‘गरीब भी गंदगी से नफरत करते हैं.’ यही शब्द थे राजेश कुमार के. राजेश उस ई-रिक्शा ड्राइवर के भाई हैं जिसने दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस के नजदीक जीटीबी मेट्रो स्टेशन के बाहर दीवार पर पेशाब करते दो लोगों को रोका और उसे 20 से ज्यादा लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला.
उम्र के 31वें पड़ाव पर पहुंचे ई रिक्शा ड्राइवर रविंदर की किसी से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी. उसने तो स्वच्छ भारत की भावना से भरकर इन दो लोगों से बस इतना भर कहा था कि 2 रुपए मुझसे ले लीजिए और बाहर बने सार्वजनिक शौचालय में निपट लीजिए.
चार देशों के दौरे पर गये प्रधानमंत्री ने इस घटना पर प्रतिक्रिया दी और मदद के ख्याल से मृतक के परिवार को प्रधानमंत्री राहत कोष से 1 लाख रुपए देने की बात कही.
‘लोगों का दिमाग फिर गया है’ ऐसा मानने के बजाय फ़र्स्टपोस्ट ने फैसला किया कि इस यूनिवर्सिटी कैंपस की नई-नवेली राहों पर घूमते-फिरते, स्टूडेंट्स के सपनों और हसरतों के ख्वाबगाह बने पेईंग गेस्ट और हॉस्टलों और मृतक रविंदर के टूटे मकान को खटखटाते हुए इस घटना की गहराई से छानबीन की जाए.
मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 4 पर एक बड़ा सा चौराहा है. यहां का सीसीटीवी कैमरा काम नहीं कर रहा था और ना ही कोई पीसीआर वैन खड़ी थी. बड़ी तादाद में वाहनों का आना-जाना लगा हुआ है. इसी जगह पर रविंदर खून से लथपथ होकर मारा गया, उन लोगों ने अपने गमछे में ईंट बांध ली थीं और उसे बेरहमी से पीटा था.
रविंदर के साथ हुआ हादसा कोई अपवाद नहीं
वहां खड़े रिक्शा ड्राइवरों ने बताया कि असामाजिक तत्व यहां की दीवार पर पेशाब करते हैं, दीवार पर नेताओं के पोस्टर और राजनीतिक दलों के छात्र संगठनों के नारे लिखे नजर आते हैं. रविंदर से भली-भांति परिचित एक ई-रिक्शा ड्राइवर प्रमोद ने बताया कि पियक्कड़ों की भीड़ ने यहां कोई पहली बार उत्पात नहीं मचाया.
उसने अपने साथ हुई एक घटना का जिक्र किया कि शराब के नशे में धुत्त कुछ स्टूडेंट्स ने उससे रिक्शा मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 3 के बाहर बने सरकारी वाइन एंड बीयर शॉप की ओर ले चलने को कहा. वहां उन लोगों ने बीयर के कैन और सिगरेट खरीदी, फिर आपस में मारपीट करने लगे.
प्रमोद ने कहा कि ऐसी घटनाएं यहां आए दिन होती हैं. रविंदर की जहां मौत हुई उस जगह से महज पांच मिनट की दूरी पर एक छोटी सी झुग्गी-बस्ती में उसका घर है. घर की छप्पर एस्बेस्टस के चादरों से बनी है और बहुत नीची है. राजेश उसके बड़े भाई हैं, उन्होंने रविंदर को पाला-पोसा है और पिछले साल उसकी शादी भी करवाई थी.
स्टूडेंट्स के गुस्से पर कसना होगा लगाम
राजेश ने बताया कि यूनिवर्सिटी के इलाके में रहने वालों लोगों के लिए सुरक्षा एक बड़ा सवाल है. उसने रविंदर की गर्भवती पत्नी की तरफ इशारा किया, वह माथे पर पल्लू डाले एक अंधेरे कमरे में बैठी थी. राजेश ने पूछा कि सिग्नल के पास लगे सीसीटीवी कैमरे आखिर काम क्यों नहीं कर रहे थे? उसने बड़े दृढ़ स्वर में कहा कि देशवासियों को अपने भीतर स्वच्छ भारत का जज्बा जगाए रखना चाहिए लेकिन अपनी जान देने की कीमत पर नहीं.
