बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि जमीन विवाद से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट आज अहम फैसला सुना सकता है. सीधे तौर पर यह मामला जमीन से जुड़ा नहीं है लेकिन इस दिशा में यह अहम फैसला साबित हो सकता है.
किस मामले पर फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय बेंच आज इस मामले पर फैसला सुनाने वाले हैं कि ‘मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं और क्या यह मामला संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाना चाहिए.' इस बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल शामिल हैं. आज के फैसले के ऑथर जस्टिस अशोक भूषण हैं.
क्या है मामला?
1994 में इस्माइल फारुकी की याचिका में एक फैसला आया था. इस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि मुसलमानों के नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद की जरूरत नहीं हैं. इस फैसले के खिलाफ एक याचिकाकर्ता एम सिद्दिकी हैं. सिद्दिकी की याचिका की सुनवाई हो चुकी है. कोर्ट ने 20 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
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Sep 27, 2018
केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा कि यह धार्मिक विवाद का मामला नहीं है. अयोध्या हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान है क्योंकि यह राम जनमभूमि है लेकिन मुसलमानों के लिए यह धार्मिक स्थान नहीं है, उनके लिए मक्का है. उन्होंने कहा कि यह कोई मुद्दा नहीं था इसे बनाया गया था और अंत में यह भूमि विवाद में बदल गया.
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी बात रखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह देश के लाभ के लिए है कि श्री रामचंद्र भुमी से जुड़े विवाद को जल्द से जल्द हल किया जाता है. इस देश के बहुसंख्यक लोग इसका समाधान चाहते हैं. हम अपील करते हैं कि इस मामले का जल्द से जल्द हल किया जाए.
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बोलते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि अगर इस मुद्दे को संवैधानिक खंडपीठ को भेजा जाता तो बेहतर होता. साथ ही, मुझे एक आशंका है कि इस देश में धर्मनिरपेक्षता के दुश्मन इस फैसले का उपयोग अपने विचारधारात्मक उद्देश्यों को समझने के लिए करेंगे.
विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि मैं संतुष्ट हूं कि एक बाधा को पार कर लिया गया है. राम जन्मभूमि की अपील की सुनवाई के लिए रास्ता साफ हो गया है.
बहुमत के निर्णय से बहुमत के लोग खुश होंगे, माइनोरिटी के निर्णय से अल्पसंख्यक प्रसन्न होगा. लेकिन जिस समस्या को लेकर हमने शुरुआत की है, उसका हल नहीं किया गया है. बात अंकगणित की नहीं है लेकिन इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट को एक आवाज में बोलना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि इस्माइल फारूकी केस से अयोध्या जमीन विवाद का मामला प्रभावित नहीं होगा. ये केस बिल्कुल अलग है. अब इसपर फैसला होने से अयोध्या केस में सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट के फैसले के बाद अब 29 अक्टूबर 2018 से अयोध्या टाइटल सूट पर सुनवाई शुरू होगी.
दोनों जजों के फैसले से जस्टिस नजीर ने असहमति जताई. उन्होंने कहा कि वह साथी जजों की बात से सहमत नहीं है. यानी इस मामले पर फैसला 2-1 के हिसाब से आया है. जस्टिस नजीर ने कहा कि जो 2010 में इलाहाबाद कोर्ट का फैसला आया था, वह 1994 फैसले के प्रभाव में ही आया था. इसका मतलब इस मामले को बड़ी पीठ में ही जाना चाहिए था.
जस्टिस अशोक भूषण ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि हर फैसला अलग हालात में होता है. पिछले फैसले के संदर्भ को समझना जरूरी है.' जस्टिस भूषण ने कहा कि पिछले फैसले में मस्जिद में नमाज अदा करना इस्लाम का अंतरिम हिस्सा नहीं है कहा गया था, लेकिन इससे एक अगला वाक्य भी जुड़ा है.
जस्टिस भूषण ने अपना और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की तरफ से कहा कि इस मामले को बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत नहीं है. जो 1994 का फैसला था हमें उसे समझने की जरूरत है. जो पिछला फैसला था, वह सिर्फ जमीन अधिग्रहण के हिसाब से दिया गया था.
फैसला पढ़ते हुए जस्टिस भूषण ने कहा- 'सभी मस्जिद, चर्च और मंदिर एक समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. राज्यों को इन धार्मिक स्थलों का अधिग्रहण करने का अधिकार है. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि इससे संबंधित धर्म के लोगों को अपने धर्म के मुताबिक आचरण करने से वंचित किया गया.'
अयोध्या मामले पर जस्टिस नजीर ने कहा कि बड़ी बेंच को यह तय करने की जरूरत है कि धार्मिक मान्यताओं की क्या भूमिका है.
सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मामले पर अब 29 अक्टूबर, 2018 से सुनवाई करेगा.
अयोध्या मामले (इस्माइल फारूकी केस) पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि सभी धर्म और धार्मिक स्थलों को बराबर सम्मान होना चाहिए. अशोक का जिक्र करते हुए जस्टिस भूषण ने कहा कि वे दूसरों के धर्म के प्रति सहिष्णु होने की बात कहते हैं.
जस्टिस अशोक भूषण ने सीजेआई की तरफ कहा कि अयोध्या भूमि विवाद को बड़ी बेंच के पास नहीं भेजा जाएगा.
जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हमारे पास दो विकल्प हैं. एक जस्टिस भूषण और सीजेआई दीपक मिश्र और दूसरा जस्टिस नजीर का.
आदेश में बेंच ने 2.77 एकड़ की विवादित भूमि के तीन बराबर हिस्सा करने को कहा था. राम मूर्ति वाले पहले हिस्से में राम लला को विराजमान कर दिया गया. राम चबूतरा और सीता रसोई वाले दूसरे हिस्से को निर्मोही अखाड़े को दे दिया गया और बाकी बचे हुए हिस्से को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया गया.
30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह फैसला सुनाया था कि विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जाए. एक हिस्सा रामलला के लिए, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को दिया जाए. 30 सितंबर 2010 को जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया था.
नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद की जरूरत है या नहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 2 बजे शुरू होगी.
उत्तर प्रदेश की सरकार ने पहले यह कहा था कि कुछ समूह 1994 के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करके मामले को लटकाने की कोशिश कर रहे हैं. यूपी सरकार की तरफ से पैरवी कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि यह विवाद अपने आखिरी फैसले के लिए एक दशक से इंतजार कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय बेंच आज इस मामले पर फैसला सुनाने वाले हैं कि ‘मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं और क्या यह मामला संवैधानिक बेंच के पास भेजा जाना चाहिए.' इस बेंच में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल शामिल हैं. आज के फैसले के ऑथर जस्टिस अशोक भूषण हैं.
क्या है मामला?
1994 में इस्माइल फारुकी की याचिका में एक फैसला आया था. इस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि मुसलमानों के नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद की जरूरत नहीं हैं. इस फैसले के खिलाफ एक याचिकाकर्ता एम सिद्दिकी हैं. सिद्दिकी की याचिका की सुनवाई हो चुकी है. कोर्ट ने 20 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि जमीन विवाद से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट अहम फैसला सुनाने वाला है. यूं तो यह फैसला जमीन विवाद से सीधे तौर पर नहीं जुड़ा है लेकिन अपने आप में यह फैसला काफी अहमियत रखता है.
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