20 जनवरी की शाम बवाना के एक अवैध कारखाने में 17 मजदूर जलकर खाक हो गए. किसी हादसे के बाद सियासी दलों का झुंड जिस तरह मौके पर पहुंचता है, वैसा ही नजारा बवाना में भी दिखा. हादसे के कुछ ही घंटे बाद दिल्ली के एलजी अनिल बैजल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और नॉर्थ दिल्ली की मेयर प्रीति अग्रवाल अवैध कारखाने के बाहर खड़े पाए गए.
यहां पहुंचने पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वैसे तो इस नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती लेकिन फिर भी दिल्ली सरकार मरने वालों के परिजनों को 5 लाख और घायलों को 1 लाख रुपए देगी. अरविंद केजरीवाल का यह बयान गुस्से से भर देने वाला है. जब उन्हें पता है कि किसी जान की कीमत मुआवजे से अदा नहीं हो सकती तो फिर ऐसी नौबत उन्होंने क्यों आने दी?
क्या दिल्ली में अवैध कारखाने सरकारी अफसरों की मिलीभगत और रिश्वत के बिना चल सकते हैं? मान लिया जाए कि पटाखों का अवैध कारखाना उत्तरी दिल्ली नगर निगम की शह पर चल रहा था तो दिल्ली सरकार के जिम्मेदार विभाग कहां थे?
दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रीयल एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन के चेयरमैन दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन हैं. दिल्ली सरकार का श्रम विभाग क्या कर रहा था? अवैध कारखाने में बिजली की सप्लाई कैसे हो रही थी?
अगर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, मंत्री गोपाल राय, सत्येंद्र जैन और विधायक सौरभ भारद्वाज इन सवालों का जवाब देने की बजाय दोष सिविक बॉडी पर मढ़ना चाहते हैं तो यह दुखद है. यही उसी सड़ी-गली राजनीति को दुहराने जैसा है जिसे भला-बुरा कहकर केजरीवाल ने दिल्लीवालों और देशवासियों को बड़े-बड़े सपनों में बांध दिया था. केजरीवाल से ये सवाल इसलिए करने पड़ रहे हैं क्योंकि उन्होंने अन्य दलों और उनके मातहत काम करने वाली एजेंसियों को भ्रष्ट करार देते हुए खुद को पाक-साफ बताया था. लिहाजा, सवाल तो उनसे ही बनता है.
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बीते साल अप्रैल में दरियागंज के एक नागरिक को अपने मुहल्ले में चल रही अवैध फैक्ट्री की शिकायत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से करनी पड़ी. तब के अखबार में छपी खबरों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता की शिकायत पर दिल्ली सरकार के लोक शिकायत आयोग, दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और नॉर्थ एमसीडी के अफसर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे थे. इसके बाद एनजीटी ने दिल्ली सरकार के कई विभागों को नोटिस जारी करते हुए रिहायशी इलाकों में चल रहे अवैध कारखानों को बंद करने का आदेश दिया.
मगर एनजीटी के इस आदेश का हुआ क्या? हो सकता है कि एनजीटी के आदेश पर फौरी कार्रवाई करते हुए दिल्ली सरकार के अफसरों ने दरियागंज के याचिकाकर्ता की शिकायत निपटा दी हो लेकिन अवैध कारख़ानों के ख़िलाफ कोई अभियान नहीं चलाया. क्या अवैध कारखाना चलानेवालों ने रिश्वत देकर अफसरों का मुंह बंद कर दिया था?
कुछ महीने पहले नवंबर में जब दिल्ली की हवा में जहर का स्तर बढ़ने पर हाहाकार मचा हुआ था. तब नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के कुछ बाशिंदों ने डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन से गुहार लगाई कि उनकी गलियां और मुहल्ले हमेशा ‘डस्ट’ से घिरे होते हैं. फिर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने जब इसकी जांच की तो पचा चला कि गलियों और मुहल्लों में 50 से ज्यादा अवैध कारखाने चल रहे थे. इन कारखानों में छोटे-छोटे बच्चे काम करते हुए पाए गए. इन कारखानों ने निकलने वाले नैनोपार्टिकिल्स हवा को और जहरीली बना रहे थे. यानी अदालत के आदेश के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात.
अवैध कारखानों में धमाके कांग्रेस की सरकार में भी हुआ करते थे, सिविक बॉडी चलाने वाले लाशों पर राजनीति तब भी किया करते थे. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने इन्हीं मुसीबतों से मुक्ति दिलाने के नाम पर बड़े जोर-शोर से आम आदमी पार्टी का गठन किया था और साफ सुथरी राजनीति का ढिंढोरा पीट दिया था. नतीजा आज सभी के सामने है.
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खैर, अरविंद केजरीवाल को मरने वालों की लिस्ट देखनी चाहिए. 17 लाशों में 10 औरतों की हैं. एक महिला के पेट में पांच महीने का गर्भ था. कितने बच्चे अनाथ हो गए जिनके मां या बाप की छाया बचाई जा सकती थी. क्या होगा इनका भविष्य? क्या इनके बच्चे भी बड़े होकर किसी अवैध कारखाने में किसी हादसे का शिकार हो जाएंगे? अरविंद केजरीवाल की राजनीति का तो कम से कम यही संदेश है.
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