एक साइंस सोसायटी ने शनिवार को पंजाब के जालंधर में आयोजित आईएससी (भारतीय विज्ञान कांग्रेस) में 'कौरवों को टेस्ट ट्यूब बेबी' बताने के दावे का खंडन किया है. एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक सोसायटी का कहना है कि पौराणिक कथाओं और विज्ञान को मिलाना गलत है.
दरअसल आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति जी नागेश्वर राव ने शुक्रवार को आईएससी में कहा था कि कौरवों का जन्म स्टेम सेल और टेस्ट ट्यूब तकनीकों से हुआ था. साथ ही उन्होंने दावा किया कि भगवान राम ने ‘अस्त्रों’ और ‘शस्त्रों’ का इस्तेमाल किया जो लक्ष्यों का पीछा करते थे और उसे भेदने के बाद वापस आते थे. इसकी तुलना उन्होंने बैलेस्टिक मिसाइलों से की.
ऐसे दावे महान हस्तियों के वास्तविक योगदान को कलंकित करते हैं
इस पर ब्रेकथ्रू साइंस सोसायटी, जो विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रचार करने के लिए प्रतिबद्ध है, ने कहा कि यह चिंताजनक है कि प्राचीन भारत के बारे में इस तरह के 'रूढ़िवादी दावे' युवाओं के सामने किए गए. एक बयान में उन्होंने कहा कि ऐसे दावे महान हस्तियों द्वारा किए गए वास्तविक योगदान को कलंकित कर रहे हैं.
सोसायटी का कहना है, 'पौराणिक छंद और महाकाव्य आनंददायक हैं, जिनमें नैतिक तत्व हैं और जिनकी कल्पना भी समृद्ध हैं. लेकिन यह वैज्ञानिक रूप से मान्य सिद्धांत नहीं हैं. प्राचीन भारत के बारे में रूढ़िवादी दावे युवा और प्रभावशाली लोगों के सामने किए गए.' उन्होंने कहा, 'यह चिंताजनक है कि ये दावे आईएससी के बाल विज्ञान कांग्रेस सेक्शन में किए गए. जहां दर्शकों में बड़े पैमाने पर शिक्षक और युवा छात्र बैठे थे.'
संगठन ने आईएससी के पिछले अध्यक्षों जिनमें आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रे (1920), सर राम नाथ चोपड़ा (1948) और पी परीजा (1960) का जिक्र भी किया. जिन्होंने विज्ञान को एक 'उद्देश्य और शिक्षण' की तरह समझा और साथ ही प्राचीन भारत में विज्ञान की उपलब्धियों को उचित मान्यता भी दी.
पहले भी आईएससी में किए गए हैं ऐसे दावे
सोसायटी द्वारा जारी बयान के मुताबिक यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उचित वैज्ञानिक सैद्धांतिक आधार के बिना कोई तकनीकी उपलब्धि नहीं हो सकती है. बयान के अनुसार, 'एक गाइडेड मिसाइल के निर्माण के लिए बिजली, धातु विज्ञान (metallurgy), मैकेनिक्स, रडार, प्रोजेक्टाइल मोशन, ऑपटिक्स, मोशन सेंसर, वायरलेस कम्यूनिकेश वगेराह की आवश्यकता होती है. और प्राचीन भारत में इनमें से कोई भी तकनीक के मिलने का कोई सबूत नहीं है.'
सोसायटी के मुताबिक यह पहली बार नहीं था जब आईएससी में ऐसा गलती हुई है. 2015 के आईएससी कार्यक्रम में, प्राचीन भारत में विमान के अस्तित्व पर दावे किए गए थे. लेकिन उस दावे को भी विज्ञान से जुड़ी संस्थाओं ने अस्विकार कर दिया था. बयान में कहा गया है कि आईएससी अपनी पुरानी गलतियों से कुछ नहीं सीख रही है ऐसे में विज्ञान से जुड़ी संस्थाओं को उनके खिलाफ आवाज बुलंद करनी होगी.
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