याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि 1984 के दंगों में प्यारा सिंह की पत्नी और बेटी एवं हरपाल सिंह के पिता की नृशंस हत्या कर दी गई थी. इस संबंध में FIR भी दर्ज की गई थी और प्रत्येक मृतक के लिए 20,000 रुपए का अंतरिम मुआवजा दिया गया. हालांकि, सरकार द्वारा पुनर्वास नीति के तहत घोषित अंतिम मुआवजे का अभी तक भुगतान नहीं किया गया है.
याचिकाकर्ताओं के वकील दिनेश राय ने कहा कि केंद्र सरकार जनवरी, 2006 में पुनर्वास नीति लेकर आई जिसके तहत मृतक व्यक्ति के आश्रित को 3.5 लाख रुपए और घायलों को 1.25 लाख रुपए मुआवजा दिए जाने का निर्णय किया गया.
फरवरी, 2015 में इस मुआवजे की राशि बढ़ाकर 8.5 लाख रुपये कर दी गई. कोर्ट को बताया गया कि करीब 34 साल बीत गए हैं, लेकिन इन याचिकाकर्ताओं को अभी तक अंतिम मुआवजा नहीं दिया गया है. इस मामले की सुनवाई एक माह बाद की जाएगी.
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साल 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों को मुआवजा नहीं दिए जाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को केंद्र और राज्य सरकार से एक महीने के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा.