बीजेपी सांसद उदित राज इन दिनों दलित मसलों पर न सिर्फ सरकार को घेर रहे हैं बल्कि पार्टी लाइन से अलग होकर भी अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. मंगलवार को लोकसभा में शून्यकाल के दौरान उन्होंने भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर को रिहा करने की मांग उठाई. वो जस्टिस एके गोयल की एनजीटी चेयरमैन के तौर पर नियुक्ति की आलोचना कर रहे हैं. आईआरएस अधिकारी रहे उदित राज ने कभी राजनीति में मुकाम पाने के लिए इंडियन जस्टिस पार्टी की स्थापना की थी, लेकिन फरवरी 2014 में उन्होंने उसका बीजेपी में विलय कर दिया.
टिकट मिली और वे उत्तर पश्चिम दिल्ली से सांसद चुन लिए गए. उनका कहना है कि मैं अंबेडकरवादी हूं. मैं बुद्धिस्ट हूं. मैं बीजेपी में हूं आरएसएस में नहीं. उदित राज के साथ आरक्षण, दलित आंदोलन सहित कई मसलों को लेकर बातचीत हुई. पेश है उनसे हुई लंबी बातचीत के खास अंश:
सवाल: आपने संसद में जामिया के अंदर रिजर्वेशन पर सवाल किया था, क्या आप एएमयू में भी एससी/एसटी रिजर्वेशन दिए जाने की मांग का समर्थन करते हैं?
उदित राज: जामिया के लिए पूछा तो वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के लिए भी था. इन दोनों में दलितों के लिए आरक्षण नहीं है जबकि इन्हें चलाने के लिए पैसा सरकार से मिलता है. सरकार से पैसे लेंगे और कानून नहीं मानेंगे, ये कैसे हो सकता है? ये कहते हैं कि इससे माइनॉरिटी करेक्टर को खतरा है. मैं पूछता हूं कि वेलफेयर एक्टिविटी करने से किसी संस्था को कैसे खतरा हो सकता है?
सेंट स्टीफन में आरक्षण है. वो सौ साल से नंबर वन कॉलेज है. एशिया का हारवर्ड कहा जा सकता है. वहां आरक्षण हो सकता है तो जामिया और एएमयू में क्यों नहीं? दूसरी बात दोनों में 50 फीसदी से अधिक छात्र मुस्लिम नहीं हैं. उनको अगर आरक्षण दे दिया जाए तो क्या हानि है. इन संस्थाओं को बड़ा दिल दिखाना चाहिए. जामिया, एएमयू जकात के कांसेप्ट को भी नहीं फॉलो कर रहे हैं.
सवाल: मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन हो रहा है, कभी जाट आंदोलन कर रहे हैं, पटेल आंदोलनरत हैं, आखिर 50 फीसदी के अंदर इन्हें कैसे प्रतिनिधित्व मिलेगा?
उदित राज: आरक्षण गरीबी उन्मूलन का नहीं बल्कि प्रतिनिधत्व का हथियार है. आर्थिक और समाजिक आधार पर आरक्षण में अंतर है. इस समस्या का समाधान यही है कि जिसकी जितनी जनसंख्या है उसी अनुपात में उस जाति को आरक्षण दे दिया जाए. लेकिन क्या मराठा, जाट, पटेल, ब्राह्मण और क्षत्रीय इसके लिए तैयार होंगे? सुप्रीम कोर्ट क्यों तय कर रहा है आरक्षण की सीमा. ये काम संसद का है. संसद को ही करने देना चाहिए क्योंकि संसद सवा सौ करोड़ लोगों द्वारा चुनी जाती है.
सवाल: आपने दिल्ली में सेव रिजर्वेशन नाम से एक बड़ी रैली की थी. आपकी अपनी ही सरकार है फिर आपको क्यों रिजर्वेशन के मुद्दे को लेकर रैली करनी पड़ी?
