सिनेमा, संगीत और कला के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए मशहूर डॉक्टर भूपेन हज़ारिका को भारत रत्न दिया जाएगा. वे न केवल हिंदी बल्कि असमिया और बंगाली भाषाओं के कलाजगत के प्रमुख स्तंभ रहे. पद्म और दादा साहेब फालके सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़े गए हज़ारिका ने पहला गीत सिर्फ 10 बरस की उम्र में गाया था.
हज़ारिका के संगीत सफर की शुरूआत बचपन में ही हो चुकी थी. 12 साल की उम्र में हज़ारिका ने पहली बार प्लेबैक सिंगिंग की थी. असमिया के मशहूर गीतकार, नाटककार और फिल्मकार अगरवाला की 1939 में रिलीज़ हुई फिल्म इंद्रमालती के लिए हज़ारिका ने दो गाने गाए थे. इन दो गानों के बोल थे — 'काक्षोते कोलोसी लोई' और 'बिस्वो बिजयी नौजवान'.
पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, यह कहावत चरितार्थ करते हुए चौंकाने का सिलसिला हज़ारिका ने जारी रखा. 13 बरस की उम्र में उन्होंने पहला गीत खुद लिखा और खुद कंपोज़ किया. यह गीत था 'अग्निजुगोर फिरिंगोती मोई' जिसे खासी प्रसिद्धि और सराहना भी मिली थी.
बचपन से शुरू हुआ संगीत का उनका यह सफर आगे ही बढ़ता चला गया और उनकी ख्याति बनता गया. संगीत के प्रति हज़ारिका की लगन और नैसर्गिक प्रतिभा का एक कारनामा यह भी था कि उन्होंने कई ट्रेंड सेट किए. असमिया संगीत के वह अग्रदूत माने जाते हैं. इसके साथ ही, बंगाल के संगीत की एक धारा पर भी उनका प्रभाव है. बंगाल के ख्यात कंपोज़र और गायक कबीर सुमन का 'ज्वालामुखी गीत' शैली अस्ल में, हज़ारिका के संगीत से ही प्रभावित रही है.
अमेरिका से वापसी और अमेरिका का असर
हज़ारिका को उनके एक प्रसिद्ध गीत 'गंगा बहती हो क्यों' के ज़रिए उनके प्रशंसक हमेशा याद करते हैं. अमेरिका में शिक्षा और काम के लिए उनका प्रवास उनके संगीत के लिए भी महत्वपूर्ण बना. इस दौरान हज़ारिका की मुलाकातें नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और संगीत के जानकार पॉल रॉबेसन से हुई थीं. संगीत के विशेषज्ञ मानते हैं कि 'गंगा बहती हो क्यों' का संगीत हज़ारिका ने रॉबेसन के गीत 'ओ मैन्स रिवर' की थीम और कल्पना के आधार पर ही रचा था.
अमेरिका से लौटकर हज़ारिका 'इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन' यानी इप्टा से जुड़े थे और वहां भी उनके संगीत योगदान को याद किया जाता रहा. हालांकि इप्टा के साथ उनकी सक्रियता सिर्फ दो सालों की रही लेकिन उनकी शख़्सियत और प्रतिभा यह थी कि 1955 की कॉन्फ्रेंस के लिए उन्हें रिसेप्शन कमेटी का सचिव नियुक्त किया गया था.
हज़ारिका का सिनेमा में योगदान
संगीतकार होने के साथ ही भूपेन हज़ारिका प्रशंसित और सम्मानित फिल्मकार रहे. असमिया की कम से कम दो क्लासिक फिल्में 'शकुंतला' और 'प्रतिध्वनि' के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता रहा है और रहेगा. इसके साथ ही, रुदाली, मिल गई मंज़िल मुझे, दरमियान, दमन, साज़, गजगामिनी और क्यों जैसी फिल्में भी उनकी कला के सबूत के तौर पर उनके फैन्स को याद आती रही हैं.
बेस्ट फिल्ममेकर का प्रेसिडेंट नेशनल अवॉर्ड उन्हें तीन बार मिला. इसके साथ ही फिल्मों में संगीत के लिए उन्हें कई बार राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाज़ा गया.
कल्पना और भूपेन
भूपेन के जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रसंग मशहूर फिल्मकार कल्पना लाजमी के साथ रिश्ता भी रहा. कल्पना और हज़ारिका का प्रेम प्रसंग कई बार कई तरह से चर्चा में भी आया. इसकी चर्चा तब भी हुई थी जब कल्पना निर्देशित फिल्म चिंगारी प्रदर्शित हुई थी. अस्ल में कल्पना की फिल्म चिंगारी, हज़ारिका लिखित उपन्यास 'द प्रॉस्टिट्यूट एंड द पोस्टमैन' पर आधारित थी.
(साभार: न्यूज़18)
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