गुजरात चुनाव को लेकर कांग्रेस की रणनीति समझनी है, तो आप को मुख्यमंत्री विजय रूपाणी पर ध्यान देना होगा. रविवार को पर्चा भरने के लिए राजकोट रवाना होने से पहले, विजय रूपाणी अचानक पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल से मिलने पहुंचे.
गुजरात में बीजेपी के लिए केशुभाई पटेल की वही हैसियत है, जो केंद्रीय नेतृत्व के लिए लालकृष्ण आडवाणी की है. वो एक मार्गदर्शक हैं, जिन्हें खुश रखा जाना चाहिए. वरना ऐन चुनावों से पहले वो कोई नखरा दिखा सकते हैं. इसीलिए बीजेपी समय-समय पर केशुभाई पटेल के प्रति अपना सम्मान दिखाती रहती है. केशुभाई पटेल ने साल 2012 के चुनाव से पहले बगावत कर अपनी पार्टी बना ली थी. हालांकि चुनाव के बाद वो बीजेपी में वापस लौट आए थे.
लेकिन, रविवार को विजय रूपाणी की केशुभाई पटेल से मुलाकात वैसा दौरा नहीं था जिसमें बीजेपी केशुभाई के प्रति सम्मान का इजहार करती है. असल में यह एक रणनीतिक दौरा था, जो बीजेपी ने दांव के तौर पर चला था. वो भी कांग्रेस उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी होने के बाद.
रूपाणी राजकोट पश्चिम सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. रूपाणी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने राजकोट पूर्व से चुनाव लड़ने वाले अपने नेता इंद्रनील राज्यगुरु को उतारा है. इसी के साथ खेल शुरू हो गया है.
इंद्रनील राज्यगुरू गुजरात में कांग्रेस के सबसे बड़े फाइनेंसर हैं. पैसे से वो इतने मजबूत हैं कि अपने चुनाव के लिए तो वो अपने बूते कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी करते ही हैं, पूरे इलाके के कांग्रेस उम्मीदवारों को भी इंद्रनील से मदद मिलती है.
उनके धन बल की ही वजह से कांग्रेस के लिए राजकोट पूर्व की सीट सुरक्षित मानी जाती है. इसके बावजूद इंद्रनील ने अपनी सुरक्षित सीट छोड़कर मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से सीधी टक्कर लेने का फैसला किया है. इसी से गुजरात चुनाव को लेकर कांग्रेस की आक्रामक रणनीति साफ हो जाती है.
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राजकोट पश्चिम सीट पर पाटीदार मतदाताओं की अच्छी-खासी तादाद है. इंद्रनील राज्यगुरू ने करीब साल भर पहले मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को टक्कर देने का एलान किया था. तब से वो लगातार पाटीदार वोटरों को लुभाने में जुटे हुए हैं.
उनकी जमीनी राजनीति पर पकड़ और कार्यकर्ताओं की फौज ने मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को परेशानी में डाल दिया है. सामने खड़ी चुनौती से निपटने के लिए ही विजय रूपाणी ने केशुभाई पटेल से मुलाकात की. केशुभाई पटेल का राजकोट से पुराना नाता है. ऐसे में विजय रूपाणी को उम्मीद है कि केशुभाई पटेल उनके लिए प्रचार करें.
विजय रूपाणी की परेशानी से साफ है कि कांग्रेस का गुजरात प्लान काम कर रहा है. 77 उम्मीदवारों की उसकी पहली लिस्ट से एक बात साफ हुई है वो यह कि कांग्रेस गुजरात में तीन अहम बातों पर फोकस कर रही है. पहला तो यह कि बीजेपी के दिग्गज नेताओं को उनके गढ़ में घेरा जाए. दूसरा कि पाटीदार-पिछड़ों के साथ गठजोड़ किया जाए, ताकि लोगों के सामने नए चेहरे पेश किया जाए. कांग्रेस की रणनीति का तीसरा पहलू यह है कि वो बीजेपी की उसके गढ़ में ही घेरेबंदी कर के आक्रामक रुख दिखाना चाहती है.
