मुख्य चुनाव आयुक्त पद पर आसीन रहे ओपी रावत 1 दिसंबर 2018 को रिटायर हो गए और उनकी जगह सुनील अरोड़ा को नया मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है. ओपी रावत का मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर कार्यकाल एक साल रहा और इस दौरान उन्होंने त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और मिजोरम में चुनाव कराए.
इस दौरान द इंडियन एक्सप्रेस ने आइडिया एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत ओपी रावत से कई मुद्दों पर बातचीत की. वहीं ओपी रावत ने भी खुलकर बहुत कुछ बताया. आइए आपके लिए पेश है उनकी बातचीत के कुछ खास अंश-
नोटबंदी का कालेधन के इस्तेमाल पर कोई फर्क नहीं पड़ा है
द इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार रितिका चोपड़ा ने ओपी रावत से कालाधन जैसे मामले को लेकर कई सवाल किए. उन्होंने सवाल पूछा कि नोटबंदी को 2 साल पूरे हो चुके हैं. क्या इससे चुनावों के दौरान कालेधन के इस्तेमाल पर कोई प्रभाव पड़ा है? इस सवाल के जवाब में ओपी रावत ने कहा कि नोटबंदी का चुनावों के दौरान कालेधन के इस्तेमाल पर कोई फर्क नहीं पड़ा है. हमने हाल ही में 5 राज्यों के चुनावों के दौरान भी 200 करोड़ रुपए की रिकॉर्ड रकम सीज की है. इसका मतलब ये है कि चुनावों के दौरान जिस सोर्स से पैसा चुनावों में आ रहा है, वह बेहद प्रभावी है और नोटबंदी का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा है.
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर ईवीएम से जुड़े कई सवालों के जवाब हैं
ईवीएम में धांधली की कथित खबरों को लेकर जब ओपी रावत से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि हम सार्वजिक जगहों, जैसे मॉल्स, म्यूजियम आदि पर मतदाताओं को जागरूक करने के लिए कई कैंपेन चला रहे हैं. इसमें मतदाताओं को ईवीएम और वीवीपैट मशीनों के बारे में अच्छी तरह से जानकारी दी जाती है. इस पूरी कवायद से मतदाताओं के बीच ईवीएम को लेकर विश्वास बनाया जा रहा है. ओपी रावत ने बताया कि देश की 99 फीसदी राजनितिक पार्टियां ईवीएम के पक्ष में हैं. जब हमने ईवीएम को चेक करने के लिए राजनितिक पार्टियों को बुलाया था तो सिर्फ 2 पार्टियां ही सामने आई थीं और वो भी यह कहकर आई थीं कि वह ईवीएम के बारे में सीखना चाहते हैं. चुनाव आयोग की वेबसाइट पर भी ईवीएम से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए गए हैं. ओपी रावत ने कहा कि भारतीय ईवीएम मशीन यूनिक है और इसे हैक नहीं किया जा सकता.
आयोग को करीब 34 लाख ईवीएम मशीनों की जरूरत होगी
पीएम मोदी देश में केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ कराने की बात उठा चुके हैं. इस संबंध में जब ओपी रावत से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि भारत इसके लिए तैयार है. आजादी के बाद 1952,1957,1962 और 1967 में एकसाथ चुनाव कराए गए थे लेकिन अब ऐसा कराने के लिए संविधान में बदलाव कर कुछ कानून बनाने होंगे. एक बार जब कानून बन जाएंगे तो इसके बाद पोलिंग मशीनरी और सुरक्षाबलों आदि की जरूरत पर विचार किया जाएगा. एक साथ चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को करीब 34 लाख ईवीएम मशीनों की जरूरत होगी जबकि अभी हमारे पास सिर्फ 17 लाख ईवीएम मशीनें ही मौजूद हैं. इस तरह एक साथ चुनाव कराना संभव तो है लेकिन इसके लिए कानून बनाना होगा और चुनाव का खर्च बहुत बढ़ सकता है.
चुनावों में सोशल मीडिया के असर को कम रखने की कोशिश की गई
चुनावों में सोशल मीडिया के प्रभाव के सवाल में ओपी रावत ने कहा कि सोशल मीडिया चुनावों पर बहुत बड़ा असर डाल रहा है. भारत में चुनावों के दौरान इसके प्रभाव को कम करने के लिए सोशल मीडिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों जैसे फेसबुक, ट्विटर, गूगल आदि से बातचीत की जा रही है. कंपनियों को कहा जा रहा है कि वह चुनावों के दौरान अपने प्लेटफॉर्म को इस्तेमाल होने से रोकें. वह विज्ञापन और स्पॉन्सर्स आदि के नाम पर चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश पर रोक लगाएं. कर्नाटक चुनावों के दौरान ऐसा किया गया था और इसका काफी सकारात्मक असर भी देखने को मिला था. फिलहाल 5 राज्यों के चुनावों में भी सोशल मीडिया के असर को कम रखने की कोशिश की गई है. एक सोशल मीडिया हब बनाकर इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है.
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