बीते 11 सितंबर को रघुवर दास अपने सरकार के 1000 दिन पूरा कर खुशी मना रहे थे कि उनकी सरकार पर घोटाले का एक छींटा तक नहीं पड़ा. इधर से ना सही, उधर से मार तो जनता को ही खानी है. सो वह खा रही है. राज्य की जनता के 25 हजार करोड़ रुपए चिटफंड कंपनियां खा चुकी हैं.
सीबीआई ने झारखंड में 25,000 करोड़ रुपए के चिटफंड घोटाले में 20 नए एफआइआर दर्ज किए हैं. यह सभी मामले पिछले दस साल के दौरान के हैं. इससे पहले कई मामलों की जांच झारखंड पुलिस कर रही थी.
झारखंड हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई रांची की इकोनॉमिक ऑफेंस विंग (EOW) ने सारे मामले दर्ज किए हैं.
सीबीआई ने पूरे मामले में 100 लोगों बनाया है आरोपी
इन मामलों में सीबीअीई ने 100 से अधिक लोगों को आरोपी बनाया है. चिटफंड कंपनियों के खिलाफ एक जनहित याचिका झारखंड हाईकोर्ट में दर्ज कराई गई थी. यह किया था झारखंड अगेंस्ट करप्शन नामक सामाजिक संस्था ने.
इसके बाद कोर्ट ने सीबीआई को पूरे मामले पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा था. इस पर सीबीआई ने अदालत को राज्य में संचालित 27 चिटफंड कंपनियों की एक सूची सौंपी थी, जो राज्य पुलिस की निगरानी के दायरे में थी. झारखंड सरकार की मदद से सीबीआई इन मामलों की पहचान करेगी.
सीबीआई की वेबसाइट पर 12 और 13 सितंबर को कुल 20 एफआईआर के को ऑनलाइन किया गया है. सभी रांची में दर्ज किए गए हैं.
क्या है चिटफंड घोटाला
चिटफंड एक्ट 1982 के मुताबिक चिटफंड स्किम का मतलब होता है कि कोई शख्स या लोगों का ग्रुप एक साथ समझौता करे. इस समझौते में एक निश्चित रकम या कोई चीज एक तय वक्त पर किश्तों में जमा की जाती है. और तय वक्त पर उसकी नीलामी की जाती है.
जो भी फायदा होता है उसे बाकी लोगों में बांट दिया जाता है. इसमें बोली लगाने वाले शख्स को पैसे लौटाने भी होते हैं.
आम तौर पर चिटफंड कंपनियां इस काम को मल्टीलेवल मार्केटिंग में तब्दील कर देती हैं. मल्टीलेवल मार्केटिंग यानि अगर आप अपने पैसे जमा करते हैं साथ ही अपने साथ और लोगों को भी पैसे जमा करने के लिए लाते हैं. तो इस तरह मोटे मुनाफे का लालच अलग से.
शारदा ग्रुप पहले ही कर चुकी है ऐसा
ऐसा ही बाजार से पैसा बटोरकर भागने वाली चिटफंड कंपनियां भी करती हैं. वो लोगों से उनकी जमा पूंजी जमा करवाती हैं. साथ ही और लोगों को भी लाने के लिए कहती हैं. बाजार में फैले उनके एजेंट साल, महीने या फिर दिनों में जमा पैसे पर दोगुने या तिगुने मुनाफे का लालच देते हैं.
शारदा ग्रुप ने ही महज 4 सालों में पश्चिम बंगाल के अलावा झारखंड, उड़ीसा और नॉर्थ ईस्ट राज्यों में भी अपने 300 ऑफिस खोल लिए. पश्चिम बंगाल की इस चिटफंड कंपनी ने 20,000 करोड़ रुपये लेकर दफ्तरों पर ताला लगा दिया था. इस समय झारखंड में भी लगभग 20 चिटफंड कंपनियां काम कर रही हैं.
क्यों लोग होते हैं इसका शिकार
तत्काल पैसे कमाने की इच्छा किसे नहीं होती. निम्नमध्यमवर्गीय तबका खास तौर पर इस चाह में होता है. उसकी आर्थिक स्थिति ऐसा करने पर मजबूर करती है. यह तबका मेहनत तो करना चाहती है, रोजगार करना चाहती है, लेकिन तत्काल पैसे कमाने की चाह उसे इस मकड़जाल में फंसा देती है.
झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बंगाल जैसे राज्यों के पिछड़े इलाकों में इसका खासा प्रभाव रहा है. इतने फर्जीवाड़े पकड़े जाने के बाद भी, हर दिन नई चिटफंड कंपनियां बाजार में उतर रही है. पुलिस तो मालमे की जानकारी तब मिलती है, जब कंपनियां पैसे लेकर उड़न छू हो चुकी होती है. सिवाय शिकायत दर्ज कराने के, लुटे पिटे लोगों के पास और कोई चारा नहीं होता.
देश भर में 350 कंपनियां गैर कानूनी तरीके से कलेक्टिव स्कीम्स चला रही हैं. इन 350 कंपनियों में से अकेले कोलकाता, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और असम में 140 कंपनियां मौजूद हैं जिनपर सेबी सर्च आपरेशन चला रहा है.
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