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जानिए बीकानेर की उस जमीन की ABCD जिसे लेकर वाड्रा से चल रही है पूछताछ

रॉबर्ट वाड्रा बीकानेर के गजनेर और गोयलरी गांव में अपनी फर्म स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी के जरिए जमीन पर गैरकानूनी कब्जे और बिक्री पर ईडी के सवालों का सामना कर रहे हैं

Updated On: Feb 12, 2019 02:55 PM IST

Yatish Yadav

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जानिए बीकानेर की उस जमीन की ABCD जिसे लेकर वाड्रा से चल रही है पूछताछ

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा कथित बीकानेर भूमि घोटाले के सिलसिले में मंगलवार सुबह 10:30 बजे जयपुर में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अफसरों के सामने पेश हुए. इससे पहले आर्म्स डीलर संजय भंडारी से रिश्ते और बेनामी कंपनियों के माध्यम से फ्लैटों की खरीद के मामले में ईडी के अफसर देश की राजधानी में तीन दिन वाड्रा से पूछताछ कर चुके हैं.

उनके वकीलों ने भंडारी के साथ किसी तरह के गैरकानूनी संबंध और किसी विदेशी संपत्ति के गैरकानूनी मालिकाना हक से साफ इनकार कर दिया है. अब, वह बीकानेर के गजनेर और गोयलरी में अपनी फर्म स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी के जरिये जमीन पर कब्जे और बिक्री के सवालों का सामना करेंगे. फ़र्स्टपोस्ट ने इस मामले में ईडी की ECIR (इनफोर्समेंट केस इनवेस्टिगेशन रिपोर्ट) को देखा है, जिसके आधार पर कोलायत पुलिस ने अगस्त 2014 को 18 एफआईआर दर्ज की थी.

ईडी का कहना है, 'इन सभी एफआईआर में शिकायतकर्ता ने बताया है कि सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों ने भू-माफिया से मिलकर, सरकारी जमीन हड़पने के मकसद से, जाली और नकली दस्तावेज तैयार किए और इन दस्तावेजों के आधार पर उन्होंने बड़ी मात्रा में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया और इन सरकारी जमीनों की खरीद-बिक्री कर सरकार को राजस्व का भारी नुकसान पहुंचाया गया है.'

बीकानेर की जमीन का क्या है किस्सा

केंद्र सरकार ने महाजन फील्ड फायरिंग रेंज की स्थापना के मकसद से बीकानेर जिले के 34 गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया था. सरकार ने इन गांवों के विस्थापितों को मुआवजा दिया था और साथ ही राज्य सरकार ने विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए बीकानेर जिले में उनकी जमीन के बराबर जमीन बहुत कीमत पर उपलब्ध कराने का भी प्रस्ताव दिया था.

New Delhi: Businessman Robert Vadra leaves after appearing before Enforcement Directorate (ED) in a money laundering case, in New Delhi, Wednesday, Feb 6, 2019. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI2_6_2019_000209B)

इसके लिए उन्हें कॉलोनाइजेशन विभाग के पास जमा किए जाने वाले आवेदन पत्र में अपने गांव का नाम और खसरा नंबर भरना था. इसके बाद, कॉलोनाइजेशन विभाग को इन आवेदनों की जांच करना था और चालान के माध्यम से जमीन की कीमत जमा करने के बाद कॉलोनाइजेशन विभाग को इन विस्थापितों को भूमि का आवंटन करना था.

प्रक्रिया के तहत आवंटन पत्र चार प्रतियों में जारी किए जाने थे, जिसमें से एक प्रति आवंटी को दी जानी थी, एक प्रति संबंधित तहसील को, एक प्रति एकाउंट्स विभाग को और एक प्रति कार्यालय रेकॉर्ड के लिए रखी जानी थी. इसके बाद, आवंटी को तहसील कार्यालय में आवंटन से संबंधित आवंटन पत्र और अन्य मूल दस्तावेजों के साथ एक आवेदन पत्र लेकर जाना जरूरी था और दस्तावेजों व उनकी सच्चाई को जांचने के बाद आवंटित भूमि को अलॉटी के पक्ष में हस्तांतरित करना था और राजस्व रिकॉर्ड में उसके नाम दर्ज किया जाना था.

ईडी का दावा

ईडी अधिकारियों का दावा है कि 1989 से अब तक महाजन फील्ड फायरिंग रेंज के विस्थापितों को आवंटित होने वाली सरकारी जमीन हड़पने के मकसद से, भू-माफिया ने पटवारी, गिरदावर और नायब तहसीलदार जैसे सरकारी कर्मचारियों के साथ मिलकर साजिश रची, जिसमें जय प्रकाश बागड़वा, किशोरी सिंह, गगन गर, पटवारी उमा चरण, महावीर, पटवारी दीपा राम, नायब तहसीलदार फकीर मोहम्मद व अन्य ने एक गठजोड़ बनाया और कथित विस्थापितों के नाम पर जाली और नकली आवंटन पत्र तैयार करने की योजना बनाई.