एक स्टूडेंट के एडमिट कार्ड और शराब-दुकान के सीसीटीवी फुटेज से पुलिस को संदिग्धों की पहचान करने में मदद मिली. लेकिन इलाके के लोग छात्रों के गुस्सैल बर्ताव का कभी भी शिकार हो सकते हैं और इसपर लगाम कसने की जरूरत है.
नार्थ कैंपस में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कई पुराने कॉलेज हैं, जैसे- किरोड़ीमल कॉलेज, दौलतराम कॉलेज, हंसराज कॉलेज, हिंदू कॉलेज, इंद्रप्रस्थ कॉलेज ऑफ विमेन, मिरांडा हाऊस, एसजीटीबी खालसा कॉलेज, रामजस कॉलेज, सेंट स्टीफेंस कॉलेज और श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स. यहां छात्रों की एक बड़ी तादाद( एक लाख से भी ज्यादा) रहती है.
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जिन लोगों ने यहां अपनी जिंदगी के कुछ साल गुजारे हैं उनके लिए वो वक्त कभी गुजरने का नाम ही नहीं लेता, बिना बदलाव के जस का तस कायम रहता है. सड़क के दोनों तरफ दीवारों पर अपने वक्त की तहरीरें दर्ज नजर आती हैं और सड़क पर रिक्शा और यू स्पेशल बसें स्टूडेंट्स को एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज तक लाते- ले जाते दौड़ती रहती हैं.
मोमोज और मैगी के स्टॉल से उठती खूशबू आपस में घुली-मिली होती है, चाय की दुकान और लेमन सोडा के ठेले अगल-बगल खड़े होकर ठंढ़ी और गर्म तासीरों को एकमेक करते रहते हैं. पटेल चौक की फोटोकॉपी की दुकानों से कागज की एक अलग महक आती है और इस महक पर वहां टहलती बेचैनियों की छाप होती है.
आप चाहें तो यहां से कमलानगर मार्केट की ओर निकल सकते हैं जहां मसालेदार चाइनीज फूड की दुकानें दीवारों के भीतर से आपको ललचाने के अंदाज में झांकती हैं. यहां बैकपैक का सौदा आप बड़े सस्ते में पटा सकते हैं.
बाहरी छात्रों की बेचैनी की वजह
लेकिन अब नार्थ कैंपस पहले की तरह शांत नहीं रहा. मुखर्जी नगर थाने के एसएचओ अनिल कुमार चौहान बताते हैं कि स्टूडेंट्स में तेजी से बेचैनी बढ़ रही है. वे कहते हैं, 'मिसाल के लिए मुखर्जीनगर (नार्थ कैंपस से लगता एक इलाका) में पहले ज्यादातर सिविल सर्विस की तैयारी करने वाले छात्र रहते थे लेकिन अब यहां आईआईटी-जेईई और पुलिस सेवा की तैयारी करने वाले छात्र भी रहने लगे हैं. यहां लोग प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं और आखिर को उनमें बहुत से राह भटक जाते हैं, निराशा के भंवर में डूब जाते हैं. हमने नार्थ-ईस्ट(पूर्वोत्तर) के छात्रों के लिए एक आउटरीच प्रोग्राम चलाये हैं. इन्हें सांस्कृतिक तौर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है, साथ ही हम इलाके की सख्त निगरानी भी करते हैं क्योंकि इसकी जरुरत है.'
पिछले साल इस इलाके के 376 प्लैट्स वाले एक ब्लॉक ने दिल्ली के बाहर से आए स्टूडेंट्स के लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए. पिछले साल जुलाई में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने एक सर्कुलर में कहा, 'किराएदार के रूप में रहने वाले छात्रों के कारण कई किस्म की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. अवांछित और गैर-जिम्मावर लोगों का आना-जाना लगा रहता है. इससे सुरक्षा को लेकर चिंता पैदा हो रही है... सामाजिक अदब-कायदे तोड़े जा रहे हैं और इसका बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है.'
