अयोध्या के राम मंदिर मामले में मध्यस्थता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज यानी 6 मार्च को अहम सुनवाई चल रही है. कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. इसके साथ ही कोर्ट की 5 सदस्यीय बेंच ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद मध्यस्थता के लिए नाम सुझाने को कहा है.
Ayodhya Ram Janmabhoomi-Babri Masjid land dispute case: CJI Ranjan Gogoi says, "Parties to suggest name for mediator or panel for mediators. We intend to pass the order soon." https://t.co/RwLu1ndGMU
— ANI (@ANI) March 6, 2019
सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबडे ने कहा है कि इस मामले में मध्यस्थता के लिए एक पैनल का गठन होना चाहिए. हिंदू महासभा मध्यस्थता के खिलाफ है. वहीं निर्मोही अखाड़ा और मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए राजी है. मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ही तय करे कि बातचीत कैसे हो?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये भावनाओं और विश्वास से जुड़ा मसला है. मामले पर सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष ने कहा है कि धार्मिक भावना पर किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता. हमारी भी भावनाएं हैं. इस मामले पर जस्टिस बोबडे ने मध्यस्थता के सवाल पर पैनल गठित करने को कहा है. जस्टिस बोबडे ने कहा कि इसका असर जनता पर भी पड़ेगा और सियासत पर भी.
मध्यस्थता हुई तो क्या होगा? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका मानना है कि अगर मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू होती है तो इसके घटनाक्रमों पर मीडिया रिपोर्टिंग पूरी तरह से बैन होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि यह कोई गैग ऑर्डर (न बोलने देने का आदेश) नहीं है बल्कि सुझाव है कि रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए.
अयोध्या मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबड़े ने कहा, 'बाबर था या नहीं, वो राजा था या नहीं, वहां मंदिर था या मस्जिद, ये सब इतिहास की बातें हैं. कोई भी उस जगह बने और बिगड़े निर्माण या मंदिर-मस्जिद और इतिहास को पलट नहीं सकता. जो पहले हुआ, उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं. अब विवाद क्या है, हम उस पर बात कर रहे हैं. इसलिए कोर्ट चाहता है कि आपसी बातचीत से इसका हल निकले.'
इससे पहले 26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह अगली सुनवाई में यह फैसला करेंगे कि इस मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा जाए या नहीं. 6 मार्च को अगला आदेश देने की बात की गई थी.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने विभिन्न पक्षों से मध्यस्थता के जरिए इस दशकों पुराने विवाद का सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान किए जाने की संभावना तलाशने को कहा था.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान सुझाव दिया था कि अगर इस विवाद का आपसी सहमति के आधार पर समाधान खोजने की एक प्रतिशत भी संभावना हो तो संबंधित पक्षकारों को मध्यस्थता का रास्ता अपनाना चाहिए.
इस विवाद का मध्यस्थता के जरिए समाधान खोजने का सुझाव पीठ के सदस्य जस्टिस एस ए बोबडे ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई के दौरान दिया था.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कुल 14 अपील दायर की गई हैं. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, राम लला और निर्मोही अखाड़े के बीच बांटने का आदेश दिया था.
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