कावेरी जल विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुना दिया. फैसले के मुताबिक कावेरी नदी का 177.25 टीएमसी पानी तमिलनाडु को मिलेगा. कर्नाटक को 14.75 टीएमसी पानी अतिरिक्त मिलेगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि तमिलनाडु में 20 टीएमसी पानी का कोई हिसाब नहीं लगाया है जिस पर सरकार को गौर करना जरूरी है.
कावेरी जल विवाद कई दशकों से चार प्रदेशों के बीच मतभेद का कारण बना हुआ था जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने अंततः अपना फैसला सुना दिया. आईए इस मुद्दे के बारे में विस्तार से जानते हैं.
-जल बंटवारे को लेकर साल 2007 में कावेरी वॉटर डिसप्यूट ट्रायब्यूनल (सीडब्लूडीटी) के फैसले के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल ने सुप्रीम कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी. 16 फरवरी को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसपर फैसला सुनाया.
-इससे पहले 20 सितंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.
-तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और पुडुचेरी ने कावेरी ट्रायब्यूनल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
-जल विवाद की असली जड़ मद्रास-मैसूर एग्रीमेंट 1924 को माना जाता है. विवाद के निपटारे के लिए 1990 में केंद्र सरकार ने एक ट्रायब्यूनल बनाया जिसे पानी की किल्लत की समस्या पर गौर फरमाना था.
-इस बाबत सीडब्लूडीटी ने कावेरी बेसिन में पानी की उपलब्धता देखते हुए एक सुर में अपना प्रस्ताव जारी कर किस राज्य को कितना पानी मिलना चाहिए, इसका प्रस्ताव पारित कर दिया था.
-सुप्रीम कोर्ट पहले की सुनवाईयों में तमिलनाडु को निश्चित मात्रा में पानी देने के लिए कर्नाटक सरकार को आदेश देता रहा है.
-5 सितंबर 2016 के सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद प्रदेशों के बीच खटपट तब बढ़ गई जब अदालत ने कर्नाटक को निर्देश दिया कि वह लगातार 10 दिन तक तमिलनाडु को 15 हजार क्यूसेक पानी सप्लाई करे.
-मामले के सियासी परिणामों को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने कावेरी ट्रायब्यूनल के आदेश में रद्दोबदल के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी.
-अपने पुराने आदेश में बदलाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु को 20 सितंबर तक हर दिन 12 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश पारित किया.
-कर्नाटक ने तमिलनाडु को पानी देने से मना कर दिया. इसके लिए उसने अपनी जरूरतों और पानी की किल्लत का हवाला दिया.
-18 अक्टूबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक कर्नाटक सरकार से तमिलनाडु के लिए हर दिन 2 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया.
-9 जनवरी 2017 को तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट यह कहते हुए पहुंची कि कर्नाटक सरकार ने उसे पानी नहीं दिया इसलिए उसे 2480 करोड़ रुपए का हर्जाना मिलना चाहिए.
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