बाहरी छात्रों की बढ़ती संख्या भी है समस्या की वजह
मुखर्जीनगर में योर च्वायस पीजी के संचालक अंकित अग्रवाल ने बताया कि छात्रों की संख्या में तेजी से हो रहा इजाफा एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है. अंकित के मुताबिक 'नार्थ-ईस्ट और मध्य भारत से आने वाले छात्रों की 2010-11 से अबतक पांच गुना बढ़ गई है.'
पीजी और हॉस्टल के संचालकों ने हालांकि कमरे के अंदर शराब पीने पर सख्त पाबंदी लगा रखी है लेकिन छात्रों की संख्या के बढ़ने के कारण निगरानी रख पाना मुश्किल हो रहा है. नए साल की पूर्व संध्या पर बत्रा सिनेमा के बाहर सीसीटीवी फुटेज में दिखा कि एक महिला को उत्पीड़न से बचाने आए पुलिसवाले पर भीड़ पत्थर फेंककर हमला कर रही है.
पुलिसवाले पर पत्थर फेंकने वाले ये लोग मुखर्जीनगर के रहने वाले थे. पिछले साल बाईक पर सवार हमलावरों ने झज्झर हरियाणा के निवासी एक 25 वर्षीय व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी. वह मुखर्जीनगर में ही किराए के मकान में रहता था.
प्रतियोगी परीक्षाओं में कामयाब ना होना या गरीबी का लगातार जारी रहना ही हिंसक बर्ताव का एकमात्र कारण नहीं है. नार्थ कैंपस आने वाले नवयुवक-नवयुवतियां अपने को चल रही विचाराधारात्मक लड़ाई का हिस्सा मानते हैं और इसमें कोई एक पक्ष लेने से उनकी पहचान मजबूत होती है. इस लड़ाई के भागीदार दोनों ही पक्ष समान रूप से असुरक्षित जान पड़ते हैं.
वैचारिक लड़ाई भी टकराव की वजह
दिल्लीस्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में एम.ए. सोशियोलॉजी के छात्र संजय कुमार का कहना है, 'मुझे अपना कमरा सुरक्षित नहीं जान पड़ता. प्रतिरोध की संस्कृति विषय पर आयोजित एक सेमिनार में उमर खालिद (जेएनयू का छात्र जिसे फरवरी में राजद्रोह के अपराध में कुछ समय के लिए गिरफ्तार किया गया) की भागीदारी के मसले पर जब रामजस कॉलेज में हिंसा हुई तो मैंने अपनी राय फेसबुक पर लिखी थी. मुझे ना सिर्फ अपने ट्वीट मिटाने के लिए जबरन मजबूर किया गया बल्कि फोन पर धमकी भी दी गई. मुझे नहीं मालूम कि फोन पर धमकी देने वाले लोग कौन थे.'
संजय की क्लासमेट निकिता की मानें तो, 'यूनिवर्सिटी तभी तक सुरक्षित जगह है, जब तक आप यहां किसी राजनीतिक मुद्दे पर दूसरे पक्ष से अपनी असहमति नहीं जताते. हम किसी मसले पर तटस्थ रह सकते हैं लेकिन किसी दूसरे की राजनीतिक विचारधारा की काट करना अब पहले की तुलना में कहीं ज्यादा जोखिम भरा है.'
दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के कैंपस के लॉन में हीगेल के द्वंद्ववाद (डायलेक्टिस) और कांट के भाववादी प्रत्ययवाद (ट्रांसेंडेंटल आयडियलिज्म) की आवाज सिर्फ उन्हीं के बीच गूंजती है जो इन धारणाओं से अच्छी तरह परिचित हैं.
आलोचना-बुद्धि एक खग-भाषा में सोचती-विचारती है, यह पारिभाषिक शब्दावली और अवधारणाओं से लदी हुई भाषा होती है. कुछ दिनों पहले डी स्कूल की दीवारों पर आईएसआईएस के कुछ ग्राफिटी दिखे. दिल्ली छात्र संघ के सचिव अंकित सांगवान ने मुखर्जीनगर पुलिस थाने के एसएचओ से शिकायत की तो पूरे कैंपस को बैरिकेड लगाकर सील कर दिया गया.
