सोमवार को जब बुलंदशहर में हिंसा हो रही थी उस वक्त शहर में 10 लाख से ज्यादा मुसलमान इकट्ठा हुए थे. देश का शायद ही कोई सूबा छूटा होगा जहां से कोई मुसलमान यहां न पहुंचा हो. वजह थी तबलीगी जमात का इज्तेमा. जो तीन दिनों तक चला.
सोमवार को इज्तेमा का आखिरी दिन था. जमात-ए-इज्तेमा 1 दिसंबर से शुरू हुआ था जिसके लिए दूर-दराज के इलाकों से लोग बुलंदशहर में इकट्ठा हुए. इस दौरान जिसे जो गाड़ी मिली उसी पर सवार होकर बुलंदशहर पहुंचा. ये सिलसिला अगले 3 तीन दिनों तक चलता रहा.
जानकारों के अनुसार, बुलंदशहर के गांव दरियापुर में इज्तेमा का आयोजन किया गया. 8 लाख स्क्वायर फुट जमीन पर चल रहे इज्तेमा में 10 लाख से अधिक लोगों के लिए पंडाल बनाए गए. खास बात यह थी कि आयोजन स्थल पर ही लाखों लोगों के लिए खाना भी बनाया गया. रेलवे ने 12 ट्रेनों के लिए अस्थाई स्टापेज भी बनाए थे.
क्या है तबलीगी जमात का इज्तेमा?
बुंलदशहर में आयोजित हुआ तबलीगी जमात का इज्तेमा देश का अब तक का सबसे बड़ा इज्तेमा बताया जा रहा है. इसमें में धर्म के बताए रास्ते पर चलने, दूसरों की मदद करने, मेल-मोहब्बत से रहने, अपने वतन से मोहब्बत और उसकी हिफाजत के बारे में तकरीर (भाषण) की जाती है. इसके साथ ही इज्तेमा के आखिरी दिन दुआ होती है. मुल्क और मुल्क में रहने वालों की तरक्की के लिए दुआ की जाती है. मुल्क को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने की भी दुआ होती है.
फजर की नमाज (सुबह की) पढ़ने के साथ ही इज्तेमा शुरू हो जाता है. अलग-अलग सेशन में उलेमाओं की तकरीर होती है. तकरीर का सिलसिला जोहर की नमाज (दोपहर की) तक जारी रहता है. इसके बाद खाना शुरू हो जाता है और फिर तीन बजे के बाद इज्तेमा दोबारा शुरू होता है और इस तरह से देर शाम और रात की नमाज के बाद भी तकरीर जारी रहती है.
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