पिछले साल महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हिंसा के बाद महाराष्ट्र पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी. दस दिनों पहले महाराष्ट्र पुलिस ने भीमा कोरेगांव मामले में देश के अलग-अलग राज्यों में छापेमारी करके पांच एक्टिविस्टों को गिरफ्तार किया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उन पांचों एक्टिविस्टों को घर में नजरबंद करके रखा गया है. लेकिन इन पांच एक्टिविस्टों पर पुलिसिया कार्रवाई के बाद पूरे देश में लोकतंत्र और उसके अधिकारों पर बहस छिड़ गई है और इस बहस में ‘शहरी नक्सली’ से लेकर ‘संघी’ तक सभी शामिल हैं.
सभी एक दूसरे से सवाल कर रहे हैं कि लोकतंत्र शब्द का मतलब क्या है? देश के बड़े मीडिया घराने जैसे टाइम्स ऑफ इंडिया, दी वायर और दी हिंदू ने तो लोगों के विरोध करने के अधिकार के खिलाफ सरकार की असहिष्णुता की जमकर आलोचना की है. इनका कहना है कि एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी, मूलभूत आवश्यकता है.
हमारे लोकतंत्र के मतलब की एक और परीक्षा 4 सितंबर को हुई जब कनाडा में पढ़ने वाली रिसर्च स्कॉलर लुई सोफिया को तूतिकोरिन एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया गया. सोफिया ने तमिलनाडु की बीजेपी अध्यक्ष तमिलसाई सौंदर्यराजन के सामने बीजेपी के खिलाफ नारेबाजी की. सोफिया ने पहले प्लेन में और फिर एयरपोर्ट पर भी बीजेपी के खिलाफ नारेबाजी की.
प्लेन के अंदर सोफिया ने 'फासिस्ट बीजेपी गवर्नमेंट डाउन-डाउन' के नारे लगाए और सौंदर्यराजन की मानें तो सोफिया के नारे एराइवल गेट तक जारी रहे. इसके बाद सोफिया और सौंदर्यराजन के बीच इसको लेकर तीखी नोंक झोंक हुई और सौंदर्यराजन ने इस मामले में सोफिया के खिलाफ एयरपोर्ट पुलिस के पास कंप्लेन कर दी. पुलिस ने सोफिया को धारा 505, 290 और तमिलनाडु सिटी पुलिस एक्ट के सेक्शन 75 के तहत गिरफ्तार कर लिया. मजिस्ट्रेट ने सोफिया को 15 दिनों की ज्युडिशियल कस्टडी में भेज दिया.
इस घटना के संदर्भ में मनु सेबेस्टियन ने मजिस्ट्रेट की भूमिका को विस्तार से बताया है कि किस तरह से पहले उन्हें इस तरह के मामलों में आरोपों की पड़ताल कर लेनी चाहिए और उन्हें महज पोस्ट ऑफिस जैसे काम करने से बचना चाहिए. लेकिन यहां पर मजिस्ट्रेट ने ऐसा ही कुछ किया और पुलिस के बयान को सुनने के बाद यंत्रवत तरीके से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया. हालांकि अगले दिन सोफिया को जमानत मिल गई लेकिन उसके बाद फ्रीडम ऑफ स्पीच को लेकर सोशल मीडिया पर बड़ी बहस छिड़ गई.
कई लोगों ने सोफिया को जेल भेजे जाने के निर्णय का स्वागत किया और कहा कि एयरक्राफ्ट के अंदर और एयरपोर्ट पर लोगों के व्यवहार के कुछ मानक होते हैं और सोफिया का व्यवहार कहीं से भी इसके अनुरूप नहीं था. लेकिन अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार सौंदर्यराजन की पुलिस से शिकायत असहिष्णुता पर आधारित है.
सौंदर्यराजन ने कहा, 'कोई भी मासूम लड़की भोलेपन से इस शब्द (फासिस्ट) का इस्तेमाल नहीं कर सकती. उसने मुझे जवाब दिया कि उसके पास बोलने की आजादी का अधिकार है. उसने जोरदार नारेबाजी की हवा में हाथ लहराया और फासिस्ट शब्द का इस्तेमाल किया. मैंने सोचा कि मुझे एक आतंकवादी को नजरंदाज नहीं करना चाहिए, इसलिए मैंने पुलिस में शिकायत कर दी.'
