नई बोतल में पुरानी शराब? मंगलवार शाम को सरकार ने अगले 5 साल में सड़कों के निर्माण पर करीब 7 लाख करोड़ रुपए खर्च करने का ऐलान किया है. लेकिन कई लोगों को हैरानी हो रही है कि क्या भारतमाला प्रोजेक्ट (जिसमें इस इनवेस्टमेंट का ज्यादातर हिस्सा जाएगा) पहले ही ऐलान किया जा चुका था और क्या सरकार केवल पुरानी स्कीम की रीपैकेजिंग कर इसे पेश कर रही है?
केंद्रीय कैबिनेट ने मंगलवार को दिन में एक व्यापक स्कीम को मंजूरी दी. इसमें फंडिंग की ठोस योजनाएं हैं. एक महत्वाकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम को एक नई शक्ल दी गई और इसमें सभी पहलुओं को एक ही छत के नीचे लाया गया है. निश्चित तौर पर भारतमाला प्रोजेक्ट की चर्चा महीनों से चल रही है, लेकिन इसकी फंडिंग और शक्ल का ऐलान केवल मंगलवार को ही हुआ. ऐसे में इसे नई बोतल में नई शराब कहना ज्यादा सही होगा.
मेगा इन्वेस्टमेंट से बनेगी बात
रोड्स सेक्टर पर मेगा इनवेस्टमेंट निश्चित तौर पर मार्केट्स और स्टेकहोल्डर्स को खुश करने वाला है और इसकी दो वजहें हैः पहला, जैसा हमने पहले कहा, यह एक ठोस योजना है जो कि एक स्ट्रक्चर्ड तरीके से फंड जुटाने को सक्षम बनाएगा. दूसरा, यह रोड्स सेक्टर में कैपिटल एक्सपेंडिचर (कैपेक्स या पूंजीगत व्यय) को रेलवे के सालाना कैपेक्स के काफी नजदीक पहुंच गया है. इससे और भी ज्यादा खुशी पैदा होनी चाहिए क्योंकि आम राय यह है कि परिवहन के दूसरे माध्यमों के मुकाबले सड़कों की उपेक्षा की जाती है.
खैर, अगर सरकार इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाना चाहती है, बॉर्डर कनेक्टिविटी को मजबूत कर रही है और पोर्ट्स और कोस्टल इलाकों में पहुंच को बेहतर बना रही है तो इसमें क्या गलत है?
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लेकिन, सड़क परिवहन और हाइवेज मिनिस्टर नितिन गडकरी की अक्सर की जाने वाली उस आलोचना का क्या जिसमें वह अपने तय किए गए टारगेट के महज आधे पर अटक गए हैं. यह टारगेट हर दिन बनाई जाने वाली सड़कों की लंबाई के आधार पर था. उन्होंने मंत्री बनते वक्त वादा किया था कि वह रोजाना करीब 40 किलोमीटर सड़कों का निर्माण करेंगे. यह टारगेट यूपीए शासन के आखिरी साल में सड़कों के महज 2 किमी बनने के मुकाबले काफी बड़ा था.
प्रतीकात्मक तस्वीर
हालांकि, इस वक्त रोजाना करीब 23 किमी सड़कें बनाई जा रही हैं और सेक्टर एनालिस्ट्स के मुताबिक, अगली गर्मियों तक यह आंकड़ा उछलकर 30 किमी रोजाना तक पहुंच जाएगा. भारतमाला प्रोजेक्ट के साथ यह आंकड़ा और सुधरेगा, लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि इसके बावजूद क्या 40 किमी रोजाना का टारगेट हासिल हो पाएगा?
क्या कहते हैं आंकडे़ं?
मंगलवार को फाइनेंस सेक्रेटरी अशोक लवासा ने ऐलान किया कि अगले 5 सालों के दौरान 83,677 किमी सड़कें बनाई जाएंगी. इस काम पर 6.92 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा. इसमें से भारतमाला प्रोजेक्ट में 5.35 लाख करोड़ रुपए का इनवेस्टमेंट होगा और इससे 14.2 करोड़ मानव दिवस नौकरियां पैदा होंगी. भारतमाला के तहत इन कैटेगरी (34,800 किमी) की सड़कों का प्रस्ताव हैः
- इकोनॉमिक कॉरिडोर्स (9,000 किमी) - इंटर कॉरिडोर और फीडर रूट (6,000 किमी) - नेशनल कॉरिडोर्स एफीशिएंसी इंप्रूवमेंट (5,000 किमी) - बॉर्डर रोड्स और इंटरनेशनल कनेक्टिविटी (2,000 किमी) - कोस्टल रोड्स और पोर्ट कनेक्टिविटी (2,000 किमी) - ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे (800 किमी) - बकाया एनएचडीपी कार्य (10,000 किमी)
भारतमाला प्रोजेक्ट के कामों को 2021-22 तक पांच सालों में पूरा करने का प्रस्ताव है. इस प्रोजेक्ट को एनएचएआई, एनएचआईडीसीएल, एमओआरटीएच और राज्य पीडब्ल्यूडी पूरा करेंगी. भारतमाला के लिए फंडिंग का इंतजाम कुछ इस तरह से किया जाएगा-
मार्केट के कर्ज के तौर पर 2.09 लाख करोड़ रुपए जुटाए जाएंगे, 1.06 लाख करोड़ रुपए का निजी निवेश पीपीपी के जरिए आएगा. 2.19 लाख करोड़ रुपए सेंट्रल रोड फंड (सीआरएफ), टीओटी मॉनेटाइजेशन प्रक्रियाओं और एनएचएआई के टोल कलेक्शन से मुहैया कराया जाएगा.
