बीएचयू में छात्रा के साथ छेड़छाड़ मामले में वहां के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी सवालों के घेरे में हैं. मामले में लापरवाही बरतने के उन पर गंभीर आरोप लगे हैं. पहले से ही विवादों में घिरे वीसी गिरीश चंद्र त्रिपाठी एक नए विवाद में फंसते दिख रहे हैं. वीसी गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने यौन शोषण के दोषी टीचर को मेडिकल सुप्रीटेंडेंट के तौर पर परमानेंट नियुक्ति देने की सिफारिश की है.
गिरीश चंद्र त्रिपाठी 27 नवंबर को बीएचयू के कुलपति पद से रिटायर हो रहे हैं. यूजीसी के नियमों के अनुसार रिटायरमेंट के दो महीने पहले वो किसी तरह की नियुक्ति नहीं कर सकते. इंडियन एक्सप्रेस कि खबर के मुताबिक नियुक्ति के अधिकार की समय सीमा खत्म होने के ठीक एक दिन पहले वीसी गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कैंपस के सर सुंदरलाल मेमोरियल हॉस्पिटल के मेडिकल सुप्रीटेंडेंट ओपी उपाध्याय की नियुक्ति को नियमित करने का प्रस्ताव एक्ज़िक्यूटिव काउंसिल को भेजा है.
इस प्रस्ताव पर सबसे बड़ी आपत्ति ये है कि ओपी उपाध्याय यौन शोषण मामले में दोषी साबित हुए हैं. उन्हें फिजी की एक अदालत में चले सेक्सुअल हैरेसमेंट के एक मामले में दोषी ठहराया गया था. ओपी उपाध्याय अप्रैल 2016 से सर सुंदरलाल मेमोरियल हॉस्पिटल में एक्टिंग मेडिकल सुप्रीटेंडेंट के पद पर हैं. 2013 में फिजी की एक अदालत में उन पर 21 साल की महिला का यौन शोषण करने का मामला चला था. अदालत ने इस मामले में उन्हें दोषी करार दिया था.
ऐसे माहौल में जब बीएचयू में सेक्सुएल हैरेसेमेंट का मामला पहले से ही गरमाया है. तो ऐसे ही मामले के एक दोषी टीचर को परमानेंट करने की सिफारिश पर सवाल उठ रहे हैं.
वीसी के इस प्रस्ताव का एक्ज़िक्यूटिव काउंसिल के सदस्यों ने ही विरोध किया है. एक सदस्य का कहना है कि इस तरह के मामले में दोषी पाए गए व्यक्ति के खिलाफ जांच शुरू करवाने के बजाय विश्वविद्यालय उसे नियमित करने पर जोर दे रहा है.
अभी ये स्पष्ट नहीं है कि उपाध्याय को नियमित करने का वीसी का प्रस्ताव मान लिया गया है या नहीं. विश्वविद्यालय में नियुक्तियों के मामले में एक्ज़िक्यूटिव काउंसिल सबसे बड़ी संस्था है. ये सिलेक्शन कमेटी की सिफारिश पर आखिरी मुहर लगाती है. वाइस चांसलर इन दोनों संस्थाओं का प्रमुख होता है.
वैसे इस ताजा विवाद से अलग भी बीएचयू में नियुक्तियों के मामले लंबे समय से विवादों में रहा है. कर्मचारियों की भर्ती में अधिकारों का दुरुपयोग और जातिगत गुटबंदी के हिसाब से लोगों को नियुक्त करने के तमाम आरोप विश्वविद्यालय और वाइस चांसलर पर लगते रहे हैं. पिछले कुछ सालों में यूजीसी के नियमों की अनदेखी करते हुए प्रोफेसर्स की नियुक्ति के मामले भी अदालतों में पेंडिंग हैं.
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