दिल्ली- एक ऐसा शहर जहां सबसे ज्यादा वीआईपी रहते हैं. इस शहर में देश के राष्ट्रपति का 340 कमरों का शानदार निवास स्थान है. देश के प्रधानमंत्री भी यहीं अपना योगाभ्यास करते हैं. देश के गृह मंत्री और रक्षा मंत्री समेत पूरी कैबिनेट राजधानी दिल्ली में रहती है. रोजाना इस दिल्ली की सड़कों से हजारों वीआईपी कारों का काफिला निकलता है. दिल्ली का नजारा देखने विदेशी सैलानी भी यहां आते हैं. यहां शाहजहां का बनाया लाल किला और जामा मस्जिद भी है, लेकिन इस दिल्ली की हवा अब दूषित हो चुकी है. हवा में धूल के कण गोता लगा रहे हैं और इससे दिल्लीवासियों का दम भी घुटने लगा है.
सवाल तो बहुत सारे होंगे आपके मन में कि इसे कैसे रोका जा सकता है? यह तो हमारे लिए बहुत खतरनाक है? इस जहरीली हवा से बचने के लिए क्या किया जाए? वगैरह-वगैरह... इतना सोचिए मत क्योंकि दिल्ली के यह हालात कोई शुरू से ही ऐसे नहीं थे.
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विकास के पथ पर अश्व की तरह दौड़ रही दिल्ली के इन हालात के जिम्मेदार भी आप और हम ही हैं. आप और हम सर्दियों में पटाखे जलाकर दिल्ली की हवा खराब करते हैं तो वहीं दूसरे राज्यों, पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने से भी दिल्ली की हवा दूषित हो जाती है. इस बार तो पटाखों पर रोक लगाने के लिए तो सुप्रीम कोर्ट ही बीच में आना पड़ा, लेकिन ना जी ना हमें और वो भी कोर्ट रोक दे और वही हुआ दिल्ली की हवा देखते ही देखते खराब हो गई.
अब सोचिए मीडिया को भी ‘दिल्ली की हवा’ ऐसी लगी कि लिखने लगे ‘सर्दी में तो ऐसा होना आम बात है, लेकिन गर्मी में भी दिल्ली की हवा हुई दूषित.’ अरे, हम तो दिल्ली वाले हैं हम किसी से कम हैं क्या? इस सवाल का जवाब कैसे नहीं देंगे ‘सरकार भी तो कोई काम नहीं करती है, मुख्यमंत्री भी धरने पर राजनिवास में बैठे हुए हैं. यहां हमें सांस नहीं आ रहा.’ इसको कहने से आप थोड़ी देर के लिए अपने मन को शांति दे सकते हैं और कुछ नहीं. हर चीज में सरकार को जिम्मेदार ठहराने से क्या होगा? हवा दूषित तो सरकार जिम्मेदार, चोरी-डकैती यहां तक कि रेप जैसे गंभीर मामलों के लिए भी सरकार को जिम्मेदार ठहरा देते हैं. अगर हम सब मिलकर ही अपनी आदत सुधारें तो क्या दिल्ली की हवा पर कोई असर नहीं पड़ेगा?
क्या है समाधान
दक्षिण हरियाणा में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की स्टडी के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर जल्द बंजर होने की कगार पर है. पिछले तीन दशकों में जंगलों में कमी आई है. जबकि बंजर इलाके लगातार बढ़ रहे हैं.
स्टडी में यह भी कहा गया कि अरावली में जो जंगल हैं, उनका अब इतना प्रभाव नहीं रहा है. यह जंगल भी बंजर हो रहे हैं. अगर यह सब लगातार चलता रहा तो धूल भरी आंधी की आवृत्ति में लगातार इजाफा होता जाएगा. अरावली इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिल्ली, दक्षिण हरियाणा और बाकी के क्षेत्रों की सुरक्षा करता है.
यह सब तो ठीक है, लेकिन इसके बीच एक बार फिर मुसीबत का पहाड़ आम जनता पर टूटा है. लोगों को घर में रहने की सलाह दी जा रही है. CAG की रिपोर्ट के मुताबिक, आपको जानकर हैरानी होगी कि राजस्थान के अरावली में 98.87 लाख मैट्रिक टन अवैध रूप से खनन किया गया है.
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अब सोचिए जहां सरकारों की मर्जी और बिना लोगों के ऐतराज के अवैध कार्यों को किया जा रहा है. सड़कों के नाम पर हजारों पेड़ों की बलि दे दी जाती है. जंगल धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं. आखिर ऐसा विकास भी किस काम का जहां सड़कों पर कारें तो आप तेज दौड़ा सकते हैं लेकिन कारों से बाहर नहीं आ सकते क्योंकि मुफ्त में मिली हवा, पानी की हमने कदर ही नहीं की. धीरे-धीरे हालात सिर्फ सर्दियों तक ही सीमित थे अब गर्मियों में भी यही हालात हो चुके हैं. इससे पहले कि यह हालात 12 महीने रहने लगें, सरकारों के साथ हमें भी अपनी जिम्मेदारी संभालनी होगी.
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