पिछले साल 25 दिसंबर को बॉटेनिकल गार्डेन मेट्रो स्टेशन का उद्घाटन करने सीएम योगी नोएडा गए थे. पीएम मोदी ने इस मेट्रो लाइन का उद्घाटन किया था. सीएम योगी के तब नोएडा जाने पर यह सवाल उठा था कि क्या सीएम योगी नोएडा से जुड़े अंधविश्वास को तोड़ पाएंगे. दरअसल यह माना जाता है कि यूपी का जो भी सीएम नोएडा की यात्रा करता है उसे या तो अपनी गद्दी छोड़नी पड़ती है या उसके साथ कुछ बुरा होता है. इस अंधविश्वास की वजह से कोई भी सीएम नोएडा जाने से परहेज करता रहा है.
सीएम योगी की पिछली नोएडा यात्रा के वक्त भी यह सवाल उठा था. तब सीएम योगी और बीजेपी ने कहा था कि वो इस तरह के अंधविश्वास को नहीं मानते हैं. लेकिन कुछ महीने बाद हुए यूपी में उपचुनावों में बीजेपी को हार मिली. यही नहीं सीएम योगी को अपने गढ़ गोरखपुर में भी हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी अब तक 3 लोकसभा उपचुनाव और एक विधानसभा उपचुनाव में हार चुकी है और ये सभी हार सीएम योगी के नोएडा जाने के बाद ही मिले हैं. उपचुनावों में हार के बाद भी ट्विटर पर कई लोगों ने इस बारे में मजे भी लिए थे.
क्या है नोएडा से जुड़ा अंधविश्वास?
हालांकि तब पीएम मोदी ने बॉटेनिकल गार्डेन मेट्रो स्टेशन के उद्घाटन के वक्त कहा था कि सीएम योगी ने नोएडा आकर इस अंधविश्वास को तोड़ा है कि नोएडा आने से सीएम के साथ कुछ बुरा होता है. उन्होंने तब कहा था कि जिस नोएडा में कोई सीएम आता नहीं था, ऐसी छवि बना दी गई थी. आज वहां योगी पहुंचे हैं. उस मिथक को योगी जी ने तोड़ दिया. ये नए खयाल के नेता.
लेकिन सीएम योगी नोएडा के साथ जुड़े अंधविश्वास को तोड़ नहीं पाए और उपचुनावों में मिली हार के लिए सोशल मीडिया पर कई लोगों ने उनकी नोएडा यात्रा को जिम्मेदार ठहराया.
Yogi Aditya nath ji aur jao Noida
— Raghvendra singh (@raghvendra140) March 14, 2018
वैसे में एक बार फिर से सीएम योगी के नोएडा जाने पर फिर से यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या इस बार भी सीएम योगी के साथ कुछ बुरा हो नहीं होने वाला है. क्या इस बार नोएडा से जुड़े अंधविश्वास को सीएम योगी तोड़ने में सफल होंगे?
खासबात ये है कि यूपी के सीएम रहते हुए कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मुलायम सिंह यादव और अखिलेश ने भी नोएडा की तरफ मुंह तक नहीं किया. चुनावों के वक्त 'कुर्सी भय' की वजह से रैलियों की जगह भी नोएडा की बजाए गाजियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर और मथुरा रखी जाती रही है.
दरअसल नोएडा के कथित 'अपशकुनी' इतिहास की कहानी यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के साथ हुई घटना से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि साल 1988 में नोएडा से लौटने के तुरंत बाद ही वीर बहादुर सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ गई थी. केंदीय नेतृत्व ने वीर बहादुर के नोएडा से लौटने के तुरंत बाद ही इस्तीफा मांग लिया था. इसके बाद 1989 में नारायण दत्त तिवारी और 1999 में कल्याण सिंह की भी नोएडा आने के बाद कुर्सी चली गयी . साल 1995 में मुलायम सिंह को भी नोएडा आने के कुछ दिन बाद ही अपनी सरकार गंवानी पड़ गई थी. नोएडा यात्रा से नेताओं की मुख्यमंत्री यात्रा पर विराम लगने से नोएडा पर 'अपशकुनी' होने का कलंक लगता चला गया.
मायावती भी नहीं तोड़ पाई थीं अंधविश्वास
हालांकि बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने यूपी का मुख्यमंत्री रहते हुए नोएडा के अंधविश्वास पर भरोसा नहीं किया.
साल 2007 में यूपी की सीएम बनने के बाद उनके कार्यकाल में कई सरकारी कार्यक्रम और योजनाएं नोएडा से ही लागू की गईं. मायावती ने नोएडा यात्रा को कभी टाला भी नहीं. लेकिन साल 2012 में जब बीएसपी की सरकार सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले के बावजूद समाजवादी पार्टी से परास्त हो गई तो नोएडा के सीएम कनेक्शन को लेकर मनहूस होने का ठप्पा फिर सुर्खियां बन कर लौट आया. इसके बाद जब अखिलेश यादव यूपी के सीएम बने तो उन्होंने नोएडा की तरफ न झांकने में ही भलाई समझी. नोएडा से जुड़ी यमुना एक्सप्रैस वे जैसी योजनाओं पर उन्होंने लखनऊ से ही नजर बना कर रखी.
नोएडा बीजेपी के लिए यूपी की राजनीति में गढ़ बनता जा रहा है. केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा यहां से सांसद हैं तो पंकज सिंह अपने विधानसभा क्षेत्र से भारी मतों से जीतकर विधायक बने हैं. लेकिन बीजेपी के गढ़ होने के बावजूद मुख्यमंत्रियों का पुराना इतिहास उन्हें नोएडा आने से रोकता रहा है.
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