कश्मीर आज जिस तरह की उठापटक और निराशा में डूबा हुआ है, उसमें अभी और खून-खराबा होने का डर है. और लोग मारे जाएंगे, और जनाजे निकलेंगे.
पिछले साल गर्मियों में भड़की हिंसा घाटी में फिर से लौट आई है. दो दिन पहले जब तीन युवाओं के जनाजे उठे तो लोगों के जहन में ये सवाल था कि ये खून-खराबा कब थमेगा? कश्मीर में हिंसा कभी रुकेगी भी या नहीं?
मंगलवार को तीन युवा प्रदर्शनकारी सुरक्षा बलों की गोलियों के शिकार हुए थे. कई लोग घायल भी हुए. प्रदर्शनकारी, बडगाम में उस जगह पर जमा हो गए थे जहां सुरक्षाबलों की आतंकवादियों से मुठभेड़ चल रही थी.
लोगों ने पत्थर फेंकने शुरू कर दिए ताकि आतंकवादी भाग निकलने में कामयाब हो जाएं. बदले में सुरक्षाबलों ने भी उन पर गोलियां चलाई.
सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों और वीडियो से साफ है कि सुरक्षाकर्मी, प्रदर्शनकारियों पर सीधी गोलीबारी कर रहे थे. कुछ वीडियो में तो सुरक्षाबल भाग रहे लोगों का पीछा करते भी दिखाई दिए.
घाटी में आज इस तरह के हालात हैं. अगर इसे रोकने की कोशिश नहीं हुई तो पहले से ही डरे हुए लोगों की तकलीफें और बढ़ेंगी.
इसमें कोई दो राय नहीं कि दरबघ गांव में जब सुरक्षाबलों ने आतंकवादी को घेरा हुआ था तो उन पर पत्थर फेंके गए लेकिन आम लोगों पर गोलीबारी से स्थानीय लोगों का गुस्सा और भड़का.
जब सुरक्षाकर्मियों की आतंकवादियों से मुठभेड़ चल रही थी तब आस-पास के हजारों लोग वहां पर जमा हो गए. उनकी कोशिश थी कि पत्थरबाजी करके वो सुरक्षाबलों का ध्यान बंटाएं ताकि फंसे हुए आतंकवादी भाग सकें.
पर, सवाल ये है कि सुरक्षा बल आम लोगों के सिर, गर्दन या छाती पर गोलियां कैसे चला सकती हैं? आम तौर पर ऐसे प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाना आखिरी विकल्प होता है. तब भी गोलियां उनके पैरों को निशाना बनाकर चलाई जाती हैं.
मगर यहां तो सुरक्षा बल उनके सिर और सीने पर सीधे गोलियां चला रहे हैं. ऐसे लोगों की पड़ताल नहीं होनी चाहिए?
पिछले महीने सेना अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि सेना के ऑपरेशन में बाधा डालने वालों को आतंकियों का समर्थक माना जाएगा. उनसे सख्ती से निपटा जाएगा. आर्मी चीफ की चेतावनी का कोई खास असर नहीं हुआ. वहीं अलगाववादियों ने कहा कि सेना ने तो स्थानीय लोगों के खिलाफ ही जंग छेड़ दी है.
सेनाध्यक्ष के बयान के बाद भी सुरक्षाकर्मी, प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं. पहले ऐसा नहीं था. पहले प्रदर्शनकारियों से ऐसी क्रूरता से पेश नहीं आते थे. लेकिन अब तो सुरक्षाकर्मी खुलेआम प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाकर गोलियां चला रहे हैं. वहां आस-पास कैमरे लगे हैं, सबकुछ कैमरे के सामने हो रहा है. वीडियो को फेसबुक पर लाइव दिखाया जा रहा है.
सवाल उठता है कि क्या जम्मू-कश्मीर की पुलिस या अर्धसैनिक बल, प्रदर्शनकारियों पर दूसरे तरीकों से काबू पाने में नाकाम रहे हैं? क्या वो आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान स्थानीय लोगों को उस जगह से दूर नहीं रख पा रहे हैं?
सेनाध्यक्ष के बयान के बाद जम्मू-कश्मीर की सरकार ने भी लोगों को सलाह दी थी कि वो सुरक्षाबलों के अभियान में बाधा न डालें. मुठभेड़ की जगह से दूर रहें.
हमारा मानना है कि सेनाध्यक्ष के बयान के बाद से सुरक्षाकर्मियों को फायरिंग की खुली छूट मिल गई है. पिछले एक महीने से ऐसा ही होता दिख रहा है.
यूं तो तमाम टीवी चैनल कह रहे हैं कि पत्थरबाजी के पीछे पाकिस्तान है. मगर सच तो ये है कि पत्थरबाजी की वारदातें स्थानीय लोगों के गुस्से का मुजाहिरा करती हैं.
हाल के दिनों में हुई ज्यादातर मुठभेड़ों में स्थानीय आतंकी ही शामिल थे. ऐसे में स्थानीय लोग उन्हें छुड़ाने के लिए पत्थरबाजी कर रहे हैं.
आने वाले दिनों में ऐसी और भी घटनाएं होने की पूरी आशंका है. पत्थरबाजी और लोगों के मारे जाने की वारदातें बढ़ेंगी. जिस तरह से सुरक्षा बल, आम लोगों पर गोलियां चला रहे हैं, उसे देखकर साफ लग रहा है कि कश्मीर में इस बार गर्मी का मौसम और भी खूनी होने वाला है.
मंगलवार को चडूरा में हुई घटना से जाहिर है कि स्थानीय आतंकवादी अक्सर सुरक्षा बलों के निशाने पर आ रहे हैं. और ऐसे लोगों की मदद के लिए बार-बार स्थानीय लोगों की भीड़ भी जमा हो रही है.
ऐसे में तय है कि और बेगुनाहों की जान जाएगी. सुरक्षाबलों की प्रमुख के तौर पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सिर्फ अफसोस जताती रहेंगी, तो उससे हालात सुधरने से रहे.
महबूबा मुफ्ती को ऐसी रणनीति बनानी होगी, जिससे बेगुनाहों का खून न बहे. जिससे लोग आतंकियों से हो रही मुठभेड़ में दखल न दें.
ये पहला मौका नहीं है जब कश्मीर के युवाओं का खून बह रहा है. ये आखिरी मौका भी नहीं. आधे-अधूरे सच की बुनियाद पर भारत सरकार इस कत्लो-गारद को खामोश बैठकर देखती नहीं रह सकती. केंद्र को जल्द ही कुछ करना चाहिए, ताकि घाटी में हालात बेहतर हों. बेगुनाहों का खून न बहे.
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