(संपादक की ओर से- भारत गणराज्य अपने 70 बरस पूरे करने जा रहा है. ऐसे वक्त में पूर्व बीबीसी पत्रकार तुफ़ैल अहमद ने शुरू किया है, भारत भ्रमण. इसमें वो ये पड़ताल करने की कोशिश कर रहे हैं कि देश में लोकतंत्र जमीनी स्तर पर कैसे काम कर रहा है. तुफैल अहमद को इसकी प्रेरणा फ्रेंच लेखक एलेक्सिस डे टॉकविल से मिली. जिन्होंने पूरे अमेरिका में घूमने के बाद 'डेमोक्रेसी इन अमेरिका' लिखी थी. तुफ़ैल अहमद इस वक्त वॉशिंगटन स्थित मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट में सीनियर फेलो हैं. वो भारत भ्रमण के अपने तजुर्बे पर आधारित इस सीरिज में भारत की सामाजिक हकीकत की पड़ताल करेंगे. वो ये जानने की कोशिश करेंगे भारत का समाज लोकतंत्र के वादे से किस तरह मुखातिब हो रहा है और इसका आम भारतीय नागरिक पर क्या असर पड़ रहा है. तुफ़ैल की सीरीज़, 'डेमोक्रेसी इन इंडिया' की ये ग्यारहवीं किस्त है. इस सीरीज के बाकी लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
लोकतंत्र का मतलब है बहुमत की सरकार. ये बहुमत और सरकार व्यक्तियों की होती है, किसी समुदाय की नहीं. लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक खतरा ये है कि इसमें बहुसंख्यक समुदाय का सरकार पर पूरा नियंत्रण हो सकता है. फिर उनके अल्पसंख्यक समुदाय के हितों की अनदेखी का खतरा रहता है. यही वजह है कि ज्यादातर लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में ऐसी व्यवस्थाएं की जाती हैं, ताकि दबे-कुचले और कमजोर वर्गों के हितों का खयाल रखा जा सके.
भारतीय जनता पार्टी इस लोकतांत्रिक सिद्धांत को लगातार धकिया रही है, खास तौर से गुजरात में जहां पर बीजेपी पिछले दो दशकों से ज्यादा वक्त से राज कर रही है. गुजरात और अब तो दूसरे राज्यों में भी, बीजेपी ऐसी नीति लागू कर रही है, जिससे राष्ट्रीय राजनीति से मुसलमानों को संस्थागत तरीके से बेदखल किया जा सके.
विधानसभा चुनावों में मुस्लिमों को टिकट नहीं दे रही पार्टी
सूरत में मुस्लिम नेता सलीम वाय शेख ने मुझे बताया कि, 'भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए, बीजेपी मुसलमानों को राजनीति से बेदखल कर रही है. बीजेपी ने साल दर साल मुसलमानों को गुजरात में विधानसभा चुनाव के टिकट नहीं दिए. उन इलाकों में भी बीजेपी ने मुसलमानों को उम्मीदवार नहीं बनाया, जहां उनकी तादाद अच्छी खासी है'. सलीम शेख कहते हैं कि, 'आज मुसलमान मुख्यधारा से इसलिए दूर किए जा रहे हैं क्योंकि बीजेपी देश के संविधान की सब को साथ लेकर चलने की भावना का पालन नहीं कर रही है'. शायद, गनीभाई कुरैशी वो आखिरी मुस्लिम थे, जिन्होंने बीजेपी के टिकट पर गुजरात विधानसभा का चुनाव लड़ा था. ये बात आज से दो दशक पहले की है, जब गुजरात बीजेपी की कमान केशुभाई पटेल के हाथ में थी.
इसी राह पर चलते हुए बीजेपी ने सभी राज्यों में मुसलमानों को टिकट देने से परहेज का नियम बना लिया है. न तो बीजेपी ने 2017 के यूपी विधानसभा के चुनाव में किसी मुसलमान को उम्मीदवार बनाया, और न ही हाल ही में हुए कर्नाटक के चुनावों में. सूरत के रहने वाले आकार पटेल ने पिछले साल लिखा कि '1989 से बीजेपी ने गुजरात में लोकसभा और विधानसभा की 1300 सीटों पर चुनाव लड़ा है, लेकिन एक भी मुसलमान को पार्टी का उम्मीदवार नहीं बनाया'.
