यूपी चुनाव में जब तक वोटिंग के चरण चल रहे थे शायद ही किसी को इस बात का यकीन था कि योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम बनने वाले हैं. कई दूसरे बड़े नेताओं का नाम चल रहा था. कोई भी योगी आदित्यनाथ के नाम की शायद ही उम्मीद कर रहा था. लेकिन नतीजे आने के बाद योगी आदित्यनाथ सबको पीछे छोड़ते हुए आगे आए और सीएम बने.
सीएम बनने के पहले तक उनकी जो छवि थी वो एक कट्टर हिंदुत्ववादी नेता की थी. इसकी गवाही उनके भाषणों के क्लिप के जरिए भी मिलती है. लेकिन सीएम बनने के बाद उन्होंने दो तरह के काम शुरू किए. पहला आम भाषणों में हिंदुत्ववादी छवि को तोड़ते हुए सबका साथ सबका विकास करने की बातें करने का. और दूसरा, प्रतीकात्मक तौर पर ऐसे निर्णय लेने का जिनसे उनकी हिंदुत्ववादी छवि बरकरार रहे.
यूपी में अवैध कारखानों को जिस तरीके से बंद किया गया उसे यही रंग देने की कोशिश की गई कि ये निर्णय गौवंश के बचाव के लिए लिया गया है. हालांकि इस बात का उल्लेख पार्टी के मेनीफेस्टो में भी था. इसे सिर्फ योगी की इच्छा से नहीं किया गया. लेकिन योगी ने उस निर्णय को न सिर्फ लागू लिया बल्कि पूरे हो हल्ले के साथ लागू किया. ऐसा इसलिए किया गया कि जो लोग उनकी हिंदुत्ववादी छवि को पसंद करते हैं, उनका समर्थन और मजबूत हो.
वोट पॉलिटिक्स से बंधा फैसला
अब योगी का सरकार का एक और निर्णय आया है. प्रदेश भर के मदरसों में स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम के दौरान वीडियोग्राफी कराने के आदेश दिए गए हैं. सरकार का ये आदेश स्वतंत्रता दिवस के ठीक 4 दिन पहले आया है. पहली नजर में ही निर्णय कई निहितार्थों को समेटे हुए लगता है. सामान्य तौर पर स्कूलों में स्वतंत्रता दिवस के दिन झंडा फहराया ही जाता है.
संभव है ये निर्णय इसलिए लिया गया हो कि काफी सारे मदरसों को सरकारी मदद मिलती है. इस वजह से यहां पर झंडा जरूर फहराया जाए. लेकिन मदरसों पर योगी सरकार का या निर्णय भी सांकेतिक और वोटबैंक पॉलिटिक्स से बंधा हुआ लगता है.
आम फहम धारणा यही है कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं देते हैं. ये सिर्फ धारणा ही नहीं है आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं. बीजेपी के सामने चुनाव लड़ने वाली पार्टियां ज्यादातर अल्पसंख्यकों के वोट को यही भय दिखाकर हासिल करना चाहती हैं.
समाज के भविष्य के लिए नुकसानदेह फैसला
बीजेपी भी अपनी छवि का निर्माण पूरे हिंदू वोटों के एकीकरण के लिए करती है. दरअसल कई तरह की क्षेत्रीय पार्टियां अलग-अलग राज्यों में विभिन्न मुद्दों पर वोटों को बांटती हैं. बीजेपी नेताओं के भाषणों और उनके निर्णयों को देखकर समझा जा सकता है कि धार्मिक मुद्दों पर लिए गए निर्णयों को सांकेतिक रूप से इस्तेमाल कर पूरे समुदाय के वोटों का एकीकरण किया जाता है.
मदरसों में तिरंगा फहराने की वीडियो रिकॉर्डिंग के निर्णय पीछे भी मकसद साफ नजर आता है. योगी अपनी गोरखपुर के सांसद रहते हुए बनी छवि को भी कायम रखना चाहते हैं. आखिर उसी छवि ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है. गोरखपुर और उसके आस-पास के जिलों में हिंदू युवा वाहिनी के जरिए तब भी उनकी महिमा इस छवि के जरिए पहुंचती थी.
योगी अब सीएम तो बन चुके हैं. लेकिन राजनीति के बारे में एक कहावत है कि जिस लकीर ने आपको मंजिल दी है, उसे कभी नहीं छोड़ना चाहिए. तो योगी उसी लकीर पर चल रहे हैं. बस अपने भाषणों में सबका साथ सबका विकास वाला विचार भी मिला देते हैं. मतलब एक बात स्पष्ट है चाहे अवैध बूचड़खाने बंद करवाने का निर्णय हो या फिर मदरसे में ध्वजारोहण की रिकॉर्डिंग का निर्णय, सबकुछ पूरी तरह सोच समझकर किया जा रहा है. ये जानते-बूझते हुए कि ये सब उनकी राजनीतिक ताकत को और ज्यादा बढ़ाएगा.
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