महाराष्ट्र सरकार ने पिछले हफ्ते पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पांच एक्टिविस्ट्स की गिरफ्तारी को सही ठहराया है. महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि कार्यकर्ताओं को उनकी असहमति वाली राय के लिए गिरफ्तार नहीं किया गया. इस धारणा को दूर करने के लिए हमारे पास पर्याप्त सबूत हैं.
हलफनामे में कहा गया कि उन्हें (कार्यकर्ता) सिर्फ हिंसा फैलाने की साजिश रचने के आरोप में ही नहीं, बल्कि प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन के एजेंडे के तहत बड़े स्तर पर हिंसा फैलाने, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और समाज में अराजकता फैलाने की योजना बनाने को लेकर गिरफ्तार किया गया है. राज्य सरकार ने कहा कि इस बात के सबूत हैं कि पांचों एक्टिविस्ट प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन के सदस्य हैं.
The affidavit also states 'They are involved in not only planning and preparing for violence but were in the process of creating large scale violence, destruction of property resulting into chaos in the society as per the agenda prepared by the Communist Party of India [Maoist].' https://t.co/5mWqYDf3nf
— ANI (@ANI) September 5, 2018
साथ ही महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, महाराष्ट्र ने याचिका दायर करने के इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य के अधिकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि इनका हिंसा मामले से कोई संबंध नहीं है.
वहीं भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के संबंध में महाराष्ट्र पुलिस ने भी सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया. महाराष्ट्र पुलिस ने कोर्ट को बताया कि कार्यकर्ताओं को ठोस सबूतों के आधार पर गिरफ्तार किया गया जो उन्हें प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) से जोड़ते हैं. राज्य पुलिस ने आरोप लगाया कि ये कार्यकर्ता देश और सुरक्षा बलों के खिलाफ घात लगाकर हमला करने और हिंसा की योजना तैयार कर रहे थे.
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