इस बार के बजट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिडिल क्लास की अनदेखी करके बड़ा जोखिम लिया है. बजट में न सिर्फ ताकतवर मिडिल क्लास की अनदेखी की गई है, बल्कि कई ऐसे कदम उठाए गए हैं, जिनसे उसके जज्बातों को चोट पहुंचती है.
बजट में वित्तीय अनुशासन का कतई ध्यान नहीं रखा गया है. जबकि हमें वित्त मंत्री जेटली से इसी की उम्मीद थी कि वो सरकार के जमा-खर्च में अनुशासन बरतेंगे. कुल मिलाकर इस बजट को चुनावी घोषणापत्र कहा जाए तो गलत नहीं होगा. 2019 के चुनाव से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली का ये आखिरी पूर्ण बजट था. ये मोदीनॉमिक्स यानी अर्थव्यवस्था चलाने के मोदी के तरीके की झलक देने वाला है और पीएम मोदी का झुकाव साफ तौर पर समाजवाद की तरफ दिख रहा है. टैक्स भरने वाले मिडिल क्लास को बजट ने बहुत निराश किया है. सिर्फ नाम के कुछ झुनझुने पकड़ाए गए हैं. ऐसा लगता है कि बजट के जरिए मिडिल क्लास को सरकार ने सिर्फ एक संदेश दिया है. वो ये कि आप पैसे कमाएं और फिर इसे सरकार को दे दें ताकि वो अपनी जनहित की योजनाओं को चला सके. और हां, इसके बदले में आप सरकार से कोई उम्मीद न करें.
साफ है कि बीजेपी को लगता है कि ग्रामीण क्षेत्र पर जोर देकर वो साल 2019 में सत्ता में वापसी कर सकती है. आज भारत की दो-तिहाई आबादी ग्रामीण इलाकों में जो रहती है. हालांकि इसका यकीन करना ठीक नहीं है. अब तक देश का मिडिल क्लास मजबूती से बीजेपी के साथ खड़ा रहा है. बीजेपी को अगर इस तबके को अपने साथ रखना है, तो ये याद रखे कि मिडिल क्लास की अनदेखी से उसे भारी नुकसान हो सकता है. पार्टी का ये सोचना नुकसानदेह हो सकता है कि जनता के पास उसका विकल्प नहीं है.
आंकड़ों के विशेषज्ञ जे म्रग ने टाइम्स ऑफ इंडिया में साल 2014 में यूपीए की हार का एक कारण मिडिल क्लास की नाराजगी को भी बताया था. म्रग ने मिडिल क्लास कम्फर्ट इंडेक्स के नाम से एक पैमाना गढ़ा है. उन्होंने कहा कि इस पैमाने के मुताबिक साल 2004 के बाद से शहरी और ग्रामीण मध्यम वर्ग आज भारत में बहुत बड़ी सियासी ताकत बनकर उभरा है. कोई भी सियासी दल अपने रिस्क पर ही इसकी अनदेखी कर सकता है.
बजट में मिडल क्लास की अनदेखी
इसे इस बार के बजट से जोड़ें तो ये समझना होगा कि सरकार की विकास योजनाओं में इस वर्ग का खास ध्यान रखा जाना चाहिए. सरकार को मध्यम वर्ग का भरोसा जीतने के लिए उसे ये बताना होगा कि बजट में उसके लिए क्या है. ये भी बताना होगा कि इससे मिडिल क्लास को क्या फायदा होगा. मध्यम वर्ग का कितना पैसा बचेगा, सत्ताधारी दल को ये बात मिडिल क्लास को समझानी होगी. मोटे अनुमान के मुताबिक देश की एक तिहाई आबादी मध्यम वर्ग के दायरे में आती है.
इस बार के बजट में इस वर्ग के लिए कुछ नहीं है. जबकि ये वर्ग उस वक्त मजबूती से मोदी के साथ था जब उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी को लागू करने जैसे कदम उठाए. नौकरीपेशा लोग मिडिल क्लास का अहम हिस्सा हैं. अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार, बढ़ती महंगाई और ईंधन के महंगे होने से इस वर्ग की जेब को खासी चोट पहुंची है. बजट ने नौकरीपेशा लोगों की उम्मीदों को न सिर्फ तोड़ा है बल्कि बजट के एलान से उनकी जेब और हल्की करने का इंतजाम भी सरकार ने कर दिया है.
मसलन, वित्त मंत्री ने जेटली ने इन्कम टैक्स स्लैब में रियायत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. आज जब बचत बहुत कम है तो उम्मीद थी कि बजट में इन्कम टैक्स में रियायत को 2.5 लाख से बढ़ाकर 3 लाख किया जाएगा. इसी तरह 5 से 10 लाख तक की आमदनी वालों से सिर्फ 10 प्रतिशत की दर से टैक्स वसूला जाएगा. दस से बीस लाख तक की आमदनी वालों पर 20 प्रतिशत की दर से इन्कम टैक्स लगाया जाएगा. इसके ऊपर की कमाई पर 30 फीसद टैक्स लगाए जाने की उम्मीद थी.