उदित राज: सरकार हमारी है लेकिन मैं सरकार नहीं, मैं सरकार का एक हिस्सा हूं. उनकी (बीजेपी) भी तमाम संस्थाएं हैं संघ, स्वदेशी जागरण मंच भी तो मांग करते हैं, ये सवाल उनसे भी हो सकता है. उनकी सरकार है तो वो क्यों उठाते हैं आवाज? अनुसूचित जाति जनजाति परिसंघ गैर राजनीतिक संगठन है. राजनीति से इसका कोई लेना देना नहीं है. वो अपनी मांग आज से नहीं उठा रहा है.
सवाल: बसपा प्रमुख मायावती को विपक्ष का पीएम कैंडिडेट बनाने की चर्चा हो रही है. क्या उन्हें आपका समर्थन मिलेगा?
उदित राज: मायावती जी पढ़े लिखे दलितों से नफरत करती हैं. वो प्रधानमंत्री बन भी जाएंगी तो फायदा कहां हो पाएगा. चीफ मिनिस्टर चार बनीं कौन सा फायदा हुआ? वो ब्यूरोक्रेट्स से घिर जाती हैं. अपना भाषण अभी पढ़कर बोलती हैं. लीडर के अंदर अगर अंडरस्टैंडिंग नहीं है तो चाहे वो पीएम ही क्यों न बन जाए कुछ नहीं कर सकता. मैं एक निष्पक्ष उदाहरण देता हूं. दिल्ली सरकार ने एजुकेशन सिस्टम में रिफॉर्म किया. क्या मायावती ऐसा उत्तर प्रदेश में नहीं कर सकती थीं? मैं विरोध नहीं कर रहा मायावती का, लेकिन फायदा क्या है?
सवाल: दलितों के यहां जाकर नेताओं के खाना खाने के कार्यक्रम की आपने आलोचना की, क्यों?
उदित राज: अब लोग नहीं जा रहे दलितों के यहां खाना खाने. भविष्य में जाएंगे भी नहीं. लोकल लोग तो खुश हो जाते हैं इससे. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसकी नकारात्मक प्रतिक्रिया होती है. दलित लोग कहते हैं कि अच्छा हमारी औकात याद दिलाने आए थे. ये हमारे यहां खाना खाकर अनुग्रहित कर रहे हैं. राहुल गांधी ने भी इसका प्रयोग किया था वो असफल था. कोई भी ये प्रयोग करे उस पर वोट मिलने वाला नहीं है.
सवाल: आप बीजेपी के साथ राजनीतिक तौर पर हैं या फिर सैद्दांतिक तौर पर भी. क्या मतभेद हैं?
उदित राज: मैं अंबेडकरवादी हूं. मैं बुद्धिस्ट हूं. मैं बीजेपी में हूं पर आरएसएस में नहीं हूं. बीजेपी की विचारधारा तो मान ही रहा हूं. वहां इसाई भी हैं, मुसलमान भी हैं. व्यक्तिगत जिंदगी में धार्मिक और सामाजिक स्तर पर मेरा अपना स्टैंड है. मैं बीजेपी के साथ राजनीतिक रूप से हूं सैद्धांतिक रूप से नहीं. कहा जाता है कि जब तक आरएसएस की फिलॉसफी न मानें तब तक बीजेपी के मेंबर नहीं हो सकते तो ऐसा नहीं है.
सवाल: क्या दलितों के मुद्दे पर बीजेपी में आपकी नहीं सुनी जाती?
उदित राज: ये बात तो सही है, कोई गलत नहीं है. मैं अपनी बात उठाता चला आ रहा हूं. कई बातें हैं जैसे आरक्षण और पदोन्नति में आरक्षण. मेरा कहने का मतलब ये नहीं है कि सुनी ही नहीं जाती. जो मांग उठाता हूं उस पर विचार और अमल नहीं किया जाता. अगर मेरी मांगों पर विचार किया गया होता तो 2 अप्रैल का आंदोलन न हुआ होता. अब भी दलितों में गुस्सा है. वो लोग 9 अगस्त को फिर भारत बंद करने जा रहे हैं. यूनिवर्सिटी में टीचरों की भर्ती और एससी, एसटी एक्ट दोनों को कमजोर करने वाला फैसला देने वाले एके गोयल को एनजीटी का चेरयमैन बना दिया गया. हमसे पूछा नहीं गया. दलितों में इसका विरोध है.
