाया जा रहा है. यहां के ज्यादातर लोगों के जहन में ये बात साफ नहीं है कि वो चाहते क्या हैं? आबादी का बेहद छोटा सा हिस्सा पाकिस्तान के साथ मिलना चाहता है. कुछ लोग कश्मीर को आजाद करके इसे एशिया का स्विटजरलैंड बनाने का ख्वाब देखते हैं. भारत को सुरक्षा कारणों से ये बात मंजूर नहीं. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भारत में रहकर कुछ और अधिकार पाने की बात करते हैं. वहीं बहुत से कश्मीरी ऐसे भी हैं जो भारत में रहना चाहते हैं. यहां की सेना, ब्यूरोक्रेसी और पुलिस बल में शामिल होना चाहते हैं.
कश्मीर में हमेशा से ही लोगों के ऐसे मिले-जुले खयालात रहे हैं. अलग-अलग उम्मीदें रहीं हैं. अलग-अलग मांगें रही हैं. इतने मतभेदों के बावजूद कश्मीरी आपस में शांति से रहते आए थे. वो इन मतभेदों को मंजूर करते आए थे. लेकिन आज की तारीख में भारत में रहने के समर्थकों की आवाज को इस खूनी तरीके से खामोश किया जा रहा है.
कश्मीर में ये नया दौर है. इसके आखिर क्या मायने हैं?
पहला तो यही कि अपनी अमन पसंदगी और सहनशीलता के लिए जाना जाने वाला कश्मीर अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक और नैतिक विरासत से मुंह मोड़ रहा है. वहां पर अब इस्लामिक कट्टरपंथ जड़ें जमा रहा है. अपनी राजनैतिक लड़ाई में कामयाब होने के लिए कश्मीरी इस्लामिक स्टेट के बताए हिंसा के फॉर्मूले पर अमल करने को राजी हैं.
दूसरी बात ये है कि कश्मीर में हिंसा का ये दौर बेहद खूनी हो गया है. सुरक्षा बल, आतंकवादी और यहां के कुछ बाशिंदे एक खतरनाक खेल का हिस्सा बन गए हैं. ऐसा लगता है कि हर हिंसक वारदात के बदले में और ज्यादा खून बहाना ही इनका मकसद हो गया है. हर मुठभेड़ के बाद और बर्बर तरीके से बदला लेने की कोशिश हो रही है. आज कश्मीरियत और इंसानियत पर बर्बरता, बदले की भावना और नफरत हावी हो चुकी है.
कश्मीरियों को बेहद सावधान रहने की जरूरत है. आज तक उनकी लडा़ई को इसीलिए समर्थन मिलता आ रहा था क्योंकि लोगों को लगता था कि वो अपना सियासी मुस्तकबिल खुद तय करना चाहते हैं. वो सम्मान से रहने की लड़ाई लड़ रहे हैं. वो बुनियादी इंसानी हक की मांग कर रहे हैं.
खत्म होगी कश्मीर के लिए हमदर्दी?
जब तक कश्मीरी अलगाववादी अहिंसा के रास्ते पर चलकर अपनी मांग उठा रहे थे, उन्हें पीड़ित के तौर देखा जाता था. उनके बारे में राय ये थी कि उनकी समस्या का राजनैतिक हल ढूंढा जाना चाहिए. वो देश के बंटवारे की चक्की में पिसे हुए लोग हैं, जिन्हें सिर उठाकर जीने का हक मिलना चाहिए.
लेकिन अगर कश्मीरी लोग इस तरह की बर्बरता से काम लेंगे. अपनी ड्यूटी करते बेगुनाह और निहत्थे लोगों को पीट-पीटकर मार डालेंगे, तो कश्मीरी लोग हमदर्दी के लायक नहीं माने जाएंगे. उन्हें जो समर्थन मिलता रहा है वो खत्म हो जाएगा. उनकी हैवानियत के बदले में सरकार की सख्ती को जायज ठहराया जाएगा.
कुछ साल पहले श्रीनगर के बोलेवार्ड में टहलते हुए मेरी नजर वहां दीवार पर लिखी एक इबारत पर पड़ी थी. उसमें लिखा था, 'डरो मत यहां भी इंसान रहते हैं'.
लेकिन मोहम्मद अयूब पंडित की पीट-पीटकर हत्या की घटना कश्मीर में आया बेहद खतरनाक मोड़ है. साफ है कि कुछ कश्मीरियों के दिल में शैतान ने डेरा जमा लिया है. इस शैतान ने उन कश्मीरियों से उनकी इंसानियत छीन ली है.
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