जहां भीमा कोरेगांव मामले में एक्टिविस्टों के यहां छापेमारी को देशव्यापी कवरेज मिला, और मिलना भी चाहिए, वहीं सोफिया कि गिरफ्तारी का मामला भी फ्रीडम ऑफ स्पीच को चुनौती देने वाला माना गया और उसे भी मीडिया ने नजरंदाज नहीं किया.
लंबे समय से बीजेपी का तमिलनाडु की राजनीति में बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं रहा है. लेकिन अब ये उतना सच नहीं रहा है. लेकिन जो लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया की चिंता करते हैं उन्हें तमिलनाडु की राजनीति पर ध्यान देना चाहिए. हालांकि ये सेक्यूलर बनाम भक्त या भक्त बनाम शहरी नक्सली के खांचे में फिट नहीं होते हैं.
तमिलनाडु में पिछले कुछ महीनों से लोकतंत्र पर संकट छाया हुआ है लेकिन देश का ध्यान उस ओर जा ही नही रहा है. इस पर आप क्या कहेंगे जब आपको ये बताया जाएगा कि तमिलनाडु के 18 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जो कि अनाथ हैं यानि कि जिसका कोई प्रतिनिधि राज्य के विधानसभा में मौजूद नहीं है. पिछले लगातार चार सत्रों से इन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व विधानसभा में नहीं हो रहा है. विपक्ष सरकार से फ्लोर टेस्ट की मांग कर रहा है क्योंकि उसे लग रहा है कि सत्ताधारी दल के पास बहुमत नहीं है.
चलिए राज्य हिंसा की अव्यवस्था, जाति की राजनीति और पक्षपात को समझने की कोशिश करते हैं जिनसे तमिलनाडु के लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं.
अगर हम कुछ महीने पहले यानि मई महीने को याद करें तो हमें याद आता है कि माइनिंग कंपनी वेदांता के स्टरलाइट प्लांट के विरोध में तूतिकोरिन में बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था. वेदांता की छवि पर्यावरण और मानव अधिकारों को लेकर हमेशा से संदेहास्पद रही है. अगर आप केवल इस प्लांट के बारे में जानना चाहते हैं और किस तरह से 20 वर्ष पहले स्थापित इस प्लांट से लोग परेशान रहे हैं तो आपको क्वार्ट्ज की रिपोर्ट पढ़नी चाहिए.
वेदांता के खिलाफ नवीनतम विरोध प्रदर्शन की शुरुआत इस साल के फरवरी महीने से शुरू हुई थी, जब वेदांता ने अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए एक और यूनिट लगाने की घोषणा की थी. बाद में विरोध प्रदर्शन बढ़ता गया और हजारों स्थानीय लोगों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया. 50 से ज्यादा व्यापारी संगठनों ने भी विरोध को अपना समर्थन दिया था.
99 दिनों तक शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने के बाद 100वें दिन प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए. इसके बाद पुलिस को प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए भीड़ पर गोली चलानी पड़ी जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई. इस दिन हजारों प्रदर्शनकारियों ने जिलाधिकारी के कार्यालय तक चलने के लिए मार्च का आयोजन किया था. भीड़ के हिंसक होने का बाद पुलिस ने पहले लाठीचार्ज किया और फिर बाद में फायरिंग कर दी. मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष दायर किए गए हलफनामे में राज्य के डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस ने दावा किया कि पांच अलग-अलग जगहों पर हिंसा भड़क गई थी ऐसे में पुलिस को चार जगहों पर मजबूरीवश हथियार चलाने के लिए बाध्य होना पड़ा और एक जगह पर लाठीचार्ज करना पड़ा.
