मूडीज के तथाकथित रैंकिंग पर जब पूरा देश लहालोट हो रहा था उसी वक्त देश की राजधानी दिल्ली से 1181 किलोमीटर दूर बिलासपुर के किसानों को सरकार पानी से मरहूम कर रही थी.
राज्य सरकार के आदेश के मुताबिक पानी पर पहला हक उद्योगों का होगा. दूसरा हक जल संसाधन विभाग का और इसके बाद जो बचा हुआ पानी होगा उसे किसानों को मुहैया कराया जाएगा.
इसके साथ ही गर्मी में धान की खेती करनेवाले किसानों को पानी मुहैया नहीं कराया जाएगा. अगर किसी ने बोरिंग के माध्यम से सिंचाई की व्यवस्था की तो उसका बोरिंग जब्त कर लिया जाएगा, बिजली कनेक्शन काट दिया जाएगा.
सरकार का तर्क है कि राज्य में भूमिगत जलस्तर अपने निम्नतम स्तर पर चला गया है. ये खतरनाक स्थिति पर पहुंच चुका है. आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 42 जलाशय में 82 प्रतिशत पानी था. इस साल मात्र 49 प्रतिशत पानी रह गया है. ऐसे में किसानों को भूमिगत जल के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जा सकती.
बिलासपुर के स्थानीय अखबारों में छपी खबर के मुताबिक कमीश्नर टीसी महावर का कहना है कि बांधों और जलाशयों में उपलब्ध पानी का पहला उपयोग उद्योगों के लिए किया जाएगा. इसके बाद पेजयल आपूर्ति के लिए रिजर्व वाटर रखा जाएगा. रिजर्व वाटर के बाद अगर जलाशयों-बांधों में पानी बचता है तो रबी फसल के रूप में दलहन और तिहलन की खेती के लिए किसानों को जल आपूर्ति की जाएगी.
अंडरग्राउंट वाटर का इस्तेमाल कर रहे हैं उद्योग, दोष किसानों पर
हकीकत इससे उलट है. यूं कहिए की सरकारी लापरवाही को छिपाने का ये एक बेजोड़ तरीका है. शरद यादव के सहपाठी रह चुके और छत्तीसगढ़ के किसान नेता आनंद मिश्रा कहते हैं जिस पानी पर पहला हक किसानों का है, उसे छीनकर उद्योगों को दिया जा रहा है.
वे समझाते हैं वाटर लेवल इसलिए नीचे गया है कि अंडरग्राउंड पानी उद्योग को दे दिया गया है. वो भी 5 इंच की जगह 9 इंच बोर कर पानी दिया जा रहा है. ये उद्योग जो पानी खींच रहे हैं उसके कारण जलस्तर हर दिन नीचे जा रहा है, ना कि किसानों के खेती करने के कारण.
धान की खेती में जो पानी इस्तेमाल होता है उसमें 40 से 50 प्रतिशत तक पानी नीचे जाता है. इससे पानी वाटर लेवल को रिचार्ज करता है. जब उद्योग के लिए इस्तेमाल होता है तो खत्म ही होता है. हाल ये है कि राज्य के सैंकड़ों जलाशयों में आपूर्ति के लिए बूंदभर पानी नहीं है.
आनंद बताते हैं कि पिछले साल भी लगभग यही स्थिति थी. उस वक्त राज्य सरकार की ओर से एक सेमिनार बुलाया गया. जब पूछा गया कि इससे निपटने के लिए क्या योजना है, तो सिवाय राहत कार्य के उनके पास कोई योजना नहीं थी. आनंद मिश्रा के दावों की पुष्टि इस बात से भी होती है कि इस साल छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र से 4 हजार करोड़ रुपए के पैकेज की मांग की है.
कमजोर मानसून के बाद इस बार रायगढ़ जिले में औसत से 18 प्रतिशत कम बारिश हुई थी. अगस्त महीने के बाद मानसून के रूठने और कम बारिश के कारण ज्यादातर गांवों में खरीफ की फसल को नुकसान पहुंचा था.
राज्य के 96 तहसील और 380 गांव सूखाग्रस्त घोषित
राजस्व विभाग के रिपोर्ट के आधार पर 96 तहसील और 380 गांवों को सूखाग्रस्त घोषित किया था. इसके बाद राज्य सरकार ने प्रधानमंत्री से सूखा राहत के लिए मदद मांगी.
कम बारिश के कारण जिले में नवंबर महीन से ही भूजल स्तर नीचे जाने लगा है. पीएचई के आंकड़ों में जलस्तर कहीं पर 200 फिट से नीचे चला गया है. केवल बिलासपुर में 380 से अधिक हैंडपंप सूख चुके हैं.
ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित एक रिपोर्ट पांच साल पहले आई थी. इसमें भारत में छत्तीसगढ़ के सात जिलों को सबसे अधिक प्रभावित बताया गया था. ये जिला हैं- कांकेर, धनतरी, रायपुर, महासमुंद, जांगीर, बिलासपुर और मुंगली.
छत्तीसगढ़ में किसानों के मुद्दों को उठाने वाले डॉ संकेत बताते हैं इस घोषणा से किसानों में भारी नाराजगी है. सबने तय किया है कि वो धान लगाएंगे. अगर सरकार ने कार्रवाई की तो जल सत्याग्रह करेंगे.
