प्रधानमंत्री मोदी भारत से भले ही जातिप्रथा को हमेशा के लिए खत्म करने की बात करते हैं. मगर दूसरी तरफ देश की आजादी के 70 साल बाद भी जातियों के बीच फैला भेदभाव एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है.
ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के संभल जिलें में सामने आया है, जहां दलितों के साथ भेदभाव करने की खबर सामने आ रही है. जिले के फत्तेपुर शमशोई गांव में दशकों से वाल्मीकि समाज के लोगों को गांव में बाल कटवाने पर रोक लगी हुई है.
उन्हें अपने बाल कटवाने के लिए गांव से 15-20 किलोमीटर की दूरी पर बसे चंदौसी और इस्लामनगर जैसे कस्बों में जाना पड़ता है.
क्या है पूरा मामला
दरअसल ऊंची जाति के लोगों ने वाल्मीकि और जाटव समाज के लोगों के गांव में बाल कटवाने पर दशकों से रोक लगा रखी है. ऊंची जाति के लोगों का आदेश है कि अगर कोई भी नाई इन दलितों के बाल या दाढ़ी काटेगा तो वो उस नाई की सेवाओं का हमेशा के लिए बहिष्कार कर देगें.
इस आदेश के बाद से कोई भी गांव का नाई वाल्मीकि परिवारों को अपनी सेवाएं नहीं देता है. शमशोई गांव की आबादी में 15,000 ठाकुर और ब्राह्मण हैं, जबकी करीब 1,250 वाल्मीकि रहते हैं.
पुलिस में दर्ज कराई थी शिकायत
कुछ दिनों पहले एक मुस्लिम व्यक्ति ने गांव के अंदर वाल्मीकियों के बाल और दाढी़ बनानी शुरू की थी. मगर ऊंची जातियों के दबाव के कारण उसने भी कुछ दिनों बाद अपनी सेवाएं देने से मना कर दिया.
इस बात से खफा होकर वाल्मीकि समुदाय ने पुलिस में अपनी शिकायत दर्ज कराई. लेकिन पुलिस गांव में पहुंची तो सारे नाई गांव छोड़कर भाग गए.
24 घंटे का अल्टीमेटम
सालों से चले आ रहे इस बहिष्कार को लेकर गांव के सभी दलित परिवारों में काफी रोष है. गांव के प्रधान छोटे लाल दिवाकर ने बताया कि सभी नाई ऊंची जातियों के दबाव में है.
इस मामले में सोमवार को भारतीय वाल्मीकि धर्म समाज के राष्ट्रीय मुख्य संचालक लल्ला बाबू द्रविड़ और अन्य समुदायों के नेताओं ने एक साथ गांव में पंचायत की थी.
पंचायत के बाद उन्होंने ऊंची जाति के लोगों को 24 घंटे में अपना आदेश वापस लेनो को कहा है. उन्होंने कहा कि अगर वो ऐसा नहीं करते हैं तो गांव के सभी वाल्मीकि समुदाय के लोग मुस्लिम धर्म को अपना लेंगे.
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