मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार पुलिस को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने राज्य में 14 शेल्टर होम्स में यौन उत्पीड़न के मामलों में हलके आरोपों का चार्ज लगाया है. इसके लिए कोर्ट ने बिहार पुलिस को आड़े हाथों लिया. साथ ही इस बात के संकेत भी दिए कि मामले को सीबीआई को सौंपा जा सकता है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक कोर्ट ने नीतीश सरकार को भी फटकार लगाई और कहा कि इस मामले में सरकार का दृष्टिकोण 'लापरवाही भरा, बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद' है. जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने पूछा, 'आप (बिहार सरकार) क्या कर रहे हैं? यह शर्मनाक है. अगर किसी बच्चे का यौन शोषण होता है तो आप कहते हैं कि कुछ भी नहीं हुआ है? भला आप ऐसा कैसे कर सकते हैं? यह अमानवीय है. हमें बताया गया था कि मामले को बड़ी गंभीरता से देखा जाएगा, यह गंभीरता है? हर बार जब मैं इस फाइल को पढ़ता हूं तो दुखी हो जाता हूं. यह दुखद है.'
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को एफआईआर में धारा 377 (बलात्कार) आईपीसी और पीओसीएसओ अधिनियम के तहत आरोप जोड़ने के लिए 24 घंटे का समय दिया है.
पत्रकार निवेदिता झा ने याचिका दायर की थी:
वकील फौजिया शकिल के माध्यम से पत्रकार निवेदिता झा ने याचिका दायर की थी. इसमें उन्होंने टीआईएसएस रिपोर्ट में उल्लिखित बिहार के 14 (अन्य) शेल्टर होम्स के मामलों में एफआईआर को दर्ज करने और स्वतंत्र जांच या फिर अदालत की निगरानी में जांच की मांग थी.
बिहार सरकार को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस) ने जो रिपोर्ट सौंपी थी. उसमें मुजफ्फरपुर शेल्टर होम सहित राज्य के 15 शेल्टर होम्स में मानवाधिकारों के हनन की बात कही थी. इसकी जांच अब सीबीआई द्वारा की जाएगी.
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