ईडी ईसीआईआर कहती है, 'अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने और धोखाधड़ी करने के लिए, इन व्यक्तियों ने एक साथ मिलकर काम किया और कोलायत के उमा चरण व महावीर (पटवारी) दीपाराम, राजेंद्र कुमार शांडिल्य और मदन गोपाल (गिरदावर) और फकीर मोहम्मद (नायब तहसीलदार) के साथ मिलकर बीकानेर की कोलायत तहसील के राजस्व गांवों गोयलरी, मध, इंडोका बाला और गजनेर में खाली सरकारी जमीन को चिह्नित किया और खाली सरकारी जमीन के खसरा नंबर हासिल किए.

यह जानकारी हासिल करने के बाद, इन व्यक्तियों ने एक आपराधिक साजिश के तहत ऐसी भूमि के ऐसे व्यक्तियों के नाम जाली आवंटन पत्र तैयार कर दिए, जिनकी जमीनें ना तो महाजन फील्ड फायरिंग रेंज के लिए अधिग्रहित की गईं थीं और न ही जिनके नाम विस्थापितों की सूची में थे. यहां तक कि ऐसे लोगों के नाम पर भी जाली आवंटन पत्र बना दिए गए, जिनका अस्तित्व ही नहीं था.'

ईडी अधिकारियों का आरोप है कि मामले के सभी अभियुक्तों- जय प्रकाश, रणजीत सिंह, किशोरी सिंह और गगनगर- ने जाली और नकली आवंटन पत्र तैयार किए और अपने तैयार किए इन दस्तावेजों के आधार पटवारियों, नायब तहसीलदार और गिरदावरों के साथ मिलकर राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज जमीन को हासिल किया. ईडी का दावा है कि बाद में यह जमीन स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड सहित 7 कंपनियों को जमीन बेच दी गई.

'जाली और नकली दस्तावेजों के आधार पर हासिल की गई सरकारी जमीन कई व्यक्तियों को बेची गई. अधिकांश जमीन अंततः इन कंपनियों को हस्तांतरित कर दी गई - डॉल्फिन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड, एलिगेंसी फाइनलीज लिमिटेड, ब्लूमिंगडेल रिजॉर्ट प्राइवेट लिमिटेड, लोहिया ऑर्गेनिक फॉर्म्स एंड बायो प्राइवेट लिमिटेड, सिस्टमेटिक मार्केटिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड और समीक्षा डेलवपर्स प्राइवेट लिमिटेड.

ईडी का आरोप है कि सभी आरोपियों द्वारा आपराधिक साजिश के तहत बीकानेर में गोयलरी, मध, इंडोका बाला और गजनेर के विभिन्न खसरों में लगभग 1422 बीघा जमीन के लिए जाली और मनगढ़ंत दस्तावेज तैयार किए गए थे और उन्होंने 1422 बीघा में से 1372 बीघा जमीन का निपटारा कर दिया है. यह 1422 बीघा जमीन उन्होंने खुद तैयार किए जाली और नकली आवंटन पत्रों की मदद से राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करके हड़पी थी. इस तरीके से उन्हें लगभग 3.6 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे. इन लेन-देन में, इन सभी व्यक्तियों ने इरादतन और जानबूझकर सरकार को नुकसान पहुंचाया है और गैरकानूनी तरीके से 3.6 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ कमाया है.'

वाड्रा की सफाई

वाड्रा ने दावा किया है कि उनकी फर्म इन विवादास्पद जमीनों के मामले में न तो जमीन की पहली विक्रेता थी और न ही पहली खरीदार थी. उनके वकीलों ने दावा किया है कि सभी 18 एफआईआर में न तो वाड्रा और न ही उनकी फर्म का कुछ लेना-देना है और वह केवल एक कानूनसम्मत खरीदार है और एफआईआर में उनका नाम भी नहीं है.

वाड्रा की तरफ से पटियाला हाउस कोर्ट में दाखिल जमानत याचिका में कहा गया है, 'यह कहा गया है कि अंततः पुलिस अधिकारियों ने उक्त प्राथमिकी (अगस्त 2014) में मार्च 2015 में चार्जशीट दायर की, जिसके साथ एक अनुपूरक चार्जशीट वर्ष 2017 में दायर की गई, जिसमें न तो याचिकाकर्ता (रॉबर्ट वाड्रा) और न ही उनकी फर्म अभियुक्त थी. इस तरह दाखिल की जा रही उपरोक्त चार्जशीट गैरजरूरी है क्योंकि याचिकाकर्ता की सिर्फ फर्म बाद की एक ईमानदार खरीदार थी, इसलिए वह निर्दोष है और इसलिए उसे किसी भी आपराधिक कृत्य के लिए किसी भी तरह से आरोपित नहीं किया जा सकता है.'

