बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में रखने वाले कानून को निरस्त कर दिया. अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार लोगों से जबरदस्ती भीख मंगवाने वाले किसी भी रैकेट को रोकने के लिए एक वैकल्पिक कानून ला सकती है.
कोर्ट ने ये फैसला भिखारियों के लिए मानव और मौलिक अधिकार जैसी बुनियादी मांग करने वाले दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई करने के बाद लिया. याचिकाकर्ताओं, हर्ष मांदर और कर्णिका स्वाहने ने शहर के सभी भिखारी घरों में भोजन और उचित चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं की मांग की.
केंद्र सरकार ने पिछले साल ही किया था पुनर्वास का वादा-
पिछले साल, केंद्र ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि अगर कोई इंसान गरीबी के कारण भीख मांगने पर मजबूर है तो फिर भीख मांगना अपराध नहीं होना चाहिए. इसके पहले अदालत ने सरकार को लताड़ लगाई. सरकार ने एक साल पहले भिखारियों के लिए पुनर्वास की व्यवस्था और भीख मांगने के लिए कानून में संशोधन की बात कही थी जिसे अभी तक पूरा नहीं किया गया. कोर्ट ने इसी मुद्दे पर सरकार को आड़े हाथों लिया.
इसके पहले केंद्र और आप सरकार ने कोर्ट को बताया था कि सामाजिक न्याय मंत्रालय ने भिखारियों और बेघर लोगों के भीख मांगने को कानून के दायरे से बाहर लाने और उनके पुनर्वास के लिए एक विधेयक तैयार किया था. लेकिन, बाद में कानून में संशोधन का प्रस्ताव गिरा दिया गया.
अभी भिक्षा और गरीबी पर कोई केंद्रीय कानून नहीं है. और अधिकांश राज्यों ने बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट (भिक्षा अधिनियम), 1959 को अपनाया है. इसके तहत भिखारियों को अपराधी माना जाता है. दो याचिकाओं ने बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट को चुनौती दी है.
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