दिल्ली की हवा की गुणवत्ता के लिए किसी मशीन की आवश्यकता नहीं रही है, बल्कि दिल्लीवासियों पर इसका असर दिन पर दिन दिखने लगा है. शुक्रवार को तो सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा ने यहां तक कह दिया कि वह रिटायरमेंट के बाद दिल्ली शहर में नहीं रहना चाहेंगे, दिल्ली गैस चैंबर बन चुकी है.
आरआरटीएस प्रोजेक्ट (रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम की) की जरूरत पर जोर डालते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा कि शुक्रवार सुबह इतना जाम था कि वह शायद ही दो जजों के शपथ ग्रहण समारोह में समय से पहुंच पाते. जस्टिस मिश्रा, जस्टिस दीपक गुप्ता के साथ एक मामले की सुनवाई कर रहे थे इसी दौरान उन्होंने कहा, 'दिल्ली में न रहना ही सही है. मै दुआ करता हूं कि मैं यहां न बसूं. यह गैस चैबर बन चुका है.'
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की प्रदूषित हवा का असर यहां के लोगों पर साफ दिख रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की हवा इतनी हानिकारक हो चुकी है कि इसकी तुलना प्रतिदिन 15 से 20 सिग्रेट के धुएं के बराबार है. ऐसे में आरआरटीएस प्रोजेक्ट से कंजेशन कम हो सकता है, जिससे प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी.
दिल्ली सरकार ने फंड को लेकर जताई असमर्थता
हालांकि आरआरटीएस प्रोजेक्ट के लिए फंड देने में दिल्ली सरकार ने असमर्थता जताई है. साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह उसके फंड का भुगतान कर दे. इस प्रोजेक्ट पर कुल खर्च लगभग 22,552 करोड़ आएगा. जिसमें से दिल्ली सरकार को 11,038 करोड़ रुपए का भुगतान करना है और केंद्र सरकार को 5,686 करोड़ रुपए का. बाकी का भुगतान उत्तर प्रदेश सरकार को करना है.
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि कोई भी प्रोजेक्ट दया पर निर्भर नहीं करता है और शहर की जरूरतों के लिए जो प्रोजेक्ट जरूरी है उसके लिए फंड जुटाना सरकार का कर्तव्य है. कोर्ट का कहना है कि दिल्ली सरकार ऐसा व्यवहार नहीं कर सकती है.
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