दिल्ली हाईकोर्ट आज आम आदमी पार्टी (आप) की एक याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने के फैसले पर रोक लगाने की मांग की गई है. रविवार को राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग की उस सिफारिश को मंजूर कर लिया था जिसमें लाभ का पद मामले में आप के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की अनुशंसा की गई थी. राष्ट्रपति की मंजूरी के एक दिन बाद दिल्ली हाईकोर्ट में इस पर सुनवाई हो रही है.
आप के 20 विधायक 'लाभ का पद' लेते हुए दिल्ली सरकार के मंत्रालयों में संसदीय सचिव पद पर काबिज होने के दोषी पाए गए हैं.
रविवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भाजपा पर काम में अड़ंगा डालने का आरोप लगाया. केजरीवाल ने कहा, 20 विधायकों के खिलाफ झूठे मामले गढ़े गए. मेरे ऊपर भी रेड कराए गए, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला. मिला तो सिर्फ चार मफलर. उन्होंने सबकुछ आजमाया और अंत में 20 विधायकों को अयोग्य घोषित करा दिया. जब हमारे 67 विधायक जीते तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, पूरी दुनिया यह भी जानती है कि ये 20 विधायक क्यों अयोग्य हुए.ऊपर वाले ने 67 सीट कुछ सोच कर ही दी थी।
हर क़दम पर ऊपर वाला आम आदमी पार्टी के साथ है, नहीं तो हमारी औक़ात ही क्या थी। बस सच्चाई का मार्ग मत छोड़ना।— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 21, 2018
सिसोदिया ने बोला हमला
दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि बीजेपी आम आदमी पार्टी को लगातार परेशान कर रही है. उससे दिल्ली का विकास देखा नहीं जा रहा है. यही वजह है कि वह हर तरीके से परेशान कर रही है. सिसोदिया ने पत्रकारों से कहा कि बीजेपी आम आदमी पार्टी के विधायकों को तोड़ने की कोशिश करती है. यह पहली बार नहीं है कि बीजेपी आम आदमी पार्टी को परेशान कर रही है. राष्ट्रपति से अनुरोध है कि वे विधायकों का भी पक्ष सुनें. इन विधायकों ने एक पैसे का भी लाभ नहीं कमाया है. आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को लाभ के पद पर होने के कारण अयोग्य घोषित किए जाने के मसले पर पहली बार मनीष सिसोदिया अपना पक्ष रख रहे थे.
क्या है मुद्दा
13 मार्च 2015 को आप की सरकार ने एक आदेश पारित कर आपने 21 विधायकों को सचिव बनाया. वकील प्रशांत पटेल ने इनकी अयोग्यता को लेकर राष्ट्रपति के पास चुनौती दी. दिल्ली सरकार ने इसे रोकने के लिए 2015 में असेंबली में एक विधेयक पारित किया. मेंबर ऑफ लेजिसलेटिव असेंबली (रिमूवल ऑफ डिसक्वालिफिकेशन)(अमेंडमेंट बिल) के नाम से इस बिल में तत्काल प्रभाव से लाभ के पद से संसदीय सचिवों को बाहर कर दिया गया. हालांकि राष्ट्रपति ने इस अमेंडमेंट बिल को रोक लिया और आगे की कार्रवाई के लिए मामले को चुनाव आयोग को सौंप दिया.
ताज्जुब की बात यह रही कि उसी वक्त लाभ के पद मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर हुई जिसे उसने खारिज कर दिया. तब से चुनाव आयोग में यह मामला था कि क्या जीएनसीटीडी, 1991 के तहत संसदीय सचिवों का पद लाभ के पद में आता है. हालांकि संविधान की धारा 191 में 'लाभ का पद' का कोई जिक्र नहीं किया है, इसलिए इस पर कानून बनाने का रास्ता साफ हो गया.
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