तमिलनाडु के संदर्भ में जर्नलिस्ट जया रानी को पढ़ना फायदेमंद रहेगा क्योंकि उन्होंने राज्य हिंसा के दलितों,आदिवासियों और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच के जटिल रिश्तों के बारे में विस्तार से लिखा है और बताया है कि कैसे हमेशा पुलिस इन घटनाओं की जिम्मेदारी से साफ बच निकलती है. वो बताती हैं कि स्टरलाइट प्रोटेस्ट के दौरान भी ऐसा ही हुआ जब प्रदर्शनों के दौरान निर्धारित मानकों का पुलिस के द्वारा उल्लंघन किया गया. ‘दी न्यूज मिनट’ के द्वारा एक डरावना वीडियो पोस्ट किया गया है जिसमें पुलिस एक मरते हुए व्यक्ति को यह कहते हुए दिख रही है कि 'नाटक बंद करो' और ये घोषणा कर रही है कि 'कम से कम एक प्रदर्शनकारी को तो मरना पड़ेगा'.
जया लिखती हैं, 'पुलिस मैनुअल में साफ-साफ लिखा हुआ है कि अगर पब्लिक प्रोटेस्ट हो तो उसे कैसे हैंडल करना है. इसके लिए बाकायदा नियम बनाए गए हैं. पहले पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने चाहिए, लाठीचार्ज करना चाहिए और फायरिंग करने से पहले वाटर कैनन का इस्तेमाल करना चाहिए. फायरिंग करने से पहले भी पुलिस को लाउडस्पीकर से पहले चेतावनी देनी होती है. इसके बाद भी भीड़ हिंसक है और नियंत्रण के बाहर है तो पुलिस फायरिंग का सहारा ले सकती है लेकिन उस स्थिति में भी उसे गोली कमर के नीचे ही चलानी है, सीने और सिर को निशाना नहीं बनाया जा सकता है. लेकिन इन नियमों को ताक पर रख कर तूतिकोरिन पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के समक्ष अपना हिंसक चेहरा सामने रख दिया. पुलिस ने स्नाईपर्स के सहारे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं. सरकार अब कह रही है कि पुलिस की गोलीबारी मजबूरी बन गई थी क्योंकि प्रदर्शनकारियों की भीड़ में असमाजिक तत्व भी घुस गए थे.'
जया सरकारी हिंसा के पहले उदाहरणों को भी सामने रखती हैं और बताती हैं कि कैसे सरकार के बाद इस तरह मामलों में बनी बनाई स्क्रिप्ट पहले से तैयार रहती है.'सरकार जनता के प्रदर्शनों के दौरान शांति बनाए रखने की फर्जी कवायद के तहत उनके खिलाफ हिंसात्मक रवैया अपनाती है. इसके बाद कार्रवाई के नाम पर एक ज्यूडिशियल कमीशन की नियुक्ति कर दी जाती है और सरकार उम्मीद करती है कि मामला समाप्त हो जाएगा. आज के दिन तक, कोई भी ऐसा ज्यूडिशियल कमीशन का गठन नहीं हुआ है जो कि सरकारी अत्याचार के खिलाफ बोलकर आम जनता के पक्ष में खड़ी रही हो. ये केवल पुलिस को बचाने के लिए बनायी जाती है जो कि बाद में पुलिस को पूरे घटना कि जिम्मेदारी से मुक्त करते हुए उन्हें क्लीनचिट दे देती है.'
ये मई में हुआ था लेकिन हाल ही में 9 अगस्त को तमिलनाडु सरकार ने स्टरलाइट केस में गिरफ्तारियां की हैं. जिनमें एक्टिविस्ट थिरुमुरुगन गांधी भी शामिल हैं. इन्हें देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गाया है. गांधी ने तूतिकोरिन फायरिंग की घटना को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सामने उठाया था. उन्हें वहां से वापस लौटने के दौरान बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया.
तूतिकोरिन फायरिंग के बाद एक महीने के भीतर ही सरकार अपने पुराने और पसंदीदा रूप में लौट आई. इस बार सलेम चेन्नई एक्सप्रेस के खिलाफ बढ़ रहे विरोध को दबाने के काम में सरकार जुटी हुई है. सलेम चेन्नई एक्सप्रेस प्रोजेक्ट 10,000 करोड़ रुपए का है और इसके माध्यम से सलेम और चेन्नई को एक दूसरे से सीधे एक्सप्रेसवे से जोड़ने की योजना प्रस्तावित है. इस प्रोजेक्ट के लिए जबरन भूमि अधिग्रहण के विरोध में किसानों का आंदोलन बढ़ता ही जा रहा है.
18 जून को एक्टिविस्ट पीयूष मानुष को पुलिस ने गिरफ्तार किया. मानुष को आईपीसी की धारा 153 (दंगे कराने के लिए उकसाना),189(लोक सेवक को चोट पहुंचाने की धमकी),506 (ii) (अपराधिक धमकी) और 7 (1) अपराधिक कानून संशोधन एक्ट के तहत गिरफ्तार करके सलेम सेंट्रल जेल भेज दिया गया.
उसके अगले दिन पुलिस ने स्टूडेंट एक्टिविस्ट वलारमथि को गिरफ्तार किया. वलारमथि का बेल एप्लीकेशन दो बार रिजेक्ट किया गया लेकिन आखिरकार दो सप्ताह के बाद उसे 6 जुलाई को रिहा किया गया.
ऑल इंडिया किसान सभा के 20 अन्य कार्यकर्ताओं को 9 जुलाई को रिहा किया गया. जुलाई में हमने पॉलिसी रिसर्चर और एनालिस्ट मानसी कार्तिक से बात की थी. उन्होंने हमें बताया कि किस तरह से इस प्रोजेक्ट के लिए सरकार के द्वारा असंख्य पर्यावरणीय और प्रकियात्मक उल्लंघन किया गया है. इस पूरे प्रोजेक्ट में कई गड़बड़िया हैं जिसमें भूमि अधिग्रहण का मामला भी शामिल है. सरकार ने पिछले दरवाजे से उद्योगपतियों से समझौता कर लिया है और जो भी सवाल करने की हिम्मत कर रहा है उसके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है.
मानसी का कहना है, 'अब हम लोगों के पास ऐसी सरकार है जो कि न केवल बड़े बड़े उद्योगों के द्वारा किए जा रहे उल्लघनों पर आंखे बंद किए हुए है बल्कि इसके विरोध में उठने वाले अपने लोगों के आवाज को ही दबाने के लिए हथियार का सहारा ले रही है. सरकार कुछ चुने हुए उद्योगों के समूह की शक्ति को बरकरार रखने में सहायता कर रही है.'
चार सितंबर को प्रदर्शनकारियों को उस समय जबरदस्त झटका लगा जब मद्रास हाईकोर्ट ने एनजीओ पूवलाजिन नानबरगल की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें सलेम चेन्नई एक्सप्रेस वे प्रोजेक्ट के लिए किए जा रहे भूमि अधिग्रहण की वैधता को चुनौती दी गयी थी.
भीमा कोरेगांव हिंसा और उससे जुड़ी हुई छापेमारी में सांप्रदायिकता और हिंसक विचारधारा के टकराव का निचोड़ है जिसमें हिंदुत्व भक्त से लिबरल और संदिग्ध माओवादी तक शामिल हैं. लेकिन तमिलनाडु की स्थिति इससे बिल्कुल अलग है. यहां पर सांप्रदायिकता कम है लेकिन पूंजी यानि रुपए का जोर ज्यादा है जो कि फ्री स्पीच को नियंत्रित करता है. राज्य सरकार और विदेशी उद्योगपतियों के बीच के आपत्तिजनक संबंध को लेकर कार्तिक कहती हैं कि ये भ्रष्टाचार और पक्षपात की कहानी है. जिसका मतलब है बड़ी संख्या में गरीबों को उनकी जगहों से विस्थापित करना और जो भी इस संबंध में उनसे सवाल करे उसे अपने ताकत से चुप करा देना.
दलित,आदिवासी और पिछड़ी जाति के लोग वो हैं जो राज्य की तरफ से की गयी हिंसा से सबसे ज्यादा पीड़ित होते रहे हैं. वैसे तमिलनाडु में लापरवाह औद्योगीकरण और केंद्र की असहिष्णुता दोनों का निष्कर्ष एक ही है- लोकतंत्र की मौत.
(द लेडीज फिंगर (टीएलएफ) महिला केंद्रित एक अग्रणी ऑनलाइन मैगजीन है. इसमें राजनीति, स्वास्थ्य, संस्कृति और सेक्स से जुड़े मसलों पर ताजातरीन नजरिए और तेजतर्रार अंदाज में चर्चा की जाती है.)
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.