सवाल: इतने मतभेद हैं तो क्या पार्टी छोड़ने वाले हैं आप?
उदित राज: ऐसा नहीं है. किसी भी पार्टी में किसी भी सदस्य और मंत्री की सारी बात थोड़े ही मान ली जाती है. कोई किसानों की बात रखता है, कोई मजदूरों की बात रखता है...कोई बिजनेस की...सब बातें नहीं मानी जाती हैं. इसका मतलब पार्टी छोड़ना नहीं है.
सवाल: बीजेपी सरकार में तो दलित समाज से कई मंत्री हैं, फिर असंतोष कैसा?
उदित राज: जो मंत्री हैं वो समाज को कनेक्ट करें, तो सरकार का काम पहुंचेगा लोगों तक. ऐसा होगा तो विरोध नहीं पैदा होगा. जो मिनिस्टर हैं वो देखें. मैं तो नहीं हूं. मैं होता तो समाज को जोड़ देता.
सवाल: आपने नागपुर में कहा था कि मैं दलितों की आवाज उठाता हूं इसलिए मोदी सरकार में मुझे मंत्री नहीं बनाया गया, क्या ये बात सही है?
उदित राज: मुझसे ज्यादा पढ़ा-लिखा कौन है? क्या कमी है मेरे अंदर? दलितों की आवाज उठाना भी इसका एक कारण हो सकता है. मुझे दलितों ने नेता बनाया है, पार्टी ने नहीं. लोगों को पार्टी ने नेता बनाया है. मेरी सेवा ली जाती तो दलितों की बेहतर सेवा होती.
सवाल: भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर को बीजेपी सरकार ने ही जेल में डाल रखा है और आप संसद में मामला उठा रहे हैं, वजह क्या है, क्या आप पार्टी लाइन के खिलाफ नहीं जा रहे हैं?
उदित राज: चंद्रशेखर को रिहा करना चाहिए. उसने कौन सा ऐसा अपराध किया है जो उसे जेल में सड़ाया जा रहा है. रोहतक में तो चुन-चुन कर दुकानें जलाईं गईं. आधा रोहतक खाक हो गया था. उन पर तो ऐसा कानून नहीं लागू किया गया. जहां तक पार्टी लाइन से हटने की बात है तो स्वदेशी जागरण मंच भी आंदोलन करता है, विश्व हिंदू परिषद भी करता है, उनकी सरकार भी तो है. इसी तरह हमारी सरकार भी है. हम आवाज उठाते रहेंगे. हम उठाते हैं तो सवाल क्यों उठते हैं. हमारा काम संसद में मांग उठाना है हमने उठाया. चंद्रशेखर को जेल से रिहा करना चाहिए.
सवाल: लिंचिंग की घटनाओं पर आप क्या कहेंगे? इसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं?
उदित राज: लचर कानून व्यवस्था इसके लिए जिम्मेदार है. 2003 में हरियाणा के झज्जर में पांच दलित मार दिए गए थे. यही अफवाह उड़ाई गई थी कि उन्होंने गौहत्या की थी, जबकि उन्होंने ऐसा किया नहीं था. मानव मानव है पशु पशु है. कौन सा ऐसा समाज होगा जो मानव से ज्यादा पशु को महत्व देता है. मानव से कीमती भला कौन हो सकता है? गऊ माता जी के जो बड़े खैरख्वाह हैं वो गऊ माता का दाह संस्कार क्यों नहीं करते? दाह संस्कार के लिए दलितों को छोड़ देते हैं. कैसी गऊ माता हैं, कैसी भक्ति है और ये कैसा स्नेह है?
(अफसर अहमद की न्यूज 18 के लिए रिपोर्ट)
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