आकार पटेल ने आगे लिखा कि, 'जिन राज्यों में आज बीजेपी की सरकार है, उनमें बीजेपी के मुस्लिम विधायकों की संख्या कुछ इस तरह है. गुजरात-0, यूपी-0, महाराष्ट्र-0, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी बीजेपी का एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है'. आज बीजेपी देश की सबसे बड़ी सियासी पार्टी जरूर है. लेकिन एक भी राज्य में इसके पास मुस्लिम विधायक नहीं हैं. न ही सीधे लोकसभा के लिए चुने गए एक भी मुस्लिम सांसद हैं. जबकि नरेंद्र मोदी 'सबका साथ-सबका विकास' की बात करते हैं.
सूरत नगर निगम के पार्षद असलम साइकिलवाला कहते हैं कि, 'बीजेपी आज मुसलमानों का जनप्रतिनिधित्व खत्म करना चाहती है. ये एक योजनाबद्ध मिशन है. यहां तक के बीजेपी के पार्टी संगठन में भी मुसलमानों को अहम पद नहीं दिए जाते'. वो कहते हैं कि सूरत नगर निगम में 116 पार्षद हैं. सूरत नगर निगम के इलाके में 18-20 फीसद मुस्लिम आबादी है. लेकिन 2015 के सूरत नगर निगम के चुनाव में बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा. असलम साइकिलवाला कहते हैं कि बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे के नेताओं की भी कोई पूछ फैसले लेने में नहीं है.
बीजेपी के इस फॉर्मूले के चलते दूसरे पार्टियों का भी हुआ क्षरण
बीजेपी तो मुसलमानों को अलग-थलग कर ही रही है, इसकी वजह से भारतीय राजनीति में भी बड़ा बदलाव आ रहा है. इसी साल मार्च महीने में हर्ष मंदर ने एक दलित नेता के बारे में लिखा कि उसने मुसलमानों से कहा कि, 'आप पूरी ताकत से, भरपूर तादाद में हमारी रैलियों में आइए. लेकिन टोपी और बुर्का पहनकर बिल्कुल मत आइए'. हर्ष मंदर के कहने का मतलब था कि, कुछ दलित और कांग्रेसी नेता मुसलमानों को राजनीति से अलग कर रहे हैं, क्योंकि मुसलमानों से नफरत है. ये गुजरात में भी देखा जा सकता है. सूरत के एक पार्षद इकबाल बेलिम कहते हैं कि 1990 से कांग्रेस ने सूरत नगर निगम के चुने हुए मुस्लिम प्रतिनिधियों को भी अहम जिम्मेदारियां देने से परहेज किया है.
इकबाल बेलिम कहते हैं कि, 'कांग्रेस सोचती है कि अगर वो मुसलमानों को आगे बढ़ाएगी तो उसके हिंदू वोटर नाराज हो जाएंगे'. बेलिम मानते हैं कि आज कांग्रेस भी सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति कर रही है. वो कहते हैं कि, 'जहां बीजेपी मुसलमानों को राजनेता बनने से रोक रही है, वहीं कांग्रेस भी अब मुसलमानों को सूरत नगर निगम के चुनाव में कम ही टिकट दे रही है. अगर कांग्रेस मुसलमान को टिकट देती भी है, तो उस इलाके से जहां पर मुस्लिम वोटर की तादाद कम है'.
वोटिंग कम करने के लिए क्या ऐसे भिड़ाए जाते हैं तिकड़म?