उनके मुताबिक केवल धान की खेती पर प्रतिबंध लगाने की बात कर रहे हैं. लेकिन दूसरी फसल के लिए भी पानी नहीं दे रहे हैं. सिंचाई के लिए बांध बनाई जाती है. सरकार को उपलब्धि के तौर पर अब ये भी बताना चाहिए कि इस बांध से कितने उद्योगों और उद्योगपतियों को फायदा होनेवाला है.
डॉ संकेत के मुताबिक पानी के हालात उतने खराब नहीं हैं, जितना सरकार बता रही है. सिंचाई जलाशयों में 65 प्रतिशत पानी अभी भी है. असल बात ये है कि सीपत, मड़वा, रायगढ़ में पावर प्लांट लग रहे हैं. इनको पानी देना सरकार की टॉप प्रायोरिटी है. ये घोषणा केवल उद्योगपतियों के दवाब में किया गया है.
हाल ये है कि पिछले साल खरोरा इलाके के मुर्रा गांव के पास जो बांध है, उसे सरकार खोद रही थी. क्योंकि उसे सीमेंट प्लांट को देने का वादा किया था. किसानों ने आंदोलन किया, तब जाकर उसे रोका जा सका है.
किसानों को शहर में पलायन कराने की है योजना
कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा कहते हैं इस घोषणा पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं हो रहा है. वहां तो पहले ही शिवनाथ नदी को सरकार ने निजी कंपनियों को दे दिया है. वो अपनी जरूरतें पूरी करेंगी. अभी तो केवल छत्तीसगढ़ में ऐसा हुआ है, बहुत जल्द पूरे देश में ऐसा ही होने जा रहा है.
इसे बड़े परिपेक्ष्य में समझने की जरूरत है. विश्व बैंक ने पहले ही कहा था भारत में गांव से शहर की ओर पलायन करनेवालों की संख्या जर्मनी, इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों से अधिक होगा. उनका कहना है कि भारत आर्थिक विकास के फ्रंट पर तब सफल होगा जब गांव से 40 करोड़ लोग शहर की ओर आएंगे. अगर खेती की समस्या को ठीक कर दिया जाएगा, तब ऐसा हो पाएगा.
उनका मानना है कि गांव से लोगों को निकालिए, तभी उद्योग चल पाएंगे. गांव के लोग केवल खेती जानते हैं, ऐसों के लिए ट्रेनिंग नेटवर्क खोलिए. आप देखेंगे कि पिछले साल ही 1000 आईटीआई खोलने की शुरूआत कर दी है सरकार ने.
देश में हर दिन किसान मर रहे हैं. सभी राज्य पानी की समस्या से बुरी तरह प्रभावित हैं. लेकिन एक भी बड़ा आंदोलन या इनके नेता नहीं है. हाल में जो दिल्ली में आंदोलन हुए हैं, उसके नेता भी सांसद बनने को ललायित है. भला किसान और किसानी मुद्दे कहां से उठ पाएंगे.
नर्मदा डैम का पानी भी खेतों में कम उद्योगों को अधिक दिया जा रहा है, जहां पानी नहीं भी जाना चाहिए वहां भी दिया जा रहा है. बूंदेलखंड में हर गांव में पांच तालाब होते थे. आज एक भी नहीं हैं. जिस तरीके से जीएसटी पर सभी राज्यों के साथ मैराथन मीटिंग होती है, अगर तालाब के लिए ऐसा ही टास्कफोर्स बनाया जाए, सूरत बदलते देर नहीं लगेगी.
उनका कहना है कि अभी भारती मित्तल ने 7000 करोड़ से गरीबों के लिए आवास बनाने की घोषणा की है. इन्हीं की कंपनी चार लाख 85 हजार करोड़ रुपया सरकार से मांग रही है. ये किसका पैसा है. हमारे ही पैसे से हमपर एहसान कर रहे हैं.
सरकार के मुताबिक तय सीमा से कम पानी ले रहे हैं उद्योग
छत्तीसगढ़ के जल संसाधन विभाग के सचिव एस. एस. बोरा का कहना है कि इस बात को गलत तरीके से लिया गया है. प्रावधान ये है कि ग्रीष्मकालीन धान के लिए पानी नहीं देना है. दलहन और तिलहन की खेती करनेवाले किसानों को पानी दिया जाएगा. रही बात उद्योगपतियों को पानी देने की तो जो उनके साथ एग्रीमेंट हुआ है, उतना तो देना पड़ेगा ना.
बोरा कहते हैं कि उद्योगपतियों के साथ जितने पानी का एग्रीमेंट हुआ था, वो खुद उससे कम ले रहे हैं. राज्य में सूखा पड़ा है. इसलिए पहले पीने के पानी को सुरक्षित रखा जाएगा.
वैसे भी ग्रीष्मकालीन धान धनी किसान ही उपजाते हैं. छत्तीसगढ़ में तो कभी भी इस धान के लिए पानी नहीं दिया गया. ऐसे में भला धान के लिए पानी कैसे दे सकते हैं. दूसरी बात ये कि ग्रीष्मकालीन धान जब खरीदा ही नहीं जाएगा, तो किसान उपजा क्यूं रहे हैं.
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