बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को नागरिक अधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बडे की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ पुणे पुलिस की ओर से एल्गार परिषद कोरेगांव भीमा हिंसा मामले में उनकी कथित भूमिका और माओवादियों के साथ उनके कथित संबंधों के लिए उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी.
अपनी याचिका में आनंद ने सभी आरोपों से इंकार किया था और दावा किया कि उन्हें इस मामले में फंसाया गया है और उनके पास इसका पर्याप्त साक्ष्य (एविडेंस) है. उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति बी पी धर्माधिकारी एवं न्यायमूर्ति एस वी कोटवाल की खंडपीठ ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया. हालांकि, अदालत ने उन्हें गिरफ्तारी से तीन हफ्ते के लिए अंतरिम राहत प्रदान की और कहा कि इस दौरान वह उच्चतम न्यायालय से संपर्क कर सकते हैं.
इससे पहले कार्यकर्ता के वकील एवं वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई ने पीठ को बताया कि पिछले साल 30 और 31 दिसंबर को उनके मुवक्किल गोवा में थे. वह पुणे में नहीं थे, इतना ही नहीं वह कोरेगांव भीमा हिंसा स्थल के आस-पास भी मौजूद नहीं थे. देसाई ने अदालत में दलील दी कि पुणे पुलिस ने उनके खिलाफ जो प्राथमिकी दर्ज की है और एल्गार परिषद कोरेगांव भीमा मामले में उन्हें सह आरोपी बनाया गया है तो उसे रद्द कर दिया जाए.
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