अफगानिस्तान के गृह युद्ध में अपने दो बेटों को गंवाने के बाद जसवंत कौर दस साल पहले अपने परिवार के साथ वहां से भागकर भारत आ गई थीं लेकिन शायद ही उन्हें मालूम था कि यहां भी मर्यादा के साथ जिंदगी जीने के लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना हेागा. कौर, उनके नाती-पोते और बेटियां उन हजारों सिखों और हिंदुओं में से हैं जो भारत में सुरक्षा पाने के लिए अफगानिस्तान से भाग कर आए. अब वे भारतीय नागरिकता के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.
नागरिकता हासिल करने की प्रक्रिया करीब 12 साल या उससे भी ज्यादा के इंतजार में खिंच गई. इंसान लाल-फीताशाही और जटिल प्रक्रिया से उब जाता है और उसे औपचारिकताएं पूरी करने के लिए इस दफ्तर से उस दफ्तर तक के चक्कर लगाने पड़ते हैं. कौर के लिए तो और बड़ी चुनौती है. साठ-बासठ की उम्र के आसपास यहां आई कौर के परिवार में सभी महिलाएं ही हैं. उनका तीसरा बेटा जलालाबाद में आत्मघाती बम हमले में मारा गया था. इस हमले में हिंदू सिख समुदाय के अहम सदस्य भी मारे गए थे.
‘खालसा दीवान सोसायटी’ के दिल्ली अध्यक्ष मनोहर सिंह ने कहा, 'इसकी तुलना यूरोप और पश्चिमी देशों की स्थिति से कीजिए जहां अफगान शारणार्थियों को पांच साल में रेजीडेंसी मिलती है.' कौर भारत में वीजा पर रहती हैं जिसे दो-दो साल पर रिन्यू कराना होता है. हाल ही में सरकार दीर्घकालिक वीजा लाई थी लेकिन उसकी प्रक्रिया और जटिल बना दी. सिंह ने कहा कि इस प्रक्रिया में अब शरणार्थियों को दो भारतीय नागरिकों की गांरटी हासिल करनी होती है जो आवेदक के किसी अपराध में पकड़े जाने या नियमों का उल्लंघन करने पर जिम्मेदार होंगे.
नागरिकता प्रक्रिया आसान
अब कौर के लिए सब कुछ लुट गया, ऐसा नहीं है. उन्हें नागरिकता (संशोधन) विधयेक से कुछ आस है जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए नागरिकता प्रक्रिया आसान बनाने का प्रावधान है. दरअसल, इन देशों से जो अल्पसंख्यक भेदभाव के कारण भारत में आ रहे हैं, उनके लिए ऐसा किया गया है.
जलालाबाद हमले के बाद जसवंत कौर के तीसरे बेटे की पत्नी तिरपाल कौर भी अपने चार बच्चों के साथ चार महीने पहले अपनी सास के पास पश्चिमी दिल्ली में आ गई. संयुक्त संसदीय समिति सोमवार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. उसमें वह यह विधेयक पेश करने की सिफारिश कर सकती है.
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