भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार हुई सुधा भारद्वाज की ट्रांजिट रिमांड पर पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट की तरफ से तीन दिनों का स्टे लगाने के बावजूद फरीदाबाद के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने उन्हें पेश किया गया. हाईकोर्ट ने सुधा भारद्वाज की ट्रांजिट रिमांड पर तीन दिनों का स्टे लगा दिया था और बदरपुर स्थित उनके घर पर उन्हें हाउस अरेस्ट रखने के ऑर्डर दिए थे.
पुणे पुलिस के ज्वाइंट कमिश्नर शिवाजी बोडखे ने कहा कि जब तक हाई कोर्ट के ऑर्डर पुलिस तक नहीं पहंचते, सुधा भारद्वाज पुलिस कस्टडी में ही रहेंगी.
इससे पहले सुधा भारद्वाज की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा था, हाईकोर्ट के स्टे लगाने के बावजूद महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और उन्हें किसी अनजान जगह पर ले गई.
हाईकोर्ट का आदेश जानने के बावजूद पुलिस सुधा भारद्वाज को नहीं ले गई बदरपुर स्थित आवास
ग्रोवर ने न्यूज 18 को इंसपेक्टर शिंदे से बातचीत के कुछ स्क्रीन शॉट्स भी दिखाए.
स्क्रीन शॉट्स दिखात हुए ग्रोवर ने बताया कि उन्होंने वाट्सऐप, मैसेज और टेलिकॉन्फ्रेंस पर बातचीत के जरिए पुलिस को हाईकोर्ट के ऑर्डर के बारे में बताया लेकिन बावजूद इसके सुधा भारद्वाज को बताया गया कि उन्हें बदरपुर वाले उनके घर पर नहीं ले जाया जाएगा.
न्यूज 18 को दिखाए गए मैसेज में ग्रोवर ने पुलिस को लिखा है कि मैंने आपको बार-बार हाईकोर्ट के ऑर्डर के बारे में बताया लेकिन आपने फिर भी मुझे ये नहीं बताया कि सुधा भारद्वाज को कहां ले जाया गया. आपने मुझे बार-बार यही कहां कि वह किसी दूसरी गाड़ी में है. एक पुलिस ऑफिसर होने के नाते आपको हाईकोर्ट के आदेश मानने होंगे.
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, सुधा भारद्वाज पर धारा 153 ए (धर्म, जाति, जन्मस्थान, निवास, भाषा इत्यादि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 505 (सार्वजनिक शरारत के लिए प्रतिबद्ध वक्तव्य), 117 (दस या उससे ज्यादा लोगों को किसी आपराधिक गतिविधि के लिए उकसाना) और 120 के तहत आरोप लगाया गया है.
एडवोकेट अंकित अग्रवाल ने बताया कि महाराष्ट्र पुलिस ने सुधा भारद्वाज को कुछ ऐसे दस्तावेज भी दिए जिनके बारे में न तो उनके वकील को कोई जानकारी थी और न ही उन्हें. ये दस्तावेज मराठी भाषा में थे. अंकित अग्रवाल बताया है कि इस मामले में अगली सुनवाई 30 अगस्त को होगी.
बता दें सुधा भारद्वाज छत्तीसगढ़ में अपने काम के लिए जानी-पहचानी जाती हैं. वह 29 साल तक वहां रही हैं और दिवंगत शंकर गुहा नियोगी के छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की सदस्य के तौर पर भिलाई में खनन श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ चुकी हैं.
आईआईटी कानपुर की छात्रा होने के दौरान पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में बिताए दिनों में श्रमिकों की दयनीय स्थिति देखने के बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के साथ 1986 में काम करना शुरू किया था. नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और वकील सुधा जमीन अधिग्रहण के खिलाफ भी लड़ाई लड़ती रही हैं और वह अभी पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की छत्तीसगढ़ इकाई की महासचिव हैं.
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