पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने बुलंदशहर में एक पुलिस कर्मी की हत्या के संबंध में कार्रवाई करने में कथित रूप से विफल रहने पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना करते हुए एक खुला पत्र लिखा है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग की है.
83 पूर्व नौकरशाहों ने इस पत्र में नागरिकों से ‘घृणा और विभाजन की राजनीति के खिलाफ मुहिम’ में एकजुट होने का आह्वान किया है. उनका कहना है कि इस राजनीति का लक्ष्य हमारे गणतंत्र की बुनियाद समझे जाने वाले मौलिक सिद्धांतों को नष्ट करना है.
पत्र में कहा गया है, ‘यह संवैधानिक मूल्यों का तीव्र क्षरण का ऐसा प्रमाण है कि बतौर एक समूह हमने पिछले अठारह महीने में नौ बार बोलना अत्यावश्यक समझा.’
बुलंदशहर में कथित गोहत्या को लेकर तीन दिसंबर को फैली हिंसा में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और एक अन्य व्यक्ति की जान चली गई थी. इस मामले का मुख्य आरोपी दक्षिणपंथी संगठन बजरंग दल का नेता है. इससे पहले खबर आई थी कि स्थानीय बीजेपी नेताओं ने उन पर धार्मिक कार्यक्रमों में बाधा पैदा करने का आरोप लगाते हुए उनके तबादले की मांग की थी.
मुख्मंत्री कार्रवाई का आदेश देने से करते हैं इनकार
पत्र के अनुसार बुलंदशहर की हिंसा बहुमत के बाहुबल को प्रदर्शित करने और क्षेत्र के मुसलमानों को यह संदेश देने का प्रयास है कि उन्हें डर के जीना होगा, अपना अधीनस्थ दर्जा स्वीकारना होगा और बहुसंख्यक समुदाय के सांस्कृतिक फरमानों को मानना होगा.
इस पत्र पर जिन लोगों ने दस्तखत किए हैं उनमें पूर्व विदेश सचिव श्याम शरण, सुजाता सिंह, कार्यकर्ता अरुणा राय, हर्षमेंधर, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, प्रसार भारती के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी जवाहर सरकार और योजना आयोग के पूर्व सचिव एनसी सक्सेना आदि शामिल हैं.
पत्र में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री इस घटना की गंभीरता, उसकी सांप्रदायिक मंशा को मानने से, हिंसा के कर्ताधर्ताओं की निंदा करने, पुलिस को उनके विरुद्ध कार्रवाई का आदेश देने से इनकार करते हैं.
पूर्व नौकरशाहों ने इन मामलों पर चुप्पी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी प्रहार किया है. उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट से बुलंदशहर घटना का स्वत: संज्ञान लेने का भी अनुरोध किया है.
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