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10 फीसदी कोटा: वो बातें जिनके बारे में हम शायद कम ही जानते होंगे...

मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी है. आइए जानते हैं आरक्षण से जुड़ी वो बातें जिनके बारे में हम शायद कम ही जानते होंगे...

Updated On: Jan 08, 2019 02:54 PM IST

FP Staff

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10 फीसदी कोटा: वो बातें जिनके बारे में हम शायद कम ही जानते होंगे...

मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी है. जब से 10 प्रतिशत आरक्षण देने की खबर सामने आई है, तभी से हर कोई ये जानने की कोशिश में जुटा हुआ है कि आखिर ये आरक्षण है क्या, किसे मिलेगा, कैसे मिलेगा और इसमें क्या-क्या होगा. आइए जानते हैं आरक्षण से जुड़ी वो बातें जिनके बारे में हम शायद कम ही जानते होंगे...

- मौजूदा समय में सरकार ने 27 प्रतिशत आरक्षण पिछड़ी जातियों को दिया हुआ है और 22.5 प्रतिशत आरक्षण एसटी/एसटी को. जिस हिसाब से कुल आरक्षण 49.5 प्रतिशत है. अगर आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को भी 10 प्रतिशत आरक्षण मिलता है, तो ये बढ़कर 59 प्रतिशत हो जाएगा. अगर सरकार को ऐसा करना है, तो उसे कानून में संशोधन करना होगा.

- भारत के संविधान के मुताबिक, देश के जिन नागरिकों की सालाना आय एक लाख रुपए से कम है और वो एससी, एसटी और ओबीसी कैटगरी में भी नहीं आते हैं, उन्हें ईबीसी (आर्थिक तौर पर पिछड़े) की कैटगरी में रखा जाता है. हालांकि संविधान में आर्थिक तौर पर कमजोर सवर्ण जाति के लोगों के लिए संविधान में ज्यादा कुछ नहीं है.

- सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, सामाजिक पिछड़ेपन के हिसाब से सरकार 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकती. लेकिन सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में सरकार ज्यूडिशियल स्क्रूटनी से बच सकती है. सरकार सवर्णों को आरक्षण देने में इसलिए भी सफल हो सकती है, क्योंकि अभी तक जो आरक्षण दिया जाता है, वो जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव के मद्देनजर दिया जाता है. लेकिन सवर्णों को आरक्षण देने के पीछे की वजह आर्थिक तौर पर पिछड़ापन है.

- इससे संविधान पर असर पड़ेगा या नहीं, इस बारे में न्यूज 18 से बात करते हुए पीएस कृष्णन ने बताया कि संविधान में वैसे प्रावधान (आरक्षण) गरीबों के लिए नहीं हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि सरकार को गरीबों की मदद करने से रोका गया हो. सरकार सब्सिडीज, स्कॉलरशिप्स, लोन, आर्थिक उन्नति आदि के जरिए गरीबों की मदद कर सकती है. अगर संविधान में संशोधन कर भी दिया जाता है, तब भी उसे इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि ये संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है.

- आरक्षण की अधिकतम सीमा संविधान में तय नहीं की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे तय किया है. वह भी सुझाव के तौर पर. पहली बार एम.आर. बालाजी केस के फैसले में जब आरक्षण की अधिकतम सीमा की बात आई तो कोर्ट ने सुझाव के तौर पर कहा कि आम तौर पर आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. लेकिन राज्यों को परिस्थिति के हिसाब से आरक्षण की सीमा तय करने का अधिकार दिया गया.

- इसलिए तमिलनाडु 69 फीसदी आरक्षण (शिक्षण संस्थानों में एडमिशन के लिए) देता है. हालांकि ये मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में है. दूसरी बात यह है कि किसी जाति को आरक्षण मिलना चाहिए कि नहीं, इसके लिए संविधान और संविधान द्वारा बनाए गए आयोग की स्पष्ट शर्तें हैं. किसी जाति के कितने मुख्यमंत्री या विधायक हो गए, इस आधार पर वह जाति आरक्षण के योग्य या अयोग्य नहीं हो जाती.

- एक और सवाल ये भी उठता है कि जाति के आधार पर पहले ही 49 प्रतिशत आरक्षण है. अगर सरकार इसमें कोई बदलाव नहीं करना चाहती है, तो उसे 10 प्रतिशत कोटा बचे हुए 51 प्रतिशत से लेना पड़ेगा. क्या ये मुमकिन हो पाएगा?

- आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ने 25 सितंबर 1991 को एक ऑफिस मेमोरेंडम (ओएम) जारी कर आरक्षण की व्यवस्था की थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह लागू करने लायक नहीं है. कोर्ट ने कहा था कि आर्टिकल 16(1) और 16(4) के तहत ये संभव नहीं है.

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