स्वतंत्रता सेनानियों ने कलेक्टरी पर कब्जा कर किस नेता को वहां का कलेक्टर नामित कर दिया था? किस जिले को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया था?
किसकी गिरफ्तारी के बाद आंदोलित होकर लोगों ने बलिया जिले के सात थानों पर कब्जा कर लिया था?
किस स्वतंत्रता सेनानी की रिहाई के लिए लोगों ने जेल का फाटक तोड़ दिया था? इन सवालों का एक ही जवाब है. वह थे बलिया के शेर चित्तू पांडेय. 23 मई 1984 को बलिया में चित्तू पांडेय की प्रतिमा का अनावरण करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि सारा देश बलिया को चित्तू पांडे के कारण जानता है.
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स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जवाहर लाल नेहरू ने जेल से छूटने के बाद कहा था कि ‘मैं पहले बलिया की स्वाधीन धरती पर जाऊंगा और चित्तू पांडे से मिलूंगा.’ पता नहीं कि ऐसे चित्तू पांडेय की कहानी किसी प्रदेश के स्कूली पाठ्य क्रम में शामिल है भी नहीं?
जब कांग्रेस कार्य-समिति के सदस्य हो गए थे गिरफ्तार
स्वतंत्रता सेनानियों के सामने 19 अगस्त 1942 को बलिया जिले के कलेक्टर ने आत्मसमर्पण कर दिया था. कलेक्टर को जन दबाव के कारण जेल में बंद चित्तू पांडेय और उनके साथियों को रिहा करना पड़ा. जेल से निकलने में थोड़ी देर हुई तो लोगों ने फाटक तोड़ दिया था.
इसके बाद आंदोलनकारियों ने कलेक्टरी पर कब्जा कर लिया और चित्तू पांडेय को वहां का जिलाधिकारी घोषित कर दिया.
आज देश की जो हालत है. क्या वैसा ही देश बनाने के लिए उन लोगों ने अपने जान माल को दांव पर लगाया था?
चित्तू पांडेय का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रत्तू-चक गांव में 1865 में हुआ था. उनका निधन 1946 में हुआ. आजादी की लड़ाई के दौरान चित्तू पांडेय अपने साथियों जगन्नाथ सिंह और परमात्मानंद सिंह के साथ गिरफ्तार कर लिए गये थे. इससे बलिया की जनता क्षुब्ध थी.
इस बीच नौ अगस्त 1942 को गांधी और नेहरू के साथ-साथ कांग्रेस कार्य समिति के सभी सदस्य गिरफ्तार कर अज्ञात जगह भेज दिए गए. इससे जनता उत्तेजित हुई.
बलिया जिले के हर प्रमुख स्थान पर प्रदर्शन व हड़तालें शुरू हो गईं. तार काटने, रेल लाइन उखाड़ने, पुल तोड़ने, सड़क काटने, थानों और सरकारी दफ्तरों पर हमला करके उन पर राष्ट्रीय झंडा फहराने के काम में जनता जुट गई थी.
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चौदह अगस्त को वाराणसी कैंट से विश्व विद्यालय के छात्रों की ‘आजाद ट्रेन’ बलिया पहुंची. इससे जनता में जोश की लहर दौड़ गई. 15 अगस्त को पांडेय पुर गांव में गुप्त बैठक हुई .उसमें यह तय हुआ कि 17 और 18 अगस्त तक तहसीलों तथा जिले के प्रमुख स्थानों पर कब्जा कर 19 अगस्त को बलिया पर हमला किया जाएगा.
धोखे से 19 स्वतंत्रता सेनानियों की हत्या
17 अगस्त की सुबह रसड़ा बैरिया, गड़वार, सिकंदरपुर , हलधरपुर, नगरा, उभांव आदि स्थानों पर जनता ने धावा बोल दिया. बैरिया थाने पर जनता ने जब राष्ट्रीय झंडा फहराने की मांग की तो थानेदार राम सुंदर सिंह तुरंत तैयार हो गया.
यही नहीं, उसने स्वयं गांधी टोपी पहन ली. झंडा फहराने के बाद जब जनता ने हथियार मांगे तो थानेदार ने दूसरे दिन देने की बात करके समस्या को टाल दिया.
दूसरे दिन करीब 40-50 हजार लोगों की भीड़ थाने पहुंची. थानेदार ने धोखा देकर करीब 19 स्वतंत्रता सेनानियों को मार डाला. गोली-बारूद खत्म हो जाने के बाद थानेदार ने अपने सिपाहियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया. पर जनता ने किसी पुलिसकर्मी पर आक्रमण नहीं किया.
बैरिया की तरह नृशंस कांड रसड़ा में गुलाब चंद के अहाते में भी हुआ. पुलिसिया जुल्म में बीस लोगों की जानें गईं. इस तरह आंदोलनकारियों ने 18 अगस्त तक 15 थानों पर हमला करके आठ थानों को पूरी तरह जला दिया.
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सोलह रेलवे स्टेशन फूंके गए. सैकड़ों जगह रेल की पटरियां उखाड़ी गईं. अठारह पुलिस कर्मी मारे गए. उनके हथियार छीने गए. 19 अगस्त को जनता जिला मुख्यालय बलिया पहुंची.अपार जन समूह को आता देख कलेक्टर घबरा गया. कलेक्टर ने चित्तू पांडेय और जगन्नाथ सिंह सहित 150 सत्याग्रहियों को रिहा कर दिया.
19 अगस्त को जिले में राष्ट्रीय सरकार का विधिवत गठन किया गया जिसके प्रधान चित्तू पांडेय बनाए गए. जिले के सारे सरकारी संस्थानों पर राष्ट्रीय सरकार का पहरा बैठा दिया गया.
सारे सरकारी कर्मचारी पुलिस लाइन में बंद कर दिए गए. हनुमान गंज कोठी में राष्ट्रीय सरकार का मुख्यालय कायम किया गया.
आंदोलनकारियों को सात साल की कैद और बीस बेंत की सजा
लोगों ने नई सरकार को हजारों रुपए दान दिए. चित्तू पांडे के आदेश से हफ्तों बंद दुकानें खोल दी गईं. 22 अगस्त को ढाई बजे रात में रेल गाड़ी से सेना की टुकड़ी नीदर सोल के नेतृत्व में बलिया पहुंची.
नीदर सोल ने मिस्टर वॉकर को नया जिलाधिकारी नियुक्त किया. 23 अगस्त को 12 बजे दिन में नदी के रास्ते सेना की दूसरी टुकड़ी पटना से बलिया पहुंची. इसके बाद अंग्रेजों ने लोगों पर खूब कहर ढाये.
आंदोलनकारियों को अदालत में पेश किया गया. उन्हें सात-सात साल की कैद और बीस-बीस बेंत की सजा दी गई.
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किसी को नंगा करके पीटा गया तो किसी को हाथी के पांव में बांध कर घसीटा गया. उन घरों को ध्वस्त किया गया जहां सत्याग्रही जुटते थे.
अंग्रेजों ने अनेक गांवों के सैकड़ों घर जलाए. एक सौ सोलह बार गोलियां चलाई गईं जिनमें 140 नागरिकों की जानें गईं. सरकारी कर्मचारी सुबह होते ही किरोसिन लेकर गांव को फूंकने के लिए निकल पड़ते थे.
गांवों पर सामूहिक जुर्माना लगाया गया. चित्तू पांडेय भूमिगत हो गए थे. बलिया देश के उन थोड़े से स्थानों में था जहां अंग्रेजों ने सर्वाधिक जुल्म ढाये. क्या यह सच नहीं है कि ऐसे बलिदानों से मिली आजादी को आज के हमारे अधिकतर नेताओं ने अपने स्वार्थवश काफी बदरंग कर दिया है?
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