तमाम चुनौतियों से घिरे रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने तमाम विवादित मुद्दों पर अपनी बात रखने का एक और मौका गंवा दिया है. बुधवार को वो नोटबंदी के मसले पर संसदीय समिति के सामने पेश हुए थे.
इस मौके पर वो उन कई सवालों के जवाब दे सकते थे, जो उनसे नोटबंदी के ऐलान के बाद से लगातार किये जा रहे थे.
उर्जित पटेल ने जो जानकारियां संसदीय पैनल को दीं, उनसे नोटबंदी पर तस्वीर कुछ तो साफ हुई है. मगर कई सवाल अनुत्तरित रह गए.
उर्जित पटेल को संसदीय समिति को बताना चाहिए था कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था और आम आदमी का क्या और कितना भला हुआ. क्योंकि देश ने लंबे वक्त तक नकदी की कमी का संकट झेला. दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए ये नकदी संकट हिला देने वाला था.
हम इन मुद्दों पर चर्चा करें इससे पहले बता दें कि उर्जित पटेल ने संसदीय समिति को बताया कि सरकार और रिजर्व बैंक के बीच नोट बैन को लेकर बातचीत पिछले साल की शुरुआत से ही हो रही थी. हालांकि इस बारे में औपचारिक चिट्ठी का लेन-देन 8 नवंबर को नोट बैन के एलान के कुछ दिनों पहले ही हुआ.
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इससे एक बात तो साफ होती है कि रिजर्व बैंक, नोटंबदी के मोदी सरकार के फैसले से पूरी तरह वाकिफ था. हां ये बात नहीं साफ होती कि क्या मोदी सरकार ने इस बारे में रिजर्व बैंक की चिंताओं की अनदेखी की थी?
पटेल ने नहीं दिए जवाब
कम से कम रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने तो अब तक ऐसा नहीं कहा है. लेकिन ये बात शायद हमेशा राज ही रहे, भले ही रिजर्व बैंक से आरटीआई के कितने भी सवाल कर लिये जाएं. उर्जित पटेल ने ये भी बताया कि 10 नवंबर के बाद से अब तक 9.2 लाख करोड़ के नये नोट बाजार में आ चुके हैं.
लेकिन, तीन ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब उर्जित पटेल ने संसदीय समिति को नहीं दिये. हालांकि वो ऐसा कर सकते थे.
पहला सवाल तो ये कि नोट बैन के बाद से कितने पुराने नोट बैंकिंग सिस्टम में वापस आए हैं. हालांकि उर्जित पटेल ने संसदीय समिति को बताया कि अभी इस बारे में आंकड़े इकट्ठे किये जा रहे हैं.
ये जवाब ठीक लगता है क्योंकि नोट बैन एक लंबी चौड़ी प्रक्रिया थी. और बैंकों में वापस आए नोटों की गिनती छोटा-मोटा काम नहीं. नोट बैन की मियाद तो 30 दिसंबर को ही खत्म हुई है. लेकिन सवाल ये है कि पूरे आंकड़े आने से पहले रिजर्व बैंक अंतरिम संख्या क्यों नहीं बता पा रहा है?
इस मोर्चे पर रिजर्व बैंक से पारदर्शिता की उम्मीद जायज है. क्योंकि कहा ये जा रहा है कि जितने नोट बैन हुए हैं वो कमोबेश सभी के सभी सिस्टम में वापस आ गए हैं. इससे ये बहस खत्म हो गई है कि नोटबंदी से बड़ी मात्रा में काला धन चलन से बाहर हो जाएगा.
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इसके अलावा रिजर्व बैंक के कई पूर्व अधिकारी जैसे कि उषा थोराट ये मांग कर चुके हैं कि रिजर्व बैंक को इस मामले में पारदर्शिता रखनी चाहिए. आंकड़े साझा करने से उसे परहेज नहीं करना चाहिए. तभी हम नोट बैन से होने वाले फायदे और नुकसान का ठीक-ठीक अंदाजा लगा सकेंगे.
9.2 लाख करोड़ रुपए बाजार में उतारे
दूसरा सवाल ये कि उर्जित पटेल को बताना चाहिए था कि कैश निकालने पर लगी पाबंदियां, पूरी तरह से कब तक हटेंगी. बैंकिंग सिस्टम कब से सुचारू रूप से 8 नवंबर के पहले के हालात में काम करने लगेगा?
इस मोर्चे पर उर्जित पटेल पूरी तरह खामोश रहे. उन्होंने संसदीय समिति के सवाल का गोलमोल जवाब दिया कि जल्द से जल्द हालात सामान्य हो जाएंगे.
उर्जित पटेल ने बताया कि 8 नवंबर को प्रधानमंत्री के नोट बैन का एलान करने के बाद से अब तक 9.2 लाख करोड़ के नए नोट बाजार में उतारे जा चुके हैं. यानी उर्जित पटेल के मुताबिक जितने पुराने नोटों पर पाबंदी लगी थी उसकी कीमत का साठ फीसदी सिस्टम में वापस भेजा जा चुका है.
इन आंकड़ों से साफ है कि नकदी का मौजूदा संकट अब तक खत्म हो जाना चाहिए था. लेकिन ये तो पूरी तरह से खत्म हुआ लगता नहीं.
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जमीनी सच्चाई क्या है? साठ फीसद नये नोट आ जाने के बावजूद बहुत से एटीएम खाली हैं. अभी भी एटीएम को नए नोटों के हिसाब से अपग्रेड ही किया जा रहा है?
बैंक अधिकारी खुद मानते हैं कि अभी बहुत से एटीएम काम नहीं कर रहे हैं. हालांकि अब रिजर्व बैंक ने एटीएम से रोजाना निकाली जा सकने वाली रकम बढ़ाकर 10 हजार कर दी है.
मगर, अभी भी लोग हफ्ते में सिर्फ 24 हजार रुपये ही अपने खाते से निकाल सकते हैं. इन पाबंदियों के चलते अभी भी लोग बड़ी तादाद में नकद पैसे बचाकर घरों में रख रहे हैं. नकदी संकट जारी रहने की ये भी बड़ी वजह है. उर्जित पटेल ये नहीं बता सके कि पैसे निकालने पर लगी ये पाबंदियां कब खत्म होगी.
तीसरा सवाल जो संसदीय समिति को उर्जित पटेल से पूछना चाहिए था कि नोटबंदी की अर्थव्यवस्था को कितनी कीमत चुकानी पड़ी है.
पिछले दो महीने में हम जो देख रहे हैं वो बस अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होने का अनुमान, घरेलू बाजार में खपत घटने का अनुमान, बैंकों के कर्ज देने की रफ्तार में कमी, औद्योगिक विकास में कमी और बेरोजगारी में तेजी से इजाफा होने की खबरें ही हैं.
रिजर्व बैंक को बताना चाहिए कि नोट बंदी से अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ, और इससे देश को कितना फायदा होगा इस बारे में रिजर्व बैंक को कुछ आंकड़े जमा करके देश को ये बताना चाहिए था. खास तौर से तब और जब रिजर्व बैंक की स्वायत्तता पर सवाल उठ रहे हों, जब उसके कामकाज के तरीकों पर निशाना लगाया जा रहा हो.
कहने का मतलब ये कि उर्जित पटेल ने संसदीय समिति के सामने पेश होकर जितने सवालों के जवाब दिये उनसे ज्यादा सवाल उन्होंने अनुत्तरित रहने दिये.
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