स्टैंडर्ड डिडक्शन से ज्यादा देना होगा सेस
लेकिन वित्त मंत्री ने ऐसा कुछ नहीं किया. इसके बजाय उन्होंने बजट में पुराने स्टैंडर्ड डिडक्शन को 40 हजार रुपए की दर के साथ फिर से लागू करने का एलान किया. इसे भी ट्रांसपोर्ट और मेडिकल रिइम्बर्समेंट के एवज में लागू किया गया है. स्टैंडर्ड डिडक्शन वो दर होती है, जिसमें एक खास रकम को टैक्स से पूरी छूट दी जाती है. वित्त मंत्री का दावा है कि इससे लोगों के पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसे बचेंगे.
लेकिन इसमें भी एक शर्त है. जो स्टैंडर्ड डिडक्शन है, उसमें मेडिकल खर्च के 15,000 और सालाना ट्रांसपोर्ट भत्ते के 19,200 रुपए शामिल हैं. मतलब ये कि ज्यादातर मामलों में इस स्टैंटर्ड डिडक्शन के नाम पर मिलने वाली रियायत का कोई फायदा नहीं होता. जिसकी आमदनी पांच लाख तक है, उसे ही मामूली फायदा होगा. इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, बाकी नौकरीपेशा लोगों को तो इससे जो फायदा होगा, उससे ज्यादा तो सेस देना होगा, जो 3 से बढ़ाकर 4 फीसद कर दिया गया है. हकीकत ये है कि जिसकी आमदनी पांच लाख सालाना से ज्यादा है, वो स्टैंडर्ड डिडक्शन के बाद ज्यादा टैक्स भरेगा. क्योंकि उसके मेडिकल और ट्रांसपोर्ट भत्ते खत्म हो गए हैं. और सेस का बोझ बढ़ गया है.
जेब में पैसे कम डाले और निकाले ज्यादा
मिडिल क्लास की मुसीबतें और बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री ने एक लाख से ज्यादा के फायदे पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स 10 प्रतिशत की दर से लगाने का एलान किया है. राहत की बात बस इतनी है कि जो लोग 31 जनवरी तक बाजार से होने वाला फायदा समेट लेंगे, उन्हें ये टैक्स नहीं देना पड़ेगा. बाजार में पैसे लगाकर मध्यम वर्ग थोड़ी बहुत संपत्ति बना लेता था. अब उस पर भी टैक्स भरिए. जिसे स्टैंडर्ड डिडक्शन से थोड़ा बहुत फायदा होना भी था, उससे ये टैक्स लेकर वित्त मंत्री ने एक हाथ से दिया फायदा दूसरे हाथ से छीन लिया है. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने बजट के बाद प्रेस कांफ्रेंस में कहा भी कि सरकार ने जेब में पैसे कम डाले हैं, और निकाले ज्यादा हैं.
बुजुर्गों को मामूली रियायत
मिडिल क्लास के बुजुर्गों को जरूर मामूली रियायत दी गई है. पेंशनर को स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा होगा. सरकार ने बुजुर्गों को कुछ और रियायतें भी दी हैं. उनको जमा पर मिलने वाले ब्याज की रियायत दस हजार से बढ़ाकर 50 हजार कर दी गई है. स्वास्थ्य बीमा के पचास हजार रुपए पर भी टैक्स में छूट बुजुर्गों को मिलेगी. ये रियायत 80डी के तहत मिलेगी. वित्त मंत्री ने बुजुर्गों की गंभीर बीमारी पर होने वाले खर्च में छूट को 60 हजार तक कर दिया है. बहुत बुजुर्ग लोगों को सेक्शन 80 डीडीबी के तहत एक लाख रुपए तक की रियायत गंभीर बीमारियों के इलाज में मिलेगी.
ये बजट पूरी तरह से दिशाहीन मालूम होता है. इसमें भविष्य की कोई योजना नहीं दिखती. बजट का फोकस दौलत कमाने के बजाय इसके बंटवारे पर है. किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार ने कुछ घोषणाएं की हैं. जैसे कि हर फसल की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य करना, पशुपालन, मछली पालन, ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देने जैसे एलान किए गए हैं. साथ ही राष्ट्रीय बांस आयोग की स्थापना, फू़ड प्रॉसेसिंग को मदद देने जैसी कुछ अच्छी बातें बजट में हैं. लेकिन, इसका फायदा तभी होगा जब जमीनी स्तर पर इन्हें ठीक से लागू किया जाए.
सरकार ने ओबामाकेयर की तर्ज पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना का भी एलान किया है. इसे मोदीकेयर कहा जा रहा है. इसके लिए सरकार 1200 करोड़ रुपए खर्च करके स्वास्थ्य संरक्षण केंद्र खोलेगी. साथ ही सरकार ने 10 करोड़ गरीब परिवारों को अस्पताल के खर्च के लिए 5 लाख रुपए सालाना मदद देने का भी एलान किया है. कहा जा रहा है कि इससे 50 करोड़ लोगों को फायदा होगा. इसे दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी स्वास्थ्य योजना कहा जा रहा है. लेकिन बजट में इसके लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है.
इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य पूरी तरह राज्य सरकारों से सहयोग पर निर्भर होगा. फिर वादे और उन्हें पूरे करने में फर्क हमेशा ही रहा आता है. मिडिल क्लास की नाराजगी की भरपाई, सरकार ग्रामीण इलाकों पर जोर देकर कर पाएगी, ये कहना मुश्किल है. मोदी सरकार को इस मामले में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की नियति से कुछ सबक सीखना चाहिए था.
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