गुजरात में मोदी युग आने के बाद से कांग्रेस पहली बार ऐसी आक्रामक सियासत करती दिख रही है. इसकी एक मिसाल पोरबंदर में भी दिखी है. जहां कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता अर्जुन मोढवाडिया को बीजेपी के ताकतवर मंत्री बाबू बोखिरिया के खिलाफ उतारा है. मोढवाडिया पिछला चुनाव हार गए थे. लेकिन राज्य में बहुत से लोग मानते हैं कि बाबू बोखिरिया को कोई हरा सकता है तो वो अर्जुन मोढवाडिया ही हैं. कांग्रेस ने अर्जुन मोढवाडिया के लिए सुरक्षित सीट तलाशने के बजाय बाबू बोखिरिया के खिलाफ उतारकर यह चुनौती स्वीकार कर ली है.
कांग्रेस खाम यानी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम वोटरों को लुभाने की अपनी पुरानी रणनीति पर भी नए सिरे से काम कर रही है. इसमें पाटीदारों और पिछड़ों को भी जोड़ने की जुगत है. हार्दिक पटेल के जरिए पाटीदारों को कांग्रेस के पाले में लाने की कोशिश की जा रही है. तो अल्पेश ठाकोर के जरिए पिछड़े वोटर लुभाए जा रहे हैं. कांग्रेस ने दोनों समुदायों से 43 प्रत्याशी उतारे हैं. इनमें से 20 पाटीदार हैं और 23 ओबीसी. साफ है कि कांग्रेस इन चुनावों को बहुत अहमियत दे रही है.
यह आंकड़े इसलिए भी अहमियत रखते हैं क्योंकि पहले राउंड में 9 दिसंबर को सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में वोट डाले जाएंगे. यहां पाटीदार और पिछड़े वोट कांग्रेस के लिए कारगर साबित हो सकते हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि वो दोनों समुदायों के बीच तालमेल बिठा सकेगी. दोनों समुदायों के वोट उसको मिल जाएंगे. हालांकि यह बेहद मुश्किल है.
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असल में आरक्षण को लेकर दोनों समुदाय आमने-सामने हैं. पाटीदार ओबीसी कैटेगरी में आरक्षण मांग रहे हैं. वहीं ओबीसी इसके बिल्कुल खिलाफ हैं. ओबीसी जातियों को लगता है कि पाटीदारों को आरक्षण उनका हक मारकर ही मिलेगा. आरक्षण को लेकर इस मुकाबले की हालत के बावजूद कांग्रेस को उम्मीद है कि वो पाटीदार और पिछड़ों के वोट हासिल कर सकेगी. दोनों समुदाय बीजेपी को हराने के लिए उसके साथ आ जाएंगे.
कांग्रेस उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में 53 नए चेहरे हैं. पार्टी ने 14 विधायकों को भी टिकट दिया है. राहुल गांधी ने वफादारी दिखाने के लिए कांग्रेस विधायकों को टिकट देने का जो वादा किया था, वो पूरा किया है. कांग्रेस की लिस्ट में हार्दिक पटेल के तीन समर्थकों के नाम भी हैं. हालांकि यह लिस्ट जारी होने के फौरन बाद ही, हार्दिक के करीबी दिनेश बमभानिया ने बगावती तेवर दिखाए. दिनेश बमभानिया ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने बिना सलाह मशविरा के उनकी पार्टी के नेताओं को टिकट देने का एलान कर दिया. माना जा रहा है कि हार्दिक पटेल अपने समर्थकों के लिए और सीटें चाह रहे हैं.
अब कांग्रेस के सामने चुनौती हार्दिक पटेल की उम्मीदों पर खरा उतरने की है. इस इम्तिहान को पास करने के बाद ही कांग्रेस, गुजरात में जीत की रेस में शामिल हो सकती है. वरना यह पार्टी की सबसे बड़ी हार भी हो सकती है.
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