नोटबंदी पर कांग्रेस पार्टी मोदी-विरोधियों को संसद और संसद के बाहर एकजुट करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन विपक्ष का आक्रोश कई स्तरों पर विभाजित दिखा.
कांग्रेस पार्टी के नेताअों को टीवी पर आकर कई घंटों तक यह सफाई देनी पड़ी कि हमने भारत बंद का आह्वान नहीं किया है, 14 पार्टियों ने केवल 28 नवम्बर को नोटबंदी से लोगों को हो रही परेशानी के खिलाफ जन आक्रोश दिवस मनाने का फैसला लिया था.
आक्रोश दिवस की अपने ढंग से व्याख्या करते हुए माकपा और भाकपा ने पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में बंद की घोषणा कर दी. वामपंथी दलों के इस निर्णय से परेशान ममता बनर्जी ने जनता से आह्वान किया कि वे इस बंद में शामिल न हो. केरल और पश्चिम बंगाल से आई खबरों के अनुसार बंद का आंशिक असर ही हुआ. मोदीजी की नोटबंदी भी माकपा और तृणमूल कांग्रेस को एकजुट करने में विफल रही.
ममता बनर्जी व 'आप' पार्टी ने नोटबंदी के निर्णय को वापस लेने की मांग की, वही कांग्रेस पार्टी बार-बार यह कहती रही कि उसने निर्णय वापस लेने की मांग नहीं की है. कांग्रेस की मांग केवल इतनी है कि इससे लोगों को हो रही परेशानियों का समाधान निकाला जाए. आज लोकसभा में कांग्रेस की मांग केवल यह थी कि प्रधानमंत्री सदन में बहस के दौरान उपस्थित रहें.
14 विपक्षी दलों के आक्रोश दिवस के निर्णय में बसपा की सुप्रीमो मायावती शामिल नहीं थी. वे संसद में और बाहर नोटबंदी व मोदी के खिलाफ सबसे ज्यादा तीखे बयान दे रही हैं, लेकिन विपक्षी एकता के पक्ष में नहीं है. मायावती की समस्या यह है कि जहां भी समाजवादी पार्टी खड़ी होगी, उस जगह को वह छूने के लिए भी तैयार नहीं है.
जयललिता की एआईएडीएमके पार्टी भी नोटबंदी के निर्णय का विरोध कर रही है, लेकिन वे कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में आयोजित विरोध कार्यक्रम में शामिल नहीं होना चाहती है. जयललिता की पार्टी ने आक्रोश दिवस को जुबानी आक्रोश तक ही सीमित रखा.
आक्रोश दिवस को पंचर करने में सबसे बड़ी भूमिका बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने निभाई है. नीतिश ने पहले दिन से ही मोदी की नोटबंदी का समर्थन करके अपने बड़े भाई लालू प्रसाद यादव के सामने नैतिक संकट खड़ा कर दिया. मोदी के खिलाफ मौका तलाशने वाले लालूजी ने नोटबंदी पर अधिक बोलना जरुरी नहीं समझा.अब चर्चा यह भी चल पड़ी है कि नीतिश ने एक बार फिर भाजपा के साथ प्रेम-वार्तालाप शुरु कर दिया है.
आज लोकसभा में विभिन्न विपक्षी दलों के नेताअों ने नोटबंदी से पैदा हुई स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी की, उससे स्पष्ट था कि अधिकांश विपक्षी दल नोटबंदी पर जारी गतिरोध को बनाए रखने के पक्ष में नहीं है. कांग्रेस पार्टी के लिए आक्रोश दिवस एक एग्जिट रूट के तौर पर दिखाई दिया. उम्मीद की जा रही थी कि लोकसभा में राहुल गांधी अपना गुस्सा प्रकट करेंगे, लेकिन वे भी खामोश रहे.
देशभर से मिल रही खबरों से यही लगता है कि विपक्षी दलों का आक्रोश दिवस एक रस्मअदायगी के रूप में आयोजित किया गया, जिसमें भाग लोनेवाले लोगों की संख्या काफी कम थी.
कांग्रेस को बहुत दिनों बाद यह बात समझ आई है कि नोटबंदी का अंडा टूट चुका है और अब इसको फिर से अंडे की शक्ल देना संभव नहीं है. अब इसका अच्छा या खराब आमलेट ही बनेगा.
नोटबंदी पर आक्रोश दिवस के साथ ही विपक्ष का आक्रोश ठंडा पड़ता नज्रर आ रहा है. कल से संसद की कार्यवाही फिर से पटरी पर आने की पूरी संभावना है.
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