जुबैर गोपालानी ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरात की गुजरात इकाई के उपाध्यक्ष हैं. वडोदरा में एक इंटरव्यू के दौरान जुबैर ने कहा कि गुजरात की 23 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोटरों की तादाद अच्छी खासी है. लेकिन इन सीटों पर बीजेपी के समर्थन वाले निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं और मुस्लिम वोट बंट जाते हैं. मुस्लिम समुदाय के वोटों के ऐसे बंटवारे को हर पार्टी बढ़ावा देती है. लेकिन जुबैर गोपालानी की एक बात ने मुझे बेहद चौंका दिया. उन्होंने कहा कि मुस्लिम इलाकों में वोटिंग के दिन बीजेपी मुसलमानों को तीर्थ यात्रा जैसे अजमेर शरीफ़ भेज देती है. मैंने जब बेयकीनी से कहा कि क्या ये महज इत्तेफाक है, तो जुबैर गोपालानी ने कहा कि ये छोटे पैमाने पर नहीं होता. सैकड़ों बसें अजमेर के लिए जाती हैं, जिनका इंतजाम मुस्लिम दलाल करते हैं.
इमरान खेड़ावाला अहदमबाद में कांग्रेस के विधायक हैं. वो तीन बार अहमदाबाद नगर निगम के पार्षद भी रह चुके हैं. खेड़ावाला कहते हैं कि बीजेपी अपने टिकट पर कोई मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारती. लेकिन, वो निर्दलीय मुस्लिम उम्मीदवारों को समर्थन जरूर देती है, ताकि मुसलमानों के वोट बंट जाएं. मैंने खेड़ावाला से कहा कि अगर बीजेपी मुसलमानों को टिकट दे भी दे, तो वो जीतेंगे नहीं. तब खेड़ावाला और दूसरे मुसलमान नेताओं ने मुझसे कहा कि, 'जब बीजेपी मुसलमानों की नुमाइंदगी नहीं करती, उनके मसले नहीं उठाती, तो फिर मुसलमान उसे क्यों वोट दें'.
इमरना खेड़ावाला ने कहा कि, 'गुजरात में कोई तीसरा मोर्चा नहीं है, इसलिए मुसलमानों के पास कांग्रेस के समर्थन के सिवा कोई चारा नहीं'. खेड़ावाला कहते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान भी बीजेपी के उम्मीदवार मुसलमान वोटरों के पास वोट देने की अपील करने नहीं जाते न ही वो ये कहते हैं कि मुस्लिमों की रोजमर्रा की दिक्कतों को वो दूर करेंगे.
अहमदाबाद के पत्रकार और सियासी समीक्षक ऋत्विक त्रिवेदी ने कहा कि गुजरात बीजेपी के लिए हिंदुत्व की प्रयोगशाला है. त्रिवेदी ने कहा कि गुजरात विधानसभा की सीटों का पुनर्गठन 2012 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुआ था. ये बंटवारा इस तरीके से किया गया कि मुस्लिम वोट बंट जाएं. कांग्रेस से कुछ पार्षदों ने मुझे बताया कि गुजरात के तमाम नगर निगमों में सीटों की सीमा इस तरह से तय की गई कि मुस्लिम वोट हाल के दिन में काफी बंट गए हैं.
'मुसलमानों को तरक्कीपसंद और समझदार नेता की जरूरत'
वडोदरा के रहने वाले तरक्कीपसंद मुस्लिम लेखक और विचारक डॉक्टर जे एस बंदूकवाला ने दलितों और मुस्लिम समुदाय में सुधार के लिए काफी आवाज उठाई है. मैंने डॉक्टर बंदूकवाला से गुजरात के सियासी हालात पर अपनी राय रखने के लिए कहा. डॉक्टर बंदूकवाला ने कहा कि, 'हमें हर नागरिक का बुनियादी तौर पर सम्मान करना चाहिए. मगर अफसोस की बात है कि भारत में बीजेपी और आरएसएस के अस्तित्व की बुनियाद ही मुसलमानों के प्रति नफरत है'. वो कहते हैं कि, 'आज मुसलमानों को ऊंचे दर्जे की लीडरशिप की जरूरत है, ताकि ऐसे हमलों का मुकाबला कर सके. बदकिस्मती से हमारे समुदाय ने ऐसा समझदार नेता अब तक नहीं पैदा किया है'.
हालांकि बंदूकवाला ये भी कहते हैं कि लोकतंत्र ने मुसलमानों को उनके हक के प्रति जागरूक किया है. वो कहते हैं कि, 'हम मुसलमान ये महसूस करते हैं कि हमारे पास वोट करने का अधिकार है और कम से कम कुछ लोग तो हैं, जो हमारी नुमाइंदगी करते हैं'. जब मैंने डॉक्टर बंदूकवाला से पूछा कि 2002 के दंगों का गुजरात की राजनीति पर क्या असर हुआ है, तो उन्होंने कहा कि, 'सियासी तौर पर तो मुसलमान लापता हो गया. उस वक्त के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिस्टम में इतना जहर घोल दिया था कि किसी भी मुसलमान का चुनाव जीतना नामुमकिन हो गया'. बंदूकवाला कहते हैं कि, 'जहां तक हिंदुओं की बात है, तो उनके लिए मुसलमान बिरादरी से बाहर का समुदाय बन गया. आज गुजरात से एक भी मुसलमान लोकसभा के लिए नहीं चुना जाता'.
बीजेपी की रणनीति एकदम साफ है: मुस्लिम वोटों को खारिज करो, हिंदुओं को एकजुट करो. जनवरी में राजस्थान के मंत्री जसवंत यादव ने कहा, 'अगर हिंदू मुझे वोट करे, अगर मुसलमान कांग्रेस को वोट करें'. बीजेपी नेताओं के ऐसे बयान सिर्फ इत्तेफाक नहीं हैं. ऐसा लगता है कि ये नेता उन कार्यशालाओं से निकलकर आते हैं, जहां से स्वयं प्रधानमंत्री मोदी की विचारधारा संचालित होती है. सीनियर पत्रकार तवलीन सिह ने लिखा था कि, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में कभी भी मुस्लिमों की सरेआम पिटाई या हास्यास्पद लव जिहाद थ्योरी की निंदा नहीं की. मोदी ने हिंसा के खिलाफ सिर्फ दो बार बयान दिया है. दोनों ही मामलों में पीड़ित दलित थे. मोदी ने एक बार भी मुसलमानों की पीटकर हत्या, या उन्हें जलाकर मार डालने की घटनाओं और उनके वीडियो इंटरनेट पर डालने की निंदा नहीं की. ऐसा लगता है कि ऐसी घटनाओं का उन पर असर नहीं होता.'
नरेंद्र मोदी के पांच करोड़ गुजराती वाले नारे में मुसलमान शामिल हैं?
मैंने अहमदाबाद के सेंटर फॉर सोशल जस्टिस के गगन सेठी से इस हालात पर तफ्सील से तब्सिरा करने को कहा, तो सेठी ने कहा कि, 'हम ने कई बार ऐसे मुद्दों पर बीजेपी को घेरने की कोशिश की है. लेकिन ये उनकी साफ रणनीति है'. गुजरात में वोटरों की तादाद पांच करोड़ से भी कम है. गगन सेठी कहते हैं कि जब मोदी राज्य के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने नारा गढ़ा, 'पांच करोड़ गुजराती'. इसका मकसद था कि बीजेपी को मुसलमानों के सिवा सबकी जरूरत है. सेठी आगे कहते हैं कि, 'मेरा मानना है कि उनका मुसलमानों से साफ कहना है कि तुम दोयम दर्जे के नागरिक हो, तुम हमारी दया पर निर्भर हो'.
प्रतीकात्मक तौर पर बीजेपी के कुछ राज्यसभा सांसद मुसलमान हैं. और पार्टी ने अपवाद के तौर पर कुछ मुसलमानों को गुजरात और दूसरे राज्यों के स्थानीय निकाय चुनावों में टिकट भी दिया है. अहमदाबाद और कुछ अन्य नगर निगमों में बीजेपी ने हाल ही में कुछ मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया था. लेकिन, अहमदाबाद के पत्रकार शकील पठान कहते हैं की बीजेपी के इन मुसलमान प्रत्याशियों की मुस्लिम समुदाय में ऐसी पैठ नहीं थी कि वो चुनाव जीत पाते.
