दिल्ली सरकार और एमसीडी के लाख दावों के बावजूद डेंगू-मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. मरीजों की बढ़ती संख्या से दिल्ली सरकार और नगर निगम के अधिकारियों के हाथ-पांव फूलने लगे हैं.
दिल्ली में एक बार फिर से डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया ने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं. दिल्ली नगर निगम के ताजा आंकड़ों ने सरकार की नींद उड़ा दी है. पिछले साल की तुलना में डेंगू मरीजों की संख्या में दोगुनी बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
पिछले महीने ही दिल्ली सरकार ने डेंगू और चिकनगुनिया के खतरे से निपटने के लिए तीनों एमसीडी को 25 करोड़ रुपए जारी किए थे. एमसीडी को पैसे जारी करने को लेकर एमसीडी और दिल्ली सरकार में काफी दिनों से रार चल रही थी.
दिल्ली में इस साल अब तक डेंगू के 237 और चिकनगुनिया के 140 और मलेरिया के 150 मामले सामने आ चुके हैं.
पिछले साल इस अवधि तक डेंगू के 119 मामले और साल 2015 में अब तक 52 मामले सामने आए थे.
जबकि, पिछले साल चिकनगुनिया के एक मामले और साल 2015 में अब तक कोई भी मामला सामने नहीं आया था.
इस साल मलेरिया के मरीजों की संख्या में सबसे ज्यादा इजाफा हुआ है. सिर्फ जुलाई महीने में ही लगभग 80 मामले मलेरिया के सामने आए हैं. मलेरिया के मरीजों की संख्या इस साल अब तक 150 तक पहुंच चुकी है.
पिछले साल मलेरिया के अब तक 104 मामले और साल 2015 में मलेरिया के अब तक 38 मामले दर्ज किए गए थे.
दिल्ली के एलजी अनिल बैजल डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के निपटने के लिए लगातार बैठक कर रहे हैं. पिछले महीने ही अनिल बैजल ने दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री और अधिकारियों के साथ कई दौर की बैठक की थी.
दिल्ली के एलजी अनिल बैजल ने नगर निगम के अधिकारियों को पिछले महीने ही जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के आदेश दिए थे. एलजी ने नगर निगम को सख्त हिदायत दी थी कि इस बार अगर मामला बिगड़ता है तो लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को बख्शा नहीं जाएगा.
लेकिन, लगता है कि एलजी के इस सख्त रुख के बाद भी दिल्ली सरकार और नगर निगम के पार्षदों और अधिकारियों पर कोई असर नहीं हुआ.
हम आपको बता दें कि दिल्ली सरकार ने पूर्वी नगर निगम को 4 करोड़ 65 लाख, उत्तरी नगर निगम को 11 करोड़ 50 लाख और दक्षिणी नगर निगम को 8 करोड़ 38 लाख रुपए देने का फैसला किया था.
पिछले कई सालों से दिल्ली में चिकनगुनिया और डेंगू जबरदस्त तरीके से पैर पसार रहा है. दिल्ली वासियों को एक बड़ी उम्मीद इस बार एमसीडी चुनाव में जीते पार्षदों से थी.
लेकिन, डेंगू और चिकनगुनिया के बढ़ते लगातार मामले ने इन पार्षदों के चुनावी वायदों का झूठा साबित कर दिया है. पिछले एमसीडी चुनाव में डेंगू और चिकनगुनिया का मुद्दा छाया रहा था. हर राजनीतिक पार्टी ने इसको मुद्दा बनाया था.
दिल्ली में पिछले कुछ सालों से डेंगू और चिकनगुनिया के कारण लगातार मौतें हो रही हैं. हाल के वर्षों में डेंगू से सबसे ज्यादा 60 लोगों की मौत 2015 में हुई थी.
दिल्ली नगर निगम और दिल्ली सरकार के तरफ से हर साल ठोस पहल की बात की जाती रही है. पर, हर साल यही कहानी दोहराती रहती है.
साल 2016 में एडिस मच्छर का असर डेंगू के रूप में कम और चिकनगुनिया के रूप में अधिक नजर आया था. पिछले साल दिल्ली का कोई भी अस्पताल ऐसा नहीं था जहां पर चिकनगुनिया का मरीज भर्ती नहीं था.
दिल्ली के अस्पतालों का आलम ये था कि मरीजों को बेड नहीं मिलने के कारण घर लौटना पड़ रहा था. अस्पतालों में बेड न होने के कारण मरीज फर्श पर ही लेट जाते थे.
एमसीडी चुनाव में आप की करारी हार के बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी डेंगू और चिकनगुनिया को लेकर लगातार मीटिंग बुला रहे हैं. केजरीवाल लगातार कहते आ रहे हैं कि डेंगू और चिकनगुनिया से लड़ने के लिए दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे एनसीआर को मिलकर काम करना होगा.
पिछले महीने दिल्ली सरकार ने एक आदेश जारी किया था जिसमें कहा गया था कि इस साल निजी अस्पतालों की फीस स्वास्थ्य विभाग तय करेगा. साथ ही मरीजों को नुकसान करने वाली दवाओं को प्रतिबंधित कर दिया गया है.
दिल्ली सरकार ने दिल्ली के सभी निजी और 26 सरकारी अस्पतालों को डेंगू और चिकनगुनिया के मरीजों को भर्ती नहीं करने पर कार्रवाई की बात कही है. दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग ने सभी 262 डिस्पेंसरियों को सुबह 9 बजे से शाम चार बजे तक खोलने का फरमान जारी कर रखा है.
दिल्ली के सभी अस्पतालों को बुखार में दी जानी वाली पैरासिटामोल और ग्लूकोज के स्टॉक और बढ़ाने का निर्देश जारी किया गया है.
दिल्ली में कई कारणों से मच्छरों का लारवा बढ़ रहा है. मच्छरों से बचाव के लिए एमसीडी लगातार दवाओं का छिड़काव कर रहा है. तमाम कोशिशों के बावजूद मच्छरों पर लगाम नहीं लगाया जाता है. एमसीडी की कोशिशों को नकारते हुए कैग ने 2016 में एमसीडी के इस प्रयास को खारिज कर दिया था.
रिपोर्ट में कहा गया था कि एमसीडी में मच्छरों की निगरानी बेहतर तरीके से नहीं की गई. नगर निगम ने 42 करोड़ 85 लाख रुपए मच्छर रोधी ऐसे उपायों पर खर्च किए, जिसे राष्ट्रीय मच्छर जनित बीमारी नियंत्रण कार्यक्रम के तहत स्वीकृत हीं नहीं किया गया था.
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