स्टेकहोल्डर्स को होगी आसानी
फीडबैक इंफ्रा के चेयरमैन विनायक चटर्जी ने कहा कि कैबिनेट के फैसले का मतलब है कि स्टेकहोल्डर्स के पास फंडिंग के पूरे जरिए होंगे और वे टुकड़ों की बजाए पूरी फंडिंग हासिल कर पाएंगे. उन्होंने कहा, 'हम एक बार फिर प्रोग्रामेटिक बनाम प्रोजेक्ट एप्रोच की ओर बढ़ रहे हैं. इससे लागू करने वाली एजेंसियों में कैपेसिटी बिल्डिंग होगी और उन्हें स्पष्ट रूप से फंडिंग मिलेगी, यह एक अच्छी चीज है.'
मंगलवार के ऐलान में भारतमाला प्रोजेक्ट के अलावा, मौजूदा स्कीमों में चल रहे 48,877 किमी के बकाया काम भी एनएचएआई/सड़क परिवहन और हाइवेज मिनिस्ट्री द्वारा समानांतर तौर पर चलते रहेंगे. इन कामों पर 1.57 लाख करोड़ रुपए खर्च होने हैं.
ब्रोकरेज हाउस जेएम फाइनेंशियल के एनालिस्ट्स ने एक नोट में कहा है कि वित्त वर्ष 2012-13 और 2013-14 में (मौजूदा सरकार के केंद्र में आने से पहले) रोड सेक्टर को बड़ी अड़चनों से गुजरना पड़ा था. उस वक्त जमीन अधिग्रहण में देरी के साथ मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरनमेंट, फॉरेस्ट एंड क्लाइमेट चेंज (एमओईएफ) से मंजूरी मिलने में दिक्कतों और इंफ्रा कंपनियों की वित्तीय मोर्चे पर मुश्किलों के चलते प्रोजेक्ट्स की रफ्तार बेहद सुस्त हो गई थी. 2012-13 में एनएचएआई के ऑर्डर्स में सालाना आधार पर 83 फीसदी की गिरावट आई.
जेएम फाइनेंशियल के एनालिस्ट्स के मुताबिक, 'हालांकि, केंद्र सरकार के उठाए गए कुछ कदमों से इन मसलों को हल करने में मदद मिली. सरकार ने एमओईएफ क्लीयरेंस नियमों को आसान किया ताकि जमीन अधिग्रहण में तेजी लाई जा सके. एग्जिट नियमों को आसान किया गया, इससे रोड कंपनियों को राहत मिली. रोड सेक्टर लेंडिंग को सिक्योर्ड लेंडिंग में डाला गया. गैर मुनाफे वाले प्रोजेक्ट्स को दोबारा खड़ा करने के लिए प्रीमियम रीशेड्यूलिंग की गई. इन कदमों से 2014-15 में एनएचएआई को 114 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 3,000 किमी के ऑर्डर देने में सफलता मिली. 2015-16 में एनएचएआई के दिए गए ऑर्डर 42 फीसदी बढ़े.'
जेएम फाइनेंशियल के एनालिस्ट्स ने कहा है कि एनएचएआई के ऑर्डर रेट को बढ़ाकर 6,000 किमी पर पहुंचाने के लिए कुछ और कदम उठाने होंगे. इन कदमों में शामिल हैः
- जमीन अधिग्रहण को और आसान बनाया जाए क्योंकि बीओटी/एचएएम के लिए न्यूनतम 80 फीसदी और ईपीसी के लिए 90 फीसदी जमीन प्रोजेक्ट अवार्ड की पूर्व शर्त है.
- गैरभरोसेमंद कंपनियों को बाहर निकालने के लिए सख्त क्वॉलिफिकेशन नॉर्म्स.
- मुश्किल में फंसे बीओटी प्रोजेक्ट्स को अलग किया जाए ताकि बैंकों के पास नए प्रोजेक्ट्स को एचएएम के तहत फंडिंग देने की गुंजाइश बन सके.
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रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने एक नोट में कहा है कि अगले 5 साल में रोड्स सेक्टर में ओवरऑल इनवेस्टमेंट 2.8 गुना बढ़ सकता है. नेशनल हाइवेज में पब्लिक इनवेस्टमेंट की 57 फीसदी हिस्सेदारी होने से एनएचएआई की फंडिंग की जरूरतें बढ़ना तय है. हालांकि, सेस एनएचएआई का फंडिंग का सबसे बड़ा जरिया है, लेकिन इस मॉडल में बदलाव आ रहा है. एनएचएआई ज्यादा बाहरी उधारी के जरिए प्रोजेक्ट्स को लागू करने को सपोर्ट दे रहा है.
क्रिसिल के एनालिस्ट्स ने यह भी कहा है कि अगले पांच सालों के दौरान एनएचएआई की सेस के जरिए फंडिंग 18 फीसदी के साथ कम रहेगी जो कि इससे पिछली इसी अवधि में 35 फीसदी थी. इस माहौल में एनएचएआई की बाहरी जरियों से कर्ज जुटाने की काबिलियत पर गौर करना पड़ेगा. इनका कहना है कि एनएचएआई का प्रोजेक्ट लागू करना 2017-18 में 3,010 किमी पर पहुंच सकता है और यह आंकड़ा अगले फिस्कल में 3,500 किमी पर पहुंच सकता है. 2016-17 में यह आंकड़ा 2,625 किमी था.
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