भारत सामाजिक तौर पर मजबूत लेकिन सियासी तौर पर बंटा हुआ है
वडोदरा में मेरी मुलाकात डॉक्टर लैंसी लोबो से हुई. डॉक्टर लोबो सेंटर फॉर कल्चर ऐंड डेवेलपमेंट नाम की स्वयंसेवी संस्था के निदेशक हैं. मैंने उनसे पूछा कि गुजरात के सियासी हालात पर उनकी क्या राय है? तो, डॉक्टर लैंसी लोबो ने कहा कि, 'हमें पहले देश का नागरिक होना चाहिए. हिंदू, मुसलमान या ईसाई बाद में. बीजेपी क्या चाहती है? बीजेपी चाहती है कि राजनैतिक समुदाय हिंदू हो. जिस तरह से वो मुसलमानों को राजनीति से बेदखल कर रहे हैं, इसमें एक पैटर्न है. आज की तारीख में नागरिकता का सिद्धांत हमारे देश के लोकतंत्र के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है'. डॉक्टर लोबो ने कहा कि, मुसलमानों को लेकर दूसरे समुदायों के खयालत मुख्तलिफ हैं. लेकिन वो सलाह देते हैं कि हर समुदाय को दूसरे के बारे में अपनी समझ बेहतर करनी चाहिए. दो समुदायों को करीब आना चाहिए.
वडोदरा के सेंटर फॉर कंटेंपोरेरी थियरी के प्रोफेसर प्रफुल्ल कार का मानना था कि राजनीतिक प्रक्रिया किसी भी लोकतंत्र का महज एक हिस्सा है. वो कहते हैं कि, 'चुनाव भी किसी समुदाय को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से अलग करने का एक तरीका हैं. ये विचार जवाहरलाल नेहरू के दौर में नहीं था, क्योंकि वो लोकतांत्रिक मूल्यों को समझते थे'. प्रोफेसर कार कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र बहुमत की आम राय से चलता है. और बहुमत का मतलब है बहुसंख्यक समुदाय यानी हिंदू और समाज के ऊंचे तबके के लोग. क्योंकि इस बहुसंख्यकवाद में भी जातियों की परतें हैं. प्रोफेसर कार का मानना है कि दलित और मुसलमान, दोनों ही आज लोकतांत्रिक प्रक्रिया से अलग-थलग हैं.
क्या गुजरात का हिंदू सांप्रदायिक हो गया है? इस सवाल पर मेरा जवाब है- कतई नहीं. इस सीरीज की अगली कड़ी में मैं विस्तार से बताउंगा कि कैसे मुसलमानों ने हाल के दशकों के सियासी हालत का गुजरात और दूसरी जगहों पर सामना किया है.
आखिर में मैं दो पत्रकारों के विचारों से आप को रूबरू कराना चाहूंगा. शकील पठान कहते हैं कि, 'चुनाव के वक्त समाज हिंदू और मुसलमान में बंट जाता है. और जैसे ही चुनाव खत्म होते हैं, हिंदू-मुसलमान की ये दरार गायब हो जाती है' पत्रकार ऋत्विक त्रिवेदी कहते हैं कि, 'सियासी तौर पर हर तरह का भेदभाव हो रहा है. लेकिन सामाजिक तौर पर ऐसा भेदभाव नहीं देखने को मिलता'. शायद बीजेपी को हमारे समाज से और हमारे देश के सदियों पुराने सूत्र वाक्य 'वसुधैव कुटुम्बकम' से कुछ सीखना चाहिए. वसुधैव कुटुम्बकम एक ऐसा सिद्धांत है, जो पूरी तरह से भारतीय है. ये भारतीय सभ्यता की इंसानियत को सबसे बड़ी देन है.
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