वाड्रा के वकीलों ने यह भी तर्क दिया है कि 2015 में ईसीआईआर दर्ज होने के बाद से, उनकी फर्म और प्रतिनिधियों ने ईडी अधिकारियों की संतुष्टि के लिए जांच में सहयोग किया है. वाड्रा के वकीलों ने दावा किया कि ईडी ने चुपके से एक और ईसीआईआर दर्ज कर दी है, जो कानूनसम्मत नहीं है और मनमाना, गैरकानूनी व दुर्भावना से ग्रस्त उत्पीड़न है और देश में आगामी चुनाव को देखते हुए बड़े पैमाने पर राजनीतिक रंजिश के कारण जनता की नजरों में याचिकाकर्ता को अपमानित करने और परेशान करने के लिए एक नापाक, गैरकानूनी कृत्य की स्पष्ट नजीर है. वाड्रा की फर्म स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड का गठन 2007 में किया गया था और बाद में 2016 में एक लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप (LLP) फर्म में बदल दिया. वाड्रा कंपनी की शुरुआत से ही निदेशक थे और कंपनी के LLP में बदल जाने के बाद पार्टनर बन गए.

गांव गजनेर में 31.61 हेक्टेयर के बारे में, वाड्रा के वकीलों ने कहा कि फरवरी 2007 में बीकानेर के जगतसिंहपुर के नाथा राम (31.61 में से 12.65 हेक्टेयर) और उसी गांव के हरि राम (31.61 में से 18.96 हेक्टेयर) को जमीन आवंटित की गई थी. 19.11.2007 को नाथा राम ने 12.65 हेक्टेयर जमीन राजिंदर कुमार को बेच दी.

वाड्रा की याचिका में कहा गया है, 'इस भूमि के लिए विधिवत रूप से म्यूटेशन नंबर 120 राजिंदर कुमार के पक्ष में दर्ज किया गया. गगन गर की जीपीए के माध्यम से हरि राम ने 18.96 हेक्टेयर जमीन, जिसमें ग्राम गजनेर की राजस्व संपदा का खसरा संख्या 711/499 शामिल था, किशोरी सिंह शेखावत को बेची थी. अपने कारोबार के सिलसिले में, फर्म (स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी) ने अपने अधिकृत पावर ऑफ अटॉर्नी धारक महेश नागर के माध्यम से बीकानेर के गजनेर में राजिंदर कुमार और किशोरी सिंह से, जिनके लिए अशोक कुमार जनरल पावर अटॉर्नी पर काम कर रहे थे, 31.61 हेक्टेयर जमीन खरीदी थी.

Robert Vadra appears before ED

गांव गोयलर में कुल मिलाकर 37.94 हेक्टेयर जमीन फरवरी 2007 में बीकानेर की तहसील कोलायत के गांव रामपुरा के नाथा राम, हरि राम, भैरा राम (16.66 हेक्टेयर) और जगतसिंहपुरा के नाथा राम हरी राम, भैरा राम, जोरा राम को (21.5 हेक्टेयर) आवंटित की गई थी. 21.3.2007 को भैरा राम ने 16.44 हेक्टेयर जमीन योगेश अग्रवाल नाम के शख्स को बेची. 16.4.2007 को योगेश अग्रवाल ने यह जमीन 8.25 लाख रुपये में संयुक्त रूप से- सतीश गोयल, बाबू राम गोयल और कैलाश अग्रवाल, घनश्याम बंसल, राजिंदर प्रसाद अग्रवाल और कैलाश अग्रवाल को बेच दी.

जमीन का 20.4.2007 को योगेश अग्रवाल के नाम पर विधिवत म्यूटेशन हुआ और उसके बाद 20.8.2007 को सतीश गोयल और अन्य के पक्ष में भूमि का म्यूटेशन किया गया. मूल आवंटियों में से एक जोरा राम के पावर ऑफ अटॉर्नी धारक रणजीत सिंह ने 11.9.2008 को गांव गोयलरी में 17.70 हेक्टेयर जमीन को 4.8 लाख रुपये में संयुक्त रूप से सतीश गोयल, बाबू राम गोयल, घनश्याम बंसल, राजिंदर प्रसाद अग्रवाल और कैलाश अग्रवाल को बेचा. इस 17.70 हेक्टेयर भूमि का म्यूटेशन सतीश गोयल और ऊपर वर्णित अन्य खरीदारों के नाम 20.9.2008 को दर्ज किया गया था.

याचिका में आगे कहा कि रणजीत सिंह ने 10.12.2008 को सतीश गोयल और कैलाश अग्रवाल को संयुक्त रूप से 3.80 हेक्टेयर की एक और जमीन बेची. इसके बाद, बीकानेर के गोयलरी में 37.94 हेक्टेयर जमीन वाड्रा की स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी द्वारा अपने अधिकृत प्रतिनिधि महेश नागर के माध्यम से सतीश गोयल से खरीदी गई थी. बाद में, स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने गजनेर और गोयलरी की जमीन को 23.1.2012 को एलेगेनी फिनलीज प्राइवेट लिमिटेड को बेच दिया. वाड्रा ने यह भी दावा किया है कि दोनों लेन-देन में उनकी फर्म चौथी (गोयलरी की जमीन) और तीसरी (गजनेर की जमीन) विधिसम्मत खरीदार थी व उनकी उचित कीमत अदा की गई थी और उनकी फर्म ने मौजूदा मालिकाना के आधार पर जमीनें खरीदीं और फिर नए खरीदार को बेच दिया.

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