आज यानी रविवार को डॉटर्स डे है. यानी दुनिया भर की बेटियों के लिए खास दिन. कहावत है कि बेटे वंश को आगे बढ़ाते हैं लेकिन घर की रौनक बेटियों की खिलखिलाहट से ही आती है. वो एक बेटी ही होती है जो बिना बोले मां की हर तकलीफ समझ जाती है. कभी वो मां की प्यारी सी बेटी गुड़िया बन जाती है तो कभी उनकी परेशानियों में उनका साथ देने वाली, रसोई में उनका हाथ बटाने वाली, उनके सीक्रेट शेयर करने वाली उनकी सबसे अच्छी दोस्त.
एक बेटी जितना अपनी मां के करीब होती है उतना ही पिता की दुलारी और लाडली. किसी भी बेटी के लिए उसके पापा ताउम्र सुपरहीरो होते हैं जो उसे किसी भी परेशानी से बचा सकते हैं. एक बेटी होने से पिता और ज्यादा केयरिंग और इमोश्नल हो जाते हैं. कुल मिला कर बेटियां रिशतों में एक नई जान भर देती है. इन्हीं बेटियों के नाम है आज का यह खास दिन. लेकिन दुनिया में डॉटर्स डे मनाने के चलन की शुरुआत हुई कैसे? हम बताते हैं आपको यह...
कैसे हुई 'डॉटर्स डे' मनाने की शुरुआत?
दरअसल डॉटर्स डे दुनिया भर में अलग-अलग दिन और अलग समय पर मनाया जाता है. भारत में यह हर साल सितंबर के आखिरी रविवार को मनाया जाता है. बेटियां भले ही आज कितनी भी तरक्की क्यों न कर रही हों लेकिन समाज के कई हिस्सों में बेटियों को बेटों से कमतर आंका जाता है. ऐसे में समानता को बढ़ावा देने के लिए कुछ देशों की सरकार ने इस दिन को मनाने का फैसला किया.
भारत में डॉटर्स डे मनाने के लिए रविवार का दिन इसलिए चुना गया ताकि माता-पिता अपनी बेटियों के साथ ज्यादा समय बिता पाएं और इस दिन को उनके लिए खास बना सकें.
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