कॉलेज में मौजूद छात्रों का कहना है कि उन्हें ऐसे किसी ग्राफिटी का नहीं पता जिसमें किसी ने खुद के आईएसआईएस से जुड़े होने की बात कही हो. छात्रों ने कहा कि यह लिबरल आर्टस् जैसी बेहतरीन संस्था की प्रतिष्ठा को धूल में मिलाने की नीयत से की गई दक्षिणपंथियों की साजिश है.
शहरी भारत के संदर्भ में मध्यवर्गीय युवा और राजनीतिक दावेदारी के विषय पर पीएच.डी कर रहे सौम्यदीप सिंहा का कहना है, 'छात्रों को यहां किसी सिद्धांत की घुट्टी नहीं पिलाई जाती, वे अपने-अपने राजनीतिक रुझान के साथ यहां आते हैं और यह उनकी पहचान का हिस्सा होता है, डी स्कूल जैसा संस्थान ऐसे मामले में अपनो को तटस्थ रखता है. राष्ट्रवाद का यह नया विचार अवधारणा के हिसाब से बड़ा छिछला और खोखला है. राजनीतिक मुहावरेबाजी के जरिए दिखाये जाने वाले राष्ट्रवादी तेवर की तुलना नीतियों से नहीं की जानी चाहिए.'
दक्षिणपंथ बनाम वामपंथ
बारिश और बदली से भरे दिन में हरे-भरे कैंपस से जमा हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य ‘ज्ञान, शील, एकता- ज्ञान,शील,एकता’ के नारे लगाते दिखे. उनकी मानें तो वामपंथी लोग छात्रों को उकसाते रहते हैं और इसी कारण कैंपस में संघर्ष का माहौल बना रहता है. एबीवीपी के सदस्यों ने प्रशांत मुखर्जी (अध्यक्ष, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया) की तस्वीर की तरफ इशारा करते हुए कहा कि रामजस कॉलेज की हिंसा में हमारी पार्टी के छात्र-कार्यकर्ताओं के साथ इनलोगों ने मारपीट की.
बीवीपी के सदस्यों का, जिनमें ज्यादातर कानून के छात्र थे, कहना था कि ‘कानून के खिलाफ जाकर प्रोफेसर जीएन साईबाबा और नंदिनी सुंदर जैसे लोग छात्रों के लिए क्या मिसाल कायम कर रहे हैं? अगर आप अपनी बात सबके सामने रखना चाहते हैं तो ऐसा शांति के साथ कीजिए, ऐसे संदेश मत दीजिए कि कैंपस का माहौल खऱाब हो.'
यहां एबीवीपी के इन छात्रों की बातों से असहमति रखने वालों में एक हैं कवलप्रीत कौर. कवलप्रीत कौर दिल्ली विश्वविद्यालय में आइसा यानी एक वामपंथी छात्र-संगठन की प्रतिनिधि हैं. कवलप्रीत का कहना था कि एबीवीपी को प्रशासन की शह हासिल है और उसे अपने मन की करने की छूट मिली हुई है. किसी छात्र-संगठन के लिए डेढ़ लाख से ज्यादा छात्रों का समर्थन हासिल करना हंसी का खेल नहीं है और कवलप्रीत का कहना है कि जब आपको इतनी बड़ी ताकत हासिल होती है तो आपको लग सकता है कि अब हम चाहे जो करें, कोई हमारा क्या कर लेगा.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के नार्थ कैंपस से पढ़ाई पूरी करके निकल चुके हजारों-हजार छात्रों को लग सकता है कि विश्वविद्यालय परिसर वैसे का वैसा ही है. लेकिन जो छात्र एक गरिमा भरी जिंदगी गुजारने की आस लिए यहां अभी रहते हैं और जो लोग इन्हें रहने-ठहरने या फिर इनके आने-जाने की सेवा-सुविधा देते हैं, उन सबके लिए जिंदगी पहले की तरह आसान रही. अब यहां डर है, गुस्सा है और एक आशंका है कि पता नहीं कब, कौन, किसके साथ हिंसा पर उतारु हो जाए.
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