एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूरे देश में दलितों ने सोमवार को भारत बंद बुलाया था. इस बंद का असर 12 राज्यों पर देखा गया. यह बंद काफी हिंसक हो गया और इसमें कुल 14 लोगों की जान चली गई. बंद का सबसे ज्यादा प्रभाव मध्य प्रदेश में देखने को मिला. इसके अलावा राजस्थान, पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश में भी हिंसक झड़पे देखने को मिली. इस बंद को लेकर जम कर राजनीति भी हुई. एक अनुमान के मुताबिक, इस बंद से लगभग 20 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है.
भारत बंद के दौरान हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ अपने चरम पर रही. हिंसा के कारण अकेले मध्य प्रदेश में 7 लोगों की जान चली गई. ग्वालियर और भिंड में दो-दो एवं मुरैना और डबरा में एक-एक व्यक्ति की गोली लगने से मौत हो गई. राजस्थान के अलवर, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, मेरठ और फिरोजाबाद में एक-एक व्यक्तियों की मौत की खबर है.
बिहार में भारत बंद के दौरान हाजीपुर में प्रदर्शनकारियों ने एंबुलेंस का रास्ता रोक दिया जिसमें एक मरीज की मौत हो गई. ऐसी ही घटना उत्तर प्रदेश के बिजनौर में भी हुई.
पहले से तय इस बंद के दौरान सुरक्षा इंतजामों पर भी सवाल उठे हैं. सरकार ने राज्यों को अलर्ट रहने को कहा था. उसके बाद भी हिंसक भीड़ पर काबू नहीं पाया जा सका. बढ़ती हिंसा दो देख कर कई इलाकों में इंटरनेट सेवा को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था.
इस बंद का असर यातायात पर सबसे ज्यादा पड़ा. मध्य प्रदेश और राजस्थान के कई जिलों में परिवहन पूरी तरह से ठप रहा. लगभग 100 ट्रेनों का परिचालन प्रभावित हुआ. प्रदर्शनकारियों ने बड़ी संख्या में वाहनों को आग के हवाले कर दिया.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिसको लेकर हुआ भारत बंद
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम- 1989 के दुरूपयोग को रोकने को लेकर कई बदलाव किए थे. ये बदलाव तुरंत प्रभाव से लागू भी हो गए.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इस केस के तहत दर्ज मामलों में सरकारी कर्मचारियों की तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी. गिरफ्तारी सिर्फ संबंधित अथॉरिटी के इजाजत से ही होगी. इसके अलावा आम लोगों की गिरफ्तारी को लेकर कहा गया था कि सिर्फ एसएसपी की इजाजत से ही यह संभव होगा.
इसी बदलाव को लेकर दलित संगठनों ने सोमवार को भारत बंद बुलाया था. उनकी मांग है कि इन बदलावों को खत्म कर दिया जाए और जो नियम पहले थे उन्हें ही लागू किया जाए.
सरकार ने इस मामले को लेकर सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार चायिका दाखिल की थी. कोर्ट ने इस याचिका की तुरंत सुनवाई से साफ मना कर दिया.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2016 में देश में इस केस के तहत जातिसूचक गालि-गलौच की 11060 शिकायतों दर्ज हुई थीं. जब जांच हुआ तो इनमें से 935 झूठी पाई गई.
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