प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि नोटबंदी करने के पीछे उनका उद्देश्य छिपे हुए काले धन को बाहर निकालना और सिस्टम में वापस में लाना है. लेकिन छत्तीसगढ़ की पुलिस इससे सहमत नहीं है और इस आदेश को न मानने के पीछे उनके पास मजबूत कारण हैं.
माओवाद प्रभावित राज्यों की पुलिस का मानना है कि माओवादियों ने छतीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के जंगलों में गुप्त स्थानों और जमीनों के भीतर भारी मात्रा में धन दबा रखा है. ये धन 500 और 1000 रुपए के नोटों में हैं.
अब जबकि ये नोट गैरकानूनी हो चुके हैं, सुरक्षाबलों का मानना है कि माओवादी इन गुप्त स्थानों तक इस धन को निकालने के लिए जाने की कोशिश करेंगे. पुलिस चाहती है कि वे ऐसा न कर सकें. इस वजह से जंगलों में निगरानी रखी जा रही है.
इन गुप्त स्थानों की जानकारी सिर्फ माओवादियों के शीर्ष नेतृत्व को ही है. छत्तीसगढ़ पुलिस को यह लगता है कि बेचैन माओवादी नेतृत्व अपने कुछ भरोसेमंद आदिवासियों को यह धन निकालने को कह सकते हैं क्योंकि जंगल में उनकी गतिविधि जोखिम भरी हो सकती है.
पुलिस का यह मानना है कि यह धन तेंदु पत्ता (इसका उपयोग बीड़ी बनाने में होता है) के ठेकेदारों से उगाही, इंफ्रास्ट्रक्चर फर्म और व्यापारियों से लेवी लेकर जमा किया गया है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि माओवादी गैरकानूनी खनन माफियाओं से भी उगाही करते हैं. उगाही का एक अन्य जरिया भी है जो स्थानीय बोलचाल में माओवादी टैक्स कहा जाता है और यह ‘मुक्त क्षेत्र’ से गुजरने वाली गाड़ियों से लिया जाता है.
लेकिन सचमुच में कितना धन जंगलों के भीतर है? किसी को भी इसके बारे में सही अंदाजा नहीं है क्योंकि जो इन्हें पैसे देते हैं जो इनके डर से कुछ नहीं बोलते हैं.
इस धन के बारे में सिर्फ अटकलबाजी है जो एनकाउंटर के बाद माओवादियों के पास से बरामद कागजी या साहित्यिक स्रोतों के टुकड़ों पर निर्भर है.
कितनी बड़ी है माओवादियों की 'अर्थव्यवस्था'?
रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (आईडीएसए) की 2013 की एक रिपोर्ट के अनुसार माओवादी हर साल लगभग 140 करोड़ रुपए की उगाही करते हैं. हालांकि जमीन पर काम कर रहे पुलिस अफसरों के मुताबिक यह गलत अनुमान है.
छत्तीसगढ़ पुलिस ने बताया कि माओवादियों का असल में राज्य के दक्षिणी भाग पर कंट्रोल है और ये हर साल करीब 2000 करोड़ रूपए की उगाही करते हैं. साल दर साल के जमा को मिला दें तो पुलिस का यह मानना है कि करीब 7500 करोड़ रूपए इस समय छत्तीसगढ़ में दबे हुए हैं.
आतंकवाद की दुनिया की यह समानांतर अर्थव्यवस्था पहली बार 2007 में सामने आई, जब सीपीआई (माओवादी) के केंद्रीय समिति सदस्य मिसिर बेसरा की गिरफ्तारी हुई. बेसरा ने खुलासा किया कि माओवादियों ने उस साल 42 करोड़ रुपए हथियार, गोलाबारूद और विस्फोटक सामानों के लिए जबकि 2 करोड़ रूपए खुफिया जानकारी जुटाने के लिए और 16 करोड़ रूपए प्रचार, कंप्यूटर ट्रेनिंग, दस्तावेजीकरण और यातायात के लिए आवंटित किए थे. बेसरा को बाद में माओवादियों ने बिहार के एक कोर्ट के अहाते में पुलिस पर हमला करके छुड़ा लिया.
माओवादियों की उगाही मशीन झारखंड में भी है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार यह करीब 320 करोड़ रूपए सालाना है. लेकिन यह कितना सुरक्षित है? इसी साल अगस्त में झारखंड के चकरी-बकराकोचा के जंगल से दीमक खाए 29 लाख रूपए एक बैग में मिले. इसमें सभी 1000 रूपए के नोट थे. यह माना जा रहा था कि यह बैग कान्हू राम मुंडा द्वारा दबाया गया था, जो झारखंड में माओवादियों का एक बड़ा नेता है.
ओडिशा और महाराष्ट्र माओवादियों के प्रभाव वाले अन्य इलाके हैं, जहां से वे धन की उगाही करते हैं. मलकानगिरी, ओडिशा में हाल ही में हुए मुठभेड़ में 30 माओवादियों के मारे जाने के बाद सुरक्षा बलों की इस क्षमता को दिखाता है कि वे माओवादियों को पीछे धकेल सकते हैं और उसके नेतृत्व को चोट पहुंचा सकते हैं.
वैसे माओवादियों द्वारा खुफिया जानकारी, हथियारों और आपातकालीन मेडिकल पर किए जा रहे खर्च के अलावा, उन्होंने जंगलों में कितना धन छिपा रखा है, यह साफ नहीं है. पुलिस के सूत्रों के अनुसार माओवादी अपने कैडरों को उनके रैंक के अनुसार हर माह 2000 से 5000 रुपए भत्ता भी देते हैं.
बैंकों पर रखी जा रही नजर
10 नवंबर से पुलिस माओवाद प्रभावित इलाकों के बैंकों पर नजर रखे हुए है. अगर कोई बड़ी रकम के साथ आता है और उस धन के बारे में सही से नहीं बता पाता है तो पुलिस उससे पूछताछ करेगी. लेकिन यह संभव है कि सिर्फ जंगल ही छिपाने की जगह नहीं है. गांव, कस्बों और शहरों में रह रहे ओवरग्राउंड माओवादी समर्थक भी इस गैरकानूनी नकद के रखवाले हो सकते हैं. इससे इस तरह के नकद पर नजर रखने का काम और उसकी निशानदेही मुश्किल है.
माओवादियों के पास सुरक्षा एजेंसियों द्वारा अनुमानित रकम का अगर छोटा हिस्सा भी मौजूद है तो यह उन्हें बुरी तरह प्रभावित करेगा. यह उनके कामकाज को हाल में हुए किसी भी एनकाउंटर से ज्यादा बुरी तरह प्रभावित करेगा क्योंकि इसके बिना वे अपने संगठन को चलाने की स्थिति में नहीं होंगे. यह उन्हें अतिरिक्त उगाही से नई नकदी द्वारा अपनी जेबें भरने के लिए और भी उतावला करेगा.
प्रधानमंत्री का उद्देश्य जाली नोटों को खत्म करना और आतंकवाद की फंडिंग को बंद करना था. यह माओवादियों के ऊपर अप्रत्याशित आर्थिक स्ट्राइक है, जो सुरक्षाबलों के लिए खुशी की बात है.
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