उर्दू के मशहूर शायर ‘मीर-तकी-मीर’ अगर आज जिंदा होते तो अपने दो पड़ोसियों (मुल्कों) की हालत देखकर उनके मुंह से शायद यही शेर निकलता इब्तेदा-ए-इश्क है रोता है क्या/ आगे-आगे देखिए होता है क्या.
पिछली 8 जून को एक खबर आई कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान क्षेत्र में दो चीनी नागरिकों की हत्या हो गई. क्वेटा शहर से इनका अपहरण हुआ था और आईएसआईएस ने माना कि पाकिस्तान में ये हत्याएं उन्होंने की हैं. ये घटना ऐसे समय में घटी है जब चीन पूरी दुनिया में अपने आर्थिक विस्तार के लिए प्रतिबद्ध है.
अपनी इस मुहिम में चीन, पाकिस्तान से अपनी पुरानी दोस्ती को और मजबूत किया है. पाकिस्तान में एक आर्थिक गलियारा बन रहा है जो चीन के काश्गर से निकलकर बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट तक जाता है. यही वो जगह है जहांं से चीन का सीधा रिश्ता अरब-सागर से बनता है.
इस राहदारी की सबसे दिलचस्प बात ये है कि पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश करते ही जिसे पाकिस्तान की सीमा कहा जा रहा है वो दरअसल गिलगित का विवादित क्षेत्र है. और पाकिस्तान में जहां इस गलियारे की सीमाएं समाप्त हो रही हैं वो भी बलूचिस्तान का विवादित क्षेत्र ही है.
अब चीन क्या करे?
62 बिलियन डॉलर के अनुमानित खर्च के साथ दो विवादित क्षेत्रों से गुजरते हुए चीन अगर ये आर्थिक गलियारा बना रहा है तो इसके पीछे छिपे जोखिम पर भी उसकी नजर होगी. उसके हजारों नागरिक इस गलियारे के निर्माण में लगे हुए हैं. ऐसे में आतंकियों द्वारा दो चीनी नव-उम्र नागरिकों ली ज़िन्ग्यांग और मेंग लिसी की हत्या पर चीन में जो गुस्सा फूटा है, वो एक अलग कहानी बयान कर रहा है.
इस हत्या से चिंतित, सोशल मीडिया पर सक्रिय चीनी नागरिक मांग कर रहे हैं कि आतंकवादी समूह के खिलाफ लड़ने के लिए, चीन को अपने सैनिकों को पाकिस्तान भेजना चाहिए.
हांगकांग स्थित ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी नागरिकों द्वारा प्रतिक्रियाओं की ये भरमार उन्हीं हत्याओं को लेकर हो रही है.
ट्विटर अकाउंट पर भी लोगों का फूटा गुस्सा
चीन में हमारे देश जैसे सोशल मीडिया के खुले मंच नहीं हैं, वहां ट्विटर स्टाइल का एक सोशल मीडिया प्लेटफार्म है. जिसे ‘वेइबो’ के नाम से जाना जाता है. इस साईट पर लोगों का गुस्सा देखते बनता है, क्योंकि चीनी इन हत्याओं का बदला लेने से कम पर कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं.
मॉर्निंग पोस्ट ने रिपोर्ट किया कि झोउ क्यूई बेई होउ नाम के एक शख्स ने ‘वेइबो’ पर यहां तक लिख दिया कि 'हमें आईएसआईएस के खिलाफ युद्ध छेड़ देना चाहिए, और इन दो हत्याओं के बदले में उनको मार डालना चाहिए'. किसी और ने लिखा 'ये समय है जब हिंसा का जवाब हिंसा से देना चाहिए'.
इन हत्याओं पर पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर अपनी तफ्तीश के बाद बयान दिया कि दरअसल वो दोनों चीनी नागरिक मिशनरी (अवैध) गतिविधियों में शामिल थे, जिससे उन इलाकों में क्रोध पैदा हो गया था. इसपर एक चीनी ने ‘वेइबो' पर लिखा 'पाकिस्तानी सरकार कहती है कि उनकी तफ्तीश में बताया गया कि दोनों चीनी नागरिक मिशनरी थे. मुझे हैरानी हो रही है कि ये बात उन्हें किसने बताई होगी?'.
दोनों देशों का रवैया क्या बदलेगा?
चीन के लोग, चीन की सरकार और पाकिस्तान में फैली कट्टरता, विवादित क्षेत्रों का संघर्ष, ये वो विषय हैं जो एक दूसरे से मेल नहीं खाते और इन सबके बीच व्यापार से होने वाली आमदनी का गणित. क्या ये रिश्ता कभी भी फलदायक हो सकता है?
हालांकि चीन और पाकिस्तान दोनों ने ही इन हत्याओं से उपजी सुरक्षा की चिंताओं को नजरअंदाज किया है, लेकिन भविष्य में अगर ऐसी घटनाएं फिर घटती हैं तब भी, दोनों देशों का रवैया क्या यही रहेगा? इस्लामी कट्टरपंथी चीन में रह रहे चीनी मुसलामानों पर लगी चीनी पाबंदियों के मुखर विरोधी रहे हैं और इसके खिलाफ आवाजें उठाते रहे हैं. क्या चीनी मुसलमान इन कट्टरपंथियों के संपर्क में आकर अपनी आजादी के लिए नए तरीके ईजाद नहीं करेंगे?
एक सवाल कूटनीतिक भी, शायद यह संभव नहीं है कि बिना किसी शह, चीन के इंटरनेट यूजर्स, सोशल मीडिया पर इस तरह पाकिस्तान के खिलाफ वाक्-युद्ध छेड़ सकते हों, क्योंकि वहां इंटरनेट सरकारी फायरवॉल द्वारा नियंत्रित किया जाता है और बिना सरकार की जानकारी के, कोई एक शब्द नहीं लिख सकता. इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि फायरवॉल के बावजूद सोशल मीडिया पर आलोचना की यह बाढ़ कैसे सामने आ रही है?
गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ, अगर ये कहते हैं कि ये आर्थिक गलियारा पाकिस्तान के विकास में मील का पत्थर साबित होगा तो शायद गलत नहीं कहते. लेकिन इसके बदले में वो अपने देश में आने वाले चीनी नागरिकों को (एक सूचना के अनुसार पाकिस्तान अबतक 70 हजार वीजा दे चुका है) सुरक्षा की गारंटी दे पाएगा? अंत में बस इतना, आगे-आगे